शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

संत-संत में भेद है, कुछ मुंड़ा कुछ झोंटा....


संत-संत में भेद है, कुछ मुंड़ा कुछ झोंटा....
भारत देश विभिन्नता में एकता के दर्शन करावे ला। कृषि प्रधान देश की बावजूद किसान से कम महान एइजा के संत, महात्मा, भगवान ना हवन। ढ़ाई अक्षर के शब्द संत के भी अंत पावल बड़ा कठिन काम हs। अयोध्या मामला के बातचीत चलत रहे। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष मंहत ज्ञानदास, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि जी महाराज  हाशिम चाचा की साथे रोज-रोज फोटो खिचवावत रहलें। बातचीत की जरिये ममिला सुलझावत रहलें। एही बीच में राममंदिर से जुड़ल संत उच्चाधिकार समिति के भी बैठक में अयोध्या आन्दोलन के अगुआई करे वाला ढेर संत-महात्मा बिटुरइले। कुछ नेतागिरी करे वाला संगठन के लोग भी गइलें। तय कs दिहलें कि जमीन के विभाजन स्वीकार ना बा। मतलब हाईकोर्ट के निणर्य से संतुष्ट ना हवें इ संत। अब संत-संत में भेद हो गइल। अखाड़ा तs अलगा-अलगा चलके रहे। हिन्दू धर्म के राहि देखावे वाला संत के राह भी जुदा-जुदा हो गइल। निरमोही अखाड़ा तs एकदम से मोह त्याग के सिंहल(विहिप) की टिप्पणी पर उखड़ गइल। निर्मोही अखाड़ा के संत रामदास एतना ले कहलन कि रामजन्म भूमि न्यास अवैध बा। एकर गठन दिल्ली में भइल रहे। संत उच्चाधिकार समिति गोवा में बनल  रहे। जब दूनो के गठन अयोध्या में भइबे ना कइल तs अयोध्या की बारे में का बतिअइहन।
अब तरह-तरह के संत आ तरह-तरह की बात पर इ कहल जा सकेला कि जब हिन्दू समाज के अगुआ लोग में खुद फुटमत बा तs अयोध्या के हाल श्रीराम जी की ही हाथे रही। संत में कुछ....खुल्ला बाड़न, तs कुछ दाढ़ी-झोटा बाल हवें। संत के रंग, रुप, स्वभाव पर इ कहल जा सकेला-

                             
संत-संत में भेद है, कुछ मुड़ा कुछ झोटा।
  कुछ नीचे से खुल्लम खुला, कुछ बान्हे मिले लंगोट।।



N.डी.Dehati

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