रविवार, 17 अक्तूबर 2010

Dehati Ji

योगी बाबा गेरुआधारी, मुंह पर करिया कपड़ा…................
N.D.Dehati
रंग की ममिला में बाबा का पसंद ह ‘गेरुआ’।
समूचा पूर्वांचल में येह ‘गेरुआधारी’ के समर्थक हवें। गांव-गांव केसरिया झंडा हिंदू-हिंदुत्व ही ना अन्याय की प्रतिवाद में तनेन होके खड़ा मिलेला। बाबा बोलेलें तS प्रशासन के चूल हील जाला। सम्मेलन करेलन तS जनसैलाब उमड़ जाला। गरमा-गरम भाषण देवे वाला बाबा आज मौन रहलन। मौन ही ना, मुंह पर करिया कपड़ा बांधि लिहलें। गेरुधारी की मुंह पर करिया कपड़ा देख के रोंआ खड़ा हो गइल। बाबा बाजार बंद करा सकेलन, बस रोकवा सकेलन, ट्रेन ठप्प करा सकेलन। बाबा की एगो संदेश पर उनकर सेना पूर्वांचल बंद करा दे, लेकिन बाबा आपन मुंह बंद कS लिहलन करिया कपड़ा से। दरअसल इ मौन गुस्सा रहल। बाबा के गुस्सा वाजिब बा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अब तक करीब पचास हजार लरिकन के जान नवकी बेमारी से चलि गइल। अंगरेजी में येह बेमारी के इंसेफेलाइट कहल जाता। कुछ लोग जापानी बोखार तS कुछ लोग मस्तिष्क ज्वर कहत हवें। नाव कुछऊ होखे इ ताड़का राक्षस अइसन लरिकन के खात जात बा। इ बेमारी ना महामारी हो गइल बा। केतने महतारिन के गोद सून हो गइल। केतने बहिनिन के भाई आपन जान गवां दिहलन। केतने बाप रोवत-बिलखत लइका लेके अइलें आ कान्हे पर लाश लाद के गइलन। लोग की दुख से बाबा का भी पीड़ा पहुंचल। ना रोक पवलें तS मुंह पर करिया कपड़ा बान्हि लिहलें।
बाबा अपने संगी-साथी, समर्थन की साथे गोरखपुर की कमिश्नर पीके महांति से मिललें। बाबा के मांग बा कि बीआरडी मेडिकल कालेज की साथ-साथ मंडल की सजो सरकारी अस्पताल में नवकी बेमारी (इंसेफेलाइटिस) की उपचार के व्यवस्था होखे के चाहीं। बाबा के बात तS सोरहों आना ठीक बा, लेकिन हकीकत इ बा सरकारी डाक्टर सरकारी कार्य छोड़ि के प्राइवेट धंधा-पानी में लागल हवें। बाबा के दूसरका मांग बा कि गोरखपुर महानगर की साथ-साथ सजो कस्बा आ ग्रामीण क्षेत्र में साफ-सफाई होखे के चाही। बाबा!  महानगर वाली ‘मैडम’ तS रउरी सथवे हई। नगर में केतना साफ-सफाई आ फागिंग होला हर नगरवासी ढंग से जानत हवे। कस्बा तS कमाए वालन की हाथ में दीया गईल बा। बजट-गटक नारायन। रहल बात गांव के तS हर गांव में सफाईकर्मी के तैनाती भइल बा। बड़ जाति वाला नौकरी के नाम पर सफाईकर्मी (भंगी) तS बनि गइले लेकिन झाड़ू उठावला में सकुचात हवें। बाबा!  रउरा सड़क से लेके संसद तक येह बीमारी से बच्चन के बचावे खातिर संघर्ष करत बानी। रउरा धन्य बानीं। रउरा उ विश्वामित्र बानीं जवन ‘ताड़का वध’ करा के दम लेइब। हम गांव के निपट गवांर मनई राजा दशरथ तS ना बनि सकेलिन लेकिन अपना ‘राम-लक्षुमन’ के रउरी एह संकल्प की साथे जोड़ सकेलिन। बाबा! मुंह से करिया कपड़ा हटाई, आ आदेश देईं। हमार पुत्तर लोग शासन-प्रशासन की लापरवाह व्यवस्था की मुंह पर करिखा पोते खातिर तैयार हवें। इन्सेफेलाइटिस की मुद्दा पर सबका एक होखे के चाही, जे एक होखे के ना तइयार बा ओहू की मुंह पर करिखा लगा देइब दौड़ा के। 
N.D.Dehati

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