शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

Dehati Ji

नेताजी की पेट में बहुत दर्द बा
-N.D.Dehati
हाथ से ‘हीरामन सुग्गा’ उड़ी गइल। सुग्गा उड़ला की अफसोस में दुई दिन बर्दास्त वाली गोली खाके, मुंह पर ताला लगाके, नेताजी चुप्प रहलन। तीसरे दिन उनकर धैर्य जवाब दे गईल। नेताजी की पेट में बहुत दर्द बा। दर्द के कारण इ बा कि जवने हीरामन सुग्गा ‘मुद्दा’ बनि के नेताजी की हाथ में रहल, तबले उनकी राजनीति के खेती- बारी और दुकानदारी हरियर रहल। येही मुद्दा की बदौलत कुछ जालीदार टोपी वाला, चरखाना के लुंगी वाला, कटल-छटंल दाढी वाला भाई लोग नेताजी की साथे, मतलब समर्थन में रहत रहलें। हाईकोर्ट में एगो फैसला भइल, सुप्रीम कोर्ट में लोग जाये खतिर तैयार बा, लेकिन नेताजी की पेट में दर्द उपटि गईल बा। कहत हवें मुसलमान ‘ठगा’ गइलन।
बात करत हई अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट की फैसला के। वादी-प्रतिवादी, सतवादी-गप्पावादी सब लोग फैसला के स्वागत कइल। पूरा देश एतना बड़ा फैसला की बाद अपनी भारत की एकता, अखंडता, साहस, धैर्य, संयम के प्रशंसा कइल। बहुत मर्यादित ढंग से मामला निबट गइल। कहीं कवनो विरोध ना, कहीं कवनो प्रदर्शन ना। पक्षकारन की एतराज खातीर तीन महीना के बड़वर समय दीहल गइल। जब चाहे जायं। सुप्रीम कोर्ट के दरवाजा खुलल बा। अयोध्या की हाईकोर्ट वाला फैसला पर देश के ज्ञानी-विज्ञानी, धर्मी-अधर्मी, पंडा-पुजारी, मोलबी-नमाजी केहू कमेंट ना कइल कि फैसला बाउर बा। सबकी लगे थोड़-ढेर बुद्धि बा। न्यायालय की फैसला पर ओहसे बड़वर अदालत में जाइल जा सकेला, लेकिन फैसला के ‘मुहंदेखल’ ना कहल जाला। लेकिन वाह रे नेताजी! तूं त मुल्ला-कठमुल्ला से भी आगे निकर गइल। तूं कहल कि मुसलमान ‘ठगा’ गइलें। केतना बड़वर अपराध कइल, एकर गंभीरता समझ। का न्यायालय के ‘ठग-बंटमार’ बनावला में तोहरा अचिको ‘लाज-हया’ ना लागत? येह देश के गंगा-जमुनी संस्कृति में काहें जहर घोरल चाहत हव। पूरा देश देखत बा, जानत बा, सूनत बा। अयोध्या विवाद की समाधान के पहल अब भी जारी बा। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास आ बाबरी मस्जिद के पक्षकर हाशिम अंसारी हनुमान गढ़ी में बइठ के घंटन चर्चा कइले। अरे ए नेताजी! मुद्दई-मुद्दालय एक हो जालें त गवाह भी ना पुछालें, तोहके के पूछी? शांती बा त शांती बनल रहे द। बेवजह बयानबाजी से काहें लोग के भड़कावत हव। सबकी मुंह में जुबान बा। कुछ तूं बोलब, कुछ उ बोलिहें। फिर बाताकही बढ़ी। अमन में खलल पड़ी। रहल बात ठगइला के, त लोग खरीददारी में ठगालें। रास्ता चलत कवनो फरेबी की चक्कर में ठगालें। न्यायालय न्याय क मंदिर ह, जहां से न्याय देवता न्याय देलें। न्यायालय कवनो ‘ठगालय’ ना ह जहां लोग ठगा जाई। देश की राष्ट्रीयता, एकता, अखंडता खातिर बर्दास्त वाली गोली खाके चुप्प मारि के बइठ जा। पेट में ज्यादा दर्द होवे त हर्रे-हींग, कालानमक मिला के गुनगुना पानी से फांकि ल। वइसे भी तोहार राजनीतिक दुकानदारी डवांडोले चलल बा। देख हाथ से ‘हीरामन सुग्गा’ उड़ि गइल त कुछु दूसर मुद्दा ढूढ़। अदालत के स्वतंत्र छोड़ द। नाहीं त ‘ऊसर मरन विदेश, ताहू पर कुछ बाकी...’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपन विचार लिखी..

हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद