सियासी मंचों पर सतही बोल
-पांडे एन डी देहाती
यूपी में 22 का विधान सभा चुनाव है। राजनीतिक पार्टियों का होलियाना अंदाज शुरू है। सियासी मंचों पर एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सतही बोल बोले जा रहे। बोलने वाले अपने पद व प्रतिष्ठा का भी ख्याल नहीं रखते। सबकी भाषा लगभग एक ही निकल रही। याद आ रहा वह 75 का दौर जब देश की महान नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ गांवों तक दुर्वचन बोले जा रहे थे। नारे ईजाद किये थे, गली-गली में झंडी है.....। इंदिरा का सिंहासन हिला मोरारजी की सरकार बनी। उन्हें मूत... प्रधानमंत्री बना दिया गया। बीपी सिंह को किसी ने राजा से फकीर बनाया तो किसी ने भारत का कलंक कहा। यूपी में बसपा व सपा की सन्युक्त एंट्री हो रही थी। नारे गढ़े गए-मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गए जयश्री राम। मर्यादा भगवान श्रीराम को भी राजनीतिक मंचों पर सियासी गिरगिटों ने नहीं छोड़ा। बसपा ने जातिवादी सोच पर प्रतिकार में- तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार तक पहुंचा दिया। भाजपा ने श्रीराम को भुनाया तो बसपा ने हाथी को ही गणेश साबित किया। बाद की स्थितियों में बोल और बिगड़ते गए। टीवी चैनलों के डिबेट में भी टोटी चोर और फेकू जैसे शब्दों पर बहसें होती रहीं।
21 के दौर में 22 की चिंता। अब तो और भी जहरीली वाणियों को सुनने का सीजन आ गया है। योगी आदित्यनाथ जैसे संत की भाषा भी अब्बाजान से शुरू हो रही। राजनीतिक गलियारों में भी ऐसी भाषा पर कई सवाल खड़े हुए। लेकिन महन्त ने तो अपना 'तकिया कलाम' बना लिया। विधान परिषद में जब यह मुद्दा उठा, तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ''अब्बाजान शब्द कब से असंसदीय हो गया?' राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा ने तो उनकी आलोचना में बेहद कड़े शब्दों तक का इस्तेमाल किया और कहा कि उनके पास उपलब्धि बताने को कुछ नहीं है, तो ये सब कर रहे हैं। अब उन्हें कौन याद दिलाए की उनके नेता कभी बिहार में भूरा बाल साफ करो का ज्ञान बांटते थे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर अलीगढ़ में हुई एक रैली में उन्होंने कहा, "पहले उत्तर प्रदेश की पहचान अपराध और गड्ढों से होती थी। पहले हमारी बहनें और बेटियां सुरक्षित नहीं थीं। यहां तक कि भैंस और बैल भी सुरक्षित नहीं थे, आज ऐसा नहीं है। निसंदेह यूपी में कानून का राज स्थापित हुआ है लेकिन सड़कों की दशा तो खस्ताहाल ही है।
यूपी में बहस विकास पर होनी चाहिए लेकिन बहस बकवास पर हो रही है। योगीजी अब्बाजान के पीछे पड़े तो किसान नेता टिकैत हैदराबादी लैला को भाजपा के चाचा जान साबित करने में जुटे हैं। बुआजान की पार्टी ब्राह्मणों के गुणगान में लगी है तो बबुआजान की पार्टी सिंहासन काबिज करने की होड़ में है। अम्मीजान अपने बेटे-बेटी को यूपी का सियासी मिजाज बदलने के लिए मिशन पर लगा दिया है। मतदाता भाईजानों! आप वक्त की नजाकत को समझिए। इन सियासी गिरगिटों को पहचानिए। भाषा और बिगड़े बोल पर मत जाइए। विकास के मुद्दे पर ही अपना नेता चुनिये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व समीक्षक हैं)
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