गुरुवार, 31 मई 2012
गुरुवार, 24 मई 2012
बाबुजी हमरा के ओइजा ना बिअहब..
बाबुजी हमरा के ओइजा ना बिअहब,
जवना घरे बनल ना होई लैटिनिया।।
देखीं महराजगंज प्रियंका सखी का कइली,
ससुरा के छोड़ मायका गइल दुलहिना।
सौम्या अग्रवाल जिलाधिकारी ओइजा के,
ब्रांड अंबेस्डर के कइली घोषनिया।।
संतकबीर नगर की मेहदावल क्षेत्रे में,
बढ़या ठाठर गांव के दुसरकी कहनिया।
येही शौचालय की कारन ही ससुरा त्याग,
नैहर में लौट गइली ज्योति दुलहिनिया।।
कुशीनगर में बहू विदेह कइली, माहुर
खाके मिटावल चहलीं जिन्दगनिया ।
हाटा कोतवाली के लालीपार गांव में, येही
दुखे प्रियंका कइली नदनिया।।
बोलीं बेटाबालन से आपन डिमांड देखें, दान आ
दहेज देखें बड़की रकमिया।
समधी बन सीना फुलावला से पहिले, शौचालय बनवावें
अपनी मकनिया।।
बड़का खानदानी गुमानी अभिमानी, चाहें बावन बीघा बोआइल होखे
पुदनिया।
डूबी जाई पगड़ी, मोछियो उखड़ जाई, जहिया दिन घरवा से भागि जाई
कनिया।।
शादी बियाहे में बहुते प्रदर्शन बा, गाड़ी-घोड़ा, खान-पान,
नचनिया-बजनिया।
मंगन दहेज के लुटावत हवें पइसा, गारि लिहलें बेटिहा से
एडवांस में रकमिया।।
सुनीलां की जेल में भी बनल शौचालय बा, ओकरा घर जेल से
भी बदतर कहनिया।
सौ गो बेमारी धरी एके बाथरूमें बिन, रोइ रोइ बाबुजी से
कहेले बबुनिया।।
बाबुजी हमरा के ओइजा ना बियहब, जवना ना घरे बनल होई
लैटिनिया।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी लेख राष्ट्रीय सहारा के 24 मई 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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सोमवार, 21 मई 2012
बेफिक्र फकीर थे बाबा जय गुरुदेव
बाबा जय गुरुदेव कहते थे सत युग आयेगा बाबा जयगुरुदेव पर राधास्वामी मत का प्रभाव रहा और गो सेवा हो या खेती
या जनसेवा, बाबा ने यह मत कभी नहीं छोड़ा। लंगर की परंपरा में सूखी रोटी,
मूली, हरी मिर्च और कम नमक और बिना लाल मिर्च वाली दाल का भोजन हो। या फिर
जात-पात पूछे बिना सामूहिक विवाह कराने का उनका मंतव्य, हर मामले में वह
राधा स्वामी मत से प्रभावित रहे।जानकारों की मानें तो बाबा जयगुरुदेव इस वर्तमान समय में ऐसे बिरले और
असरकारी फकीर रहे, जिनके भक्त वास्तव में कोई नशा नहीं करते, न मांसाहार
खाते हैं न शराब का सेवन करते हैं। और तो और नामयोग साधना मंदिर के दानपात्र में भी उसी को दान देने का
आदेश है, जो किसी प्रकार का व्यसन न करता हो। बाबा ने जो टाट भक्तों को
पहनाया, उसकी सालों आलोचना हुई, पर यह टाट इतना विशेष था कि इसे हर कोई
नहीं पहन सकता था, जब तक कि बाबा का आदेश न हो जाए।
जयगुरुदेव अपने प्रवचनों में हमेशा गरीब दास जी, शिवदयाल जी, सहजो भाई, चरण दास की वाणी, राधास्वामी मत के सार वचन, मीरा बाई, कबीर और घट रामायण का उल्लेख करते थे। उनके भजन और कीर्तन भी फकीरी वाले ही थे। मीरा के भजनों से वह हमेशा प्रंभावित रहे।उनकी बात जहां दुनियादारों को समझ नहीं आयी, वहीं बाबा ने भी उनकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने बताया कि सुरत (आत्मा) दो आंखों के बीच बसती है। वह मनुष्य की आवाज नहीं सुनती बल्कि आकाशवाणी सुनती है। आकाशवाणी के शब्द के जरिए आत्मा इह लोक में उतार कर लायी गयी है। वह कहते कि स्वर्ग, वैकुंठ से आगे भी मंडल और लोक हैं। एक बार पहुंचने के बाद भी नीचे आ सकते हो। और केवल कोई पहुंचा हुआ संत ही वहां तक पहुंचा सकता है। वह गुरु शब्द को ब्रह्म के समकक्ष रखते और उसी की महिमा का बखान करते। उन्होंने अनुभव किया कि बिना शाकाहार अपनाए इंसान निराकार प्रभु का अनुभव नहीं कर सकता, तो उन्होंने इसे अभियान से जोड़ लिया। आश्रम से जुड़े बाबा के प्रमुख अनुयायी संत राम कहते हैं कि बाबा पर वे लोग ज्यादा लिख रहे हैं, जिन्होंने कभी बाबा को नहीं समझा। वह कहते थे कि देवी-देवता तो सृष्टि के ट्रस्टी हैं। असल प्रभु तो निराकार ब्रह्म है। उसी से जुड़ने की सीख देते। मेरे बाबूजी स्वर्गीय सुरेश पाण्डेय बाबा के अनन्यय भक्त थे . बाबूजी के निर्देश से हमने साईकिल से देश के 11 प्रान्तों का बाबा के काफिले में यात्रा की . बाबा की सादगी , बाबा का सत्संग , बाबा का अध्य्तामिक करिश्मा बहुत करीब से देखा हु . इसी से यह दावा कर रहा हु की बेफिक्र फकीर थे बाबा जय गुरुदेव. इमरजेंसी में इंदिरा गाँधी ने बाबा के पैर में बेदी डलवा कर तिहाड़ की काल कोठरी में डलवा दिया था . बाद में 77 के चुनाव में कांग्रेश का सफाया हो गया था.दरअसल बाबा के गुरु श्री घूरेलाल का जब देहावसान शुरू हुआ, तब भारत आजाद ही हुआ था। देश में कुरीतियों का बोलबाला था और लोग अंधविश्वास में फंसे हुए थे। उत्तर प्रदेश का पूर्वाचल इलाका तो सर्वाधिक पिछड़े इलाके में शुमार था ही, आध्यात्म की राह भी उनके सामने नहीं थी। तब बाबा ने सन 1952 में पहली बार वाराणसी से अपने प्रवचन की शुरुआत की। यह सिलसिला आगे बढ़ा तो बाबा के तेवर और आम संतों से अलग सोच भी सामने आने लगी। अधिकांश धार्मिक लोग जहां देवी-देवताओं की बात करते, वहीं बाबा निराकार ब्रह्म की शिक्षा देते और कुरीतियों, ढोंग व अंधविश्वास के खिलाफ खुलकर बोलते।धीरे-धीरे उनका विरोध बढ़ने लगा। विरोध तेज हुआ तो पूर्वाचल के लोग ही उनके साथ आए। इनमें भी गोरखपुर के अनुयायियों ने बाबा का सबसे ज्यादा साथ दिया। गोरखपुर के अनुयायी तो बाबा की सुरक्षा में वाराणसी, आजमगढ़, जौनपुर, बिहार व अन्य इलाकों में भी साथ जाते थे। संगत का असर ऐसा रहा कि यह कारवां बढ़ता गया और पूर्वाचल में बाबा जयगुरुदेव का डंका पिटने लगा। आश्रम का लगाव भी उनके लिए उतना ही अटूट होता गया। अब जब बाबा जयगुरुदेव नहीं रहे हैं तो पूर्वाचल के भक्तों की भीड़ भी सर्वाधिक देखी जा रही है। इनमें गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, देवरिया, जौनपुर, गौंडा, सोनभद्र आदि इलाकों के भक्त छाये हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, नेपाल, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा के भक्त भी हैं। बाबा अपने प्रवचनों में अक्सर कहा करते थे-'सुनते जाना, सभी नर-नारी, जमाना बदलेगा.... जमाना बदलने वाले बाबा जमाना छोड़ गए . उनके ब्रह्मलीन होने की दुखदायी खबर पर कुछ अपनी श्रधा के शब्द अर्पित करते हुए उन्हें नमन करता हु - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती
जयगुरुदेव अपने प्रवचनों में हमेशा गरीब दास जी, शिवदयाल जी, सहजो भाई, चरण दास की वाणी, राधास्वामी मत के सार वचन, मीरा बाई, कबीर और घट रामायण का उल्लेख करते थे। उनके भजन और कीर्तन भी फकीरी वाले ही थे। मीरा के भजनों से वह हमेशा प्रंभावित रहे।उनकी बात जहां दुनियादारों को समझ नहीं आयी, वहीं बाबा ने भी उनकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने बताया कि सुरत (आत्मा) दो आंखों के बीच बसती है। वह मनुष्य की आवाज नहीं सुनती बल्कि आकाशवाणी सुनती है। आकाशवाणी के शब्द के जरिए आत्मा इह लोक में उतार कर लायी गयी है। वह कहते कि स्वर्ग, वैकुंठ से आगे भी मंडल और लोक हैं। एक बार पहुंचने के बाद भी नीचे आ सकते हो। और केवल कोई पहुंचा हुआ संत ही वहां तक पहुंचा सकता है। वह गुरु शब्द को ब्रह्म के समकक्ष रखते और उसी की महिमा का बखान करते। उन्होंने अनुभव किया कि बिना शाकाहार अपनाए इंसान निराकार प्रभु का अनुभव नहीं कर सकता, तो उन्होंने इसे अभियान से जोड़ लिया। आश्रम से जुड़े बाबा के प्रमुख अनुयायी संत राम कहते हैं कि बाबा पर वे लोग ज्यादा लिख रहे हैं, जिन्होंने कभी बाबा को नहीं समझा। वह कहते थे कि देवी-देवता तो सृष्टि के ट्रस्टी हैं। असल प्रभु तो निराकार ब्रह्म है। उसी से जुड़ने की सीख देते। मेरे बाबूजी स्वर्गीय सुरेश पाण्डेय बाबा के अनन्यय भक्त थे . बाबूजी के निर्देश से हमने साईकिल से देश के 11 प्रान्तों का बाबा के काफिले में यात्रा की . बाबा की सादगी , बाबा का सत्संग , बाबा का अध्य्तामिक करिश्मा बहुत करीब से देखा हु . इसी से यह दावा कर रहा हु की बेफिक्र फकीर थे बाबा जय गुरुदेव. इमरजेंसी में इंदिरा गाँधी ने बाबा के पैर में बेदी डलवा कर तिहाड़ की काल कोठरी में डलवा दिया था . बाद में 77 के चुनाव में कांग्रेश का सफाया हो गया था.दरअसल बाबा के गुरु श्री घूरेलाल का जब देहावसान शुरू हुआ, तब भारत आजाद ही हुआ था। देश में कुरीतियों का बोलबाला था और लोग अंधविश्वास में फंसे हुए थे। उत्तर प्रदेश का पूर्वाचल इलाका तो सर्वाधिक पिछड़े इलाके में शुमार था ही, आध्यात्म की राह भी उनके सामने नहीं थी। तब बाबा ने सन 1952 में पहली बार वाराणसी से अपने प्रवचन की शुरुआत की। यह सिलसिला आगे बढ़ा तो बाबा के तेवर और आम संतों से अलग सोच भी सामने आने लगी। अधिकांश धार्मिक लोग जहां देवी-देवताओं की बात करते, वहीं बाबा निराकार ब्रह्म की शिक्षा देते और कुरीतियों, ढोंग व अंधविश्वास के खिलाफ खुलकर बोलते।धीरे-धीरे उनका विरोध बढ़ने लगा। विरोध तेज हुआ तो पूर्वाचल के लोग ही उनके साथ आए। इनमें भी गोरखपुर के अनुयायियों ने बाबा का सबसे ज्यादा साथ दिया। गोरखपुर के अनुयायी तो बाबा की सुरक्षा में वाराणसी, आजमगढ़, जौनपुर, बिहार व अन्य इलाकों में भी साथ जाते थे। संगत का असर ऐसा रहा कि यह कारवां बढ़ता गया और पूर्वाचल में बाबा जयगुरुदेव का डंका पिटने लगा। आश्रम का लगाव भी उनके लिए उतना ही अटूट होता गया। अब जब बाबा जयगुरुदेव नहीं रहे हैं तो पूर्वाचल के भक्तों की भीड़ भी सर्वाधिक देखी जा रही है। इनमें गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, देवरिया, जौनपुर, गौंडा, सोनभद्र आदि इलाकों के भक्त छाये हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, नेपाल, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा के भक्त भी हैं। बाबा अपने प्रवचनों में अक्सर कहा करते थे-'सुनते जाना, सभी नर-नारी, जमाना बदलेगा.... जमाना बदलने वाले बाबा जमाना छोड़ गए . उनके ब्रह्मलीन होने की दुखदायी खबर पर कुछ अपनी श्रधा के शब्द अर्पित करते हुए उन्हें नमन करता हु - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती
गुरुवार, 17 मई 2012
कंकरी के चोर, कटारी से मराई, लूटेरन के ऊंचकी कुरसी दियाई
कंकरी के चोर, कटारी से मराई, लूटेरन के ऊंचकी कुरसी दियाई
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सड़क की किनारे भूजावाला के ठेला। पेट की खातिर दहकत दिन की आंच में देहि
झउंसत, भूजा भूजत भूखाइल सधारन मनई के भूख मेटा के आपन पेट पालला के
पर्यत्न। नीली बत्ती लगावल बेलोरो से उतरत सिपाही। चार मुट्ठा चना-चिउरा
सुखले चबा गइलें,उपर से गारी-फजिहत, ठेला हटावला के आदेश। चालान के रसीद,
सड़क पर ठेला लगवला के सजा 200 रुपया। मनबोध मास्टर देखि के दंग रहि गइलें।
बोललें- कंकरी के चोर कटारी से मरात बा। जवना देश में भ्रष्टाचार के तूती
बोलत बा। विकास की नाम पर सड़क खोद के छोड़ दिहल गइल बा। नाली-नाबदान त
भरले बा, आसपास कूड़ा के ढेर लागल बा। गांवन से बिजली नदारद बा। शहर के
पुलिस सहायता केंद्र वसूली केंद्र के रूप में स्थापित। प्रदेश से लेके देश
तक बारी-बारी लूटे के तैयारी। उनकर उ दिन बीत गइल, जब तूती बोलत रहे। सोने
के चिरई कहाये वाला अपनी देश के जेतना गोरका अंगरेज ना लूटलें ओसे ज्यादा
आजादी की बाद खद्दरधारी लूट मरलें। देश में बहुत जांच चलत बा। बहुत घोटाला
भी होता। ठेला वाला के डंडा मार के भ्रष्टाचार ना भगावल जा सकेला।
भ्रष्टाचार त लोग की आचार, व्यवहार, नेति, नियम, कानून में रचि-बसि गइल बा।
इ परिपाटी चलते रही, केहू भीतर जाई, केहु बाहर आई। ‘राजा’ बाहर अइले,
‘रानी’ के भीतर भेजे के तैयारी होखे लागल। ‘भइया जी’ नया खुलासा कइलें। चालीस हजार करोड़ के घोटाला। बइसे भी ‘बहन जी’ की राज में सत्तावन सौ करोड़ के एनआरएचएम घोटाला, बारह हजार करोड़ के मनरेगा घोटाला, ग्यारह सौ अस्सी करोड़ के चीनी मिल बिक्री घोटाला, एक सौ बीस करोड़ के टीइटी घोटाला प्रकाश में आ चुकल बा। जइसे छप्पन,ओइसे घप्पन। चालीस हजार करोड़ इहो सही। घाव चाहे कट्टा के होखे चाहे छुरी के। लापरवाही के होखे चाहे मजबूरी के। जब जहरीला हो जाई त आपरेशने इलाज बा। भ्रष्टाचार की प्रायश्चित खातिर बढ़िया जगह तिहाड़ ही बा। देश की हालत पर इ कवित्तई बहुत सधत बा-
कंकरी के चोर ,
कटारी से मराई।
लूटेरन के ऊंचकी, कुरसी दियाई।।
कहिया ले देश में अनेति
अइसे चली।
किकुरी ईमानदार, फइली बाहुबली।।
बहुत भइल पहरा, भ्रष्टाचार भइल
गहिर।
देश भइल खोंखड़, घाव भइल गहिर।।
केके हम कुरुप कहीं, केकर सुन्नर
मोहड़ा।
घिन्न आवे देख के नेतवन के चेहरा।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 17 मई 12 के अंक में प्रकाशित है .
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गुरुवार, 10 मई 2012
केतना ठंडई देई, टॉनिक इ बिहारी सतुआ ना चना के ह, हवे इ खेसारी
केतना ठंडई देई, टॉनिक इ बिहारी सतुआ ना चना के ह, हवे इ खेसारी
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केतना ठंडई देई, टॉनिक इ बिहारी।
सतुआ ना चना के ह,
हवे इ खेसारी।।
गरमी से मिली नाही, पियले इ राहत।
लंगड़ी बीमारी मिली, मोल
मिली आफत।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 10 मई 12 के अंक में प्रकाशित है .
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गुरुवार, 3 मई 2012
है। अपनी उपज को बेचने में किसान को इतने पसीने बहाने पड़ रहे हैं, जितने उगाने से कटाने तक नहीं बहे। सरकार ने गेहूं खरीद केन्द्रों पर बहुत से नियम बनाए हैं। नियमों को ताक पर रखकर खरीद हो रही है। अपनी उपज का दाम लेने में किसानों को एड़ी-चोटी का दम लगाना पड़ रहा है। तौल के बाद कहीं चेक के लिए परेशान तो कहीं चेक के भुगतान के लिए बैकों का चक्कर। हकीकत यह है कि किसानों का सोना बेचने का रोना। गेहूं क्रय केन्द्रों का नियम यह है कि खरीद के तुरन्त बाद केन्द्र प्रभारी किसान को एकाउंटपेई चेक दे दें। अगले दिन किसान बैंक में चेक देकर भुगतान ले लें। नियमों की अनदेखी का आलम यह है कि गोरखपुर, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर व देवरिया में ज्यादातर किसानों को बहुत पापड़ बेलने के बाद भी 15 दिन पहले बेचे गये गेहूं का भुगतान नहीं मिल सका है। मध्य प्रदेश के किसानों को वहां की सरकार प्रति ुकुन्तल सौ रुपये बोनस दे रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश के किसानों को बोनस नहीं मिल रहा है। ऊपर से कई जगहों पर नमी के नाम पर प्रति कुन्तल पांच किलोग्राम की कटौती की शिकायत आयी है। गेहूं क्रय केन्द्रों पर गड़बड़ी की लगातार शिकायतों को देखते हुए प्रदेश सरकार ने छापामारी का निर्देश दिया है। प्रमुख सचिव, सचिव, जिलाधिकारी स्तर के अफसरों को मंगलवार को सघन छापेमारी का निदर्ेेश दिया गया है। गेहूं खरीद का लक्ष्य गोरखपुर जनपद के लिए 79.674 हजार मी.टन रखा गया है। अप्रैल 30 तक 18.484 हजार मी.टन खरीद हो चुकी है। किसानों को खरीद के दिन ही चेक न देने पर पीसीएफ, राज्य कर्मचारी कल्याण निगम, नैफेड को सख्त हिदायत दी गयी है किसानों को समय से चेक दे दें। जून तक शतप्रतिशत खरीददारी के लक्ष्य को पूरा करने का निर्देश शासन स्तर से मिला है। अप्रैल माह के अंतिम दिन तक संतकबीर नगर में 4768 मीट्रिक टन, सिद्धार्थनगर में 5771 मीट्रिक टन, बस्ती में 6589 मीट्रिक टन की खरीद हो चुकी है। बस्ती मंडल में विभिन्न खरीद एजेंसियों पर किसानों का 3.61 करोड़ रुपया बकाया चल रहा है। बस्ती की जिलाधिकारी एस मथुशालिनी ने शासन की मंशा के अनुरूप सभी क्रय केंद्रों पर गेहूं खरीद करने का कड़ा निर्देश भले ही दिया है मगर तमाम क्रय केंद्रों पर किसान विगत दो-तीन दिनों से ट्रैक्टर-ट्राली पर गेहूं लाद कर तौल का इंतजार कर रहे हैं। कुशीनगर में क्रय केंद्रों की हालत खस्ता है। केंद्रों पर केवल बैनर लहरा रहे हैं। सोमवार को एआर कोआपरेटिव सतीश चंद्र मिश्रा ने जिले के आठ केंद्रों का निरीक्षण किया। हाटा तहसील में पड़री व कोहरौली के केंद्रों पर केवल बैनर लटक रहे थे, किसानों ने बताया कि यहां कोई कर्मचारी नहीं है, उन्होंने तत्काल प्रभाव से दोनों प्रभारियों को निलंबित कर दिया। देवरिया में 18118 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। महराजगंज के शाहाबाद स्थित सहकारी समिति पर बनाये गये गेहूं क्रय केन्द्र पर किसानों द्वारा वहां के सचिव के सम्बन्ध में काफी शिकायते प्रकाश में आईं हैं। वहां किसानों से प्रति कुन्तल 135 रुपया अतिरिक्त कमीशन देने के बाद ही उनका गेहूं तौला जा रहा है। किसानों की शिकायत पर भाजपा के विधायक बजरंग बहादुर सिंह ने मंगलवार को वहां पहुंच कर स्थिति की जानकारी ली, तथा जिलाधिकारी को मामले से अवगत कराया। - राष्ट्रीय सहारा ने मेरी यह खबर 2 मई 2012 को प्रकाशित की . |
जीडीए-नगर निगम के नीति, केहू से बैर, केहू से प्रीति
बाबा गोरखनाथ के दोहाई। रउरी धरती पर कवो धुई रमत रहे। योग के अलख जगत रहे। नाथ के महिमा गावत में लोग ना थकत रहे। श्रद्धा आ आस्था से लोग के सिर नवत रहे। देश-दुनिया में गोरखपुर के डंका बाजत रहे। धर्म के जयकारा लागत रहे। बुद्ध, महावीर, गोरखनाथ, कबीर की तप से पूर्वाचल के जर्रा-जर्रा पवित्र रहे। समय अस करवट लिहलसि की सब बदल गइल। गली-गली मांस-मछली-मुर्गा के दुकान खुल गइल। सड़क पर उधियात मुर्गन के पांखि, बिखरत बकरन के हड्डी, नाली में बहत पशु-पक्षी के लहू देखि के घिन लागत बा। सड़क की पटरिन पर खुलेआम कसाईगिरी होत बा। मांसाहार से बर-बेमारी त बढ़ते बा, एअरफोर्स का भी खतरा लगत बा। खतरा एह बाति के बा की कहीं कवनो पशु-पक्षी की हाड़-मासु पर चील मेरड़ाइल आ कवनो विमान से टकराइल त बहुत नुकसान होई। एअरफोर्स, जिलाप्रशासन, जीडीए आ नगर निगम के अफसर लोग बइठक कइलें। तय भइल कि रामगढ़ताल, कूड़ाघाट आ नंदानगर से मीट-मछरी के दुकान हटा दिहल जाई। रामगढ़ताल वाला पुल की दुनो ओर तरकुलहा माई की नाव पर हड़िया में पकवल ‘शुद्ध मीट’ के दुकान खुल गइल रहे। बड़े-बड़े लोग जीभ लपकावत आवत रहले, आ होटल में मांसाहार के मजा उड़ावत रहलें। अति के गति बढ़ल त प्रशासन की मति में मामला घुसल। जीडीए जागल, रामगढ़ताल के पुल की पास के दुकान ढहा दिहल गइल। जनम के बिगरी, जबे सुधरी। अब लोग पूछत बा- ‘ कूड़ाघाट में डेगे-डेगे जवन उड़ंतू (मुर्गा), डूबंतू (मछली), चरंतू (बकरी-बकरा)के मांस बिकात बा ओह पर नगर निगम आ जीडीए काहें मेहरवान बा?’ का करब भइया ! जवना नगर में मनई के जान सुरक्षित ना बा, ओहमा पशु-पक्षी की रक्षा के कवन ठेकान बा। सब ‘ एक हाड़’ (अपनी-अपनी हिसाब से अर्थ निकार लेइब सभे) की कारन होता । कुछ कवित्तई देखीं-
‘एक हाड़’ नौ कुक्कुर बजावे।
‘एक हाड़’ नौ चील बुलावे।।
‘एक हाड़’ का गजब है खेला।
‘एक हाड़’ पर लागे मेला।।
मछली बकरा मुर्गा हाट।
नाहीं कटाई कूड़ाघाट।।
रामगढ़ पुल से हटल दुकान।
गिरधरगंज में मेहरवान।।
जीडीए नगर निगम के नीति।
केहू से बैर केहू से प्रीति।।
गोरखनाथ के धरा पवित्र।
केतना बदलल भइल बिचित्र।।
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- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 3 मई 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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