सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

25 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित

नगर -डगर की बात/ एन डी देहाती

महंगी बा एतना, चहछननी से चेहरा निहार ल

मनबोध मास्टर बाजार जाये बदे निकरलन। सालो-साल गाल फुलवले, मुंह ओरमवले रहे वाली मस्टराइन, आज बिहाने से ही चहकत रहली। उनकर रूपजाल देख के मनबोध मास्टर वइसे सम्मोहित रहलें, जेईसे मोदी के भाषण सुन के भाजपाई। मास्टर रोमांचित रहलें, आनंदित रहलें। झुराइल जिनगी की रेगिस्तान में कुछ-कुछ हरियर लउके लागल। भोरही से मस्टराइन के एक ही रट- ए जी! सुनत हई। आज बाजार जाईब त संवकेरे घरे आ जाइब, आज करवा चौथ ह। आज राउर चांद नियर चेहरा चलनी से निहरला की बादे हम पानी पिअब। आवत में बाजार से एगो नया चलनी आ किचन के कुछ सामान लेत आइब। सांझ बेरा मास्टर बाजार गईलें। बाजार में आग लागल रहे। टमाटर के भाव सुनते चेहरा लाल हो गइल। प्याज त परवल की भाव रहे। सरसों की तेल के खेल समझ मे ना आइल त सोचले कि डॉक्टर साहब तेल-मसाला मने कईलें हवें। गोभी, परवल में तेल मसाला लागी। नेनुआ लीया जाऊ। ओही के उसीन के क्षुधा के आग बुझावल जाई। नेनुआ भी असो बरेडी चढ़ल रहे। तीस रुपया किलो बिकत रहे। कइसो सब्जी लिआईल। चलनी की बेर जेब मे पांच रुपया के एगो सिक्का बचल रहे। चलनी के दाम बीस रुपया सुनके मास्टर चलनी की जगह प्लास्टिक वाली चहछननी खरीद के चल दिहलन। सोचत जात रहलें, मुहें न देखे के बा। असो चलनी की जगह चहछननी ही सही। रास्ता में स्कूटर के तेल खत्म। ढकेलत, हाफ़त, पेट्रोल की महंगी पर गरिआवत घरे पहुंचते पता चलल कि सिलेंडर खत्म। चकरा के गिर गईलें। एक त करोना की बेमारी में कर्जा से चताईल रहलें, ऊपर से महंगी के मार। गैस पर जवन छूट मिलत रहे उहो खत्म। चार सौ वाला सिलिंडर एक हजार पार। वाह रे सरकार। यह अच्छा दिन से त उ बऊरके दिन ठीक रहे। पर्व त्योहार अब अमीरन खातिर ही बा। गरीब आदमी कईसे जी। मास्टराईन एक ओर आसमान की चांद के निहारत रहली त दूसरा ओर बरामदा में कपारे हाथ धइले अपनी चांद के। बोलली- चिंता छोड़ीं, चलीं राउर आरती उतारेके बा। मनबोध मास्टर सोचे लगलें- अगर इ व्रत ना रहित त मस्टराइन के मधुरीबानी की जगह रोज सुने वाला कर्कश आवाज ही सुने के मिलत। आदमी के जीवन एगो पत्ता अइसन बा। क्षणिक सत्ता पर एतना गुमान रहत बा। मनई जीवन की डाल से लटकल बा। मोह-माया में भटकल बा। जेकरा पर पूरा जवानी कुर्बान क दिहल गइल, अभाव में लोग के स्वभाव बदल जाला।भला हो हमरी संस्कृति के, हमरी परंपरा के, पर्व-त्योहार के। इ प्रेम के उमंग बढ़ावत बा। जीवन में खुशबू महकावत बा। घरकच की करकच में रोज-रोज घटल नून-तेल-मरिचाई के चिंता से मुक्ति दिया के पूजा-पाठ-वंदन के उछाह बढ़ावत बा। मास्टराईन चहछननी देख के बोल पड़ली-का दिन आ गईल। चलनी की जगह चहछननी पर आम आदमी आ गईल। पड़ोस में केहू कविता पढ़त रहे-

बिगड़त बजट बाटे, अबो से सम्हार ल।
चाह बहुत पियला, अब खाली ओठ जार ल।
खूनचुसवन से अबकी बेर किनार ल।
महंगी बा एतना, चहछननी से चेहरा निहार ल।।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

11 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर -डगर की बात/एन डी देहाती

...हाथी की दातें जस, खाये के अउर-दिखावे के अउर

मनबोध मास्टर गोरखपुर कांड से लेके लखीमपुर कांड तक दुनो ओर से फ़इलावल रायता देख के दुखी हवें। विरोधी त विरोध करबे करिहन, कम से कम शासन-प्रशासन का त सच की साथे खड़ा रहे के चाहीं। गोरखपुर में कनपुरिया व्यापारी के पुलिसवाला मार के जान ले लिहलन, त जिला के दु जने बड़वर अधिकारी लोग कईसे बचाव में उतरल रहे लोग, दुनिया देखल। भला हो योगी बाबा के, जब जांच करवले त साँच उपरिया गईल। अब हत्यारन पर ईनाम धरा गईल। पुलिस तेज हो गइल। दरोगा के लईका टँगा गईलें। गोरखपुर के ममिला गर्मईले रहे तवले संतकबीर नगर में एक जने सोनार के पुलिस पीट के घाही क दिहलसि। थानेदार सहित तीन जने सस्पेंड हो गईलें। इ त बेलगाम पुलिस के काला कारनामा रहल। अब चलीं-लखीमपुर। जवन पर्यटन केंद्र भईल बा। मनई के जान के कीमत कीड़ा-मकोड़ा जेईसे समझे वाली सत्ता,करिया झंडा पर एतना कुपित भईल की कार चढ़ा के मार नवलसि। घटना की बाद उग्र भईल लोग-जेईसे को तेईसे निबटा दिहलन। दुनों ओर से आठ जने के आल्हर जान चलि गईल। जेतना मौत पर गम ना ओतना राजनीतिक बम चलल। 45 लाख के मुआवजा दिआईल। अब त साबित हो गइल कि उ किसान ही रहलें। हत्या की केस में मंत्री जी के बेटा नामजद हो गईलें। विरोधिन के ऊर्जा मिलल। एगो बात साफ हो गइल। कहे खातिर, एगो देश-एगो कानून, सुने में अच्छा लागेला। देश मे हत्या की बाद नामजद लोग जब ना मिलेला त घर के ही ना नात-रिश्तेदार के भी पुलिस पूजा क देले। गोरखपुर आ लखीमपुर दुनो घटना में पुलिस के तेवर ठंडा रहल। दुनो आरोपी रसूखदार रहलें। ओहर खाकी रहल, एहर खादी रहल। दुनों के नैतिकता गायब रहल। लखीमपुर की घटना पर सत्ता आ सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग नजरिया बा। यूपी सरकार कहति बा कि केहू के दबाव में हम कार्रवाई ना करब। साक्ष्य मिली त छोडबो ना करब। सुप्रीम कोर्ट कहत बा कि हम यूपी पुलिस की जांच से संतुष्ट ना हईं। कोर्ट त एतना ले कहि दिहलसि- का 302 में केहू पर केस लिखाला, त उ धराला की ना धराला? यूपी में खाकी आ खादी की ओर से जवन कारनामा भईल ओपर बस चार लाइन के इहे कविता बा पुलिस खातिर-

नैतिकता के बात राउर, सुनत में निक लगे,
हाथी के दांत, खाये के अउर-दिखावे के अउर।
ब्रह्मा जी जइसन रउरा चार हाथ पवले हईं,
मारे वाला अउर, बचावे वाला अउर।
हाथे में रउरी कानून के किताब बा,
पढ़े लीं अउर, पढाईलेईं अउर।
खाकी हईं त, अपराधिन के खाक करीं,
न्याय करीं, दुनिया मे बनी सिरमउर।।

18 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी की अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/एन डी देहाती

मन के रावन ना मरी, त का करिहै प्रभु राम

मनबोध मास्टर का चिंता बा धरम की बदलत रूप पर।पर्व-त्योहार की बदलत स्वरूप पर। दशहरा की दिन प्रभु राम निशाचर के वध कईले रहलें। उ त्रेता युग रहे। आज कपार पर कलिकाल चढ़ल बा। दशहरा के शाब्दिक अर्थ अब दश (रावण) हरा ( हरा-भरा) भी हो गइल बा। लोग जवले अपनी मन मे समाईल रावण के वध ना करी, तबले देश के दशा आ दिशा ना बदली। चारों ओर देखीं- सत्य सकुचात बा। झूठ मोटात बा। नैतिकता के पर्व के रूप में, न्याय की स्थापना की रूप में, अन्याय पर न्याय के जीत की रूप में, नास्तिकता पर आस्तिकता के विजय की रूप में दशहरा मनावला के परंपरा शुरू भइल। येही दिन त रावण के वध भइल रहे। युगन से रावण दहन होत आवता, लेकिन रावण जिंदा बा। देखला के दृष्टि चाहीं। दूसरे की दिल में ना अपने मन में झांक के देखीं। मन में रावण बैठल बा। मन के रावण मरला बगैर कागज-पटाखा की रावण के पुतला फूंकले ना शांति मिली ना संतुष्टि। प्रवृति आसुरी हो गइल बा। एगो सीता मइया की हरण में रावण साधु वेष बनवलसि। रावण त सीता मइया के खाली हरण कइलसि , आज हरण की तुरंत बाद वरण आ ना मनला पर मरण तक पहुंचवला के स्थिति बा। रामजी की नाम पर कथा, प्रवचन, भजन, राजनीति करे वालन के नजर दौड़ाई। महल -अटारी,मोटर-गाड़ी, बैंक -बैलेंस, चेला- चपाटी के लाइन लागल बा। रावण के एगो रूप नवरात्र के आखिरी दिन देखे के मिलल जब कन्या भोज खातिर मनबोध मास्टर घर-घर लड़की तलाशत रहलें। कई घर छनला की बाद बहुत मुश्किल से 21 कन्या मिलली। दरअसल लोगन की मन मे समाईल रावण की प्रभाव से एतना कन्या भ्रूण हत्या भइल की लड़की लोग के संख्या ही कम हो गइल। एकरा पीछे के कारण तलाशीं त साफ हो जाई की रावण के दुसरका रूप दहेज की आतंक से कन्या भ्रूण हत्या के संख्या बढ़त बा। आई असों की रामलीला में रावण दहन की पावन बेला में सौगंध खाइल जा की मन के रावण मार दिहल जाई। दहेज दानव के भगावल जाई। कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगावल जाई। अगर अइसन ना कइल जाई त रामजी रावण के वध ना क पइहन। आज इ कविता बा-

मन के रावन ना मरी, त का करिहै प्रभु राम।
पूजा-पाठ , प्रदर्शन हो गईल, आस्था के काम तमाम।।
भजन भूल के गन्दा गाना, बजे सुबह आ शाम।
कईसे मईया खुश होईहैं, जब भक्त लड़इहैं जाम।।

सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

भोजपुरी व्यंग्य प्रकाशित 2 अगस्त 21

13.9.21 के वॉयश ऑफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

हईचों-हईचों जोर लगावें, कुछ ना पायें बिगाड़ी

मनबोध मास्टर रिटायर मनई। विभाग विदा क दिहलसि की हमरे काम के अब ना बाड़न। घर के लोग भी उनके फालतू ही समझत बा। और त और अब मस्टराईन भी बमक जाली- दिन भर कुरसी तोड़त हवा, मोबाइल में आंख फोड़त हवा। मास्टर जब टीवी पर कवनो खबर देखें त नाती-पोता आके रिमोट छीन लें और गप्प से कार्टून लगा लें। रिटायर मनई के कहीं ठेकान नईखे। मास्टर के ना घर-परिवार में, ना गाँव-जवार में, ना साथ -समाज में कहीं इज्जत वाली जगह ना मिलल। पार्टी में ई झुनझुना जवन बंटाता, ओहू में मास्टर के लिस्ट से नाम गायब। मास्टर रीश खीश में बमकल हवें- का जमाना आ गइल, हाल ई बा कि अन्हरा बांटे रेवड़ी, तब्बो घरे-घराना खाई। जे तेल लगाई, उहे न आगे जाई। जे साँच कही,उ जुत्ता खाई। सगरो जगह एके हाल बा। जेके गरीबन के मसीहा बनाके टिकट दियात रहे ओके अब माफिया बतावल जाता। आ हेने देखीं- बाप रे बाप!अईसन तानाशाही।  नौ महीना में त लईका हो जाला, लेकिन किसान लोग नौ महीना से सड़क पर पिसान सानत बा । दिल्ली के तीन ओर से घेरले हवें, तिने गो कानून वापस करे के बा लेकिन कानून वापस करावला में तेरहो करम हो गइल। किसान भाई अब चाहे दिल्ली घेर$ चाहे लखनऊ। करनाल में ताल ठोक$ चाहें मुजफ्फरनगर में पंचाइत कर$। तोहरो रूप चिन्हाईले बा। ई नया भारत के नवका रूप ह। जब तीन सौ के सिलिंडर मिलत रहे त महंगाई डाईन भईल रहे। आज एक हजार के मिलत बा त महंगाई भौजाई भईल बा। तीस रुपया लीटर पेट्रोल दियावे वाला झामदेव सौ से ऊपर भईला पर मौनासन में बाड़न। देश के व्यवस्था सुधरला की नाम पर सरकारी संस्थान अपनी खास दोस्तन के ठेका पर दिहल जाता। चार आना के जोंहरि रखावे खातिर चौदह आना के मचान बनत बा। अब त ओखरी में मुड़ी पडलें बा, चोट गिनला के जरूरत नईखे। मास्टर बकबकाते रहलें तवले मस्टराईन के बेलना कपार पर ठक्क से गिरल। मास्टर माथा पकड़ के बुद्बुदईलें-अब घर घर में राजदरबारी घुस गईलें। लईका, मेहरी, नाती, पोता सबके मति मार लेले बाड़न सन। मस्टराईन कहली-
 
तीन सौ सत्तर हटल खट्ट से, देखल दुनिया सारी।
अयोध्या की भव्य मंदिर में, रहिहैं अवधबिहारी।
हईचों-हईचों जोर लगावें, कुछ ना पायें बिगाड़ी।
कहें देहाती राजकाज ह, देखीं पारा-पारी।।

20 सिंतम्बर 21 के सुनामी एक्सप्रेस में प्रकाशित

सियासी मंचों पर सतही बोल

-पांडे एन डी देहाती

यूपी में 22 का विधान सभा चुनाव है। राजनीतिक पार्टियों का होलियाना अंदाज शुरू है। सियासी मंचों पर एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सतही बोल बोले जा रहे। बोलने वाले अपने पद व प्रतिष्ठा का भी ख्याल नहीं रखते। सबकी भाषा लगभग एक ही निकल रही। याद आ रहा वह 75 का दौर जब देश की महान नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ गांवों तक दुर्वचन बोले जा रहे थे। नारे ईजाद किये थे, गली-गली में झंडी है.....। इंदिरा का सिंहासन हिला मोरारजी की सरकार बनी। उन्हें मूत... प्रधानमंत्री बना दिया गया। बीपी सिंह को किसी ने राजा से फकीर बनाया तो किसी ने भारत का कलंक कहा। यूपी में बसपा व सपा की सन्युक्त एंट्री हो रही थी। नारे गढ़े गए-मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गए जयश्री राम। मर्यादा भगवान श्रीराम को भी राजनीतिक मंचों पर सियासी गिरगिटों ने नहीं छोड़ा। बसपा ने जातिवादी सोच पर प्रतिकार में- तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार तक पहुंचा दिया। भाजपा ने श्रीराम को भुनाया तो बसपा ने हाथी को ही गणेश साबित किया। बाद की स्थितियों में बोल और बिगड़ते गए। टीवी चैनलों के डिबेट में भी टोटी चोर और फेकू जैसे शब्दों पर बहसें होती रहीं।

21 के दौर में 22 की चिंता। अब तो और भी जहरीली वाणियों को सुनने का सीजन आ गया है। योगी आदित्यनाथ जैसे संत की भाषा भी अब्बाजान से शुरू हो रही। राजनीतिक गलियारों में भी ऐसी भाषा पर कई सवाल खड़े हुए। लेकिन महन्त ने तो अपना 'तकिया कलाम' बना लिया। विधान परिषद में जब यह मुद्दा उठा, तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ''अब्बाजान शब्द कब से असंसदीय हो गया?'  राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा ने तो उनकी आलोचना में बेहद कड़े शब्दों तक का इस्तेमाल किया और कहा कि उनके पास उपलब्धि बताने को कुछ नहीं है, तो ये सब कर रहे हैं। अब उन्हें कौन याद दिलाए की उनके नेता कभी बिहार में भूरा बाल साफ करो का ज्ञान बांटते थे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर अलीगढ़ में हुई एक रैली में उन्होंने कहा, "पहले उत्तर प्रदेश की पहचान अपराध और गड्ढों से होती थी। पहले हमारी बहनें और बेटियां सुरक्षित नहीं थीं।  यहां तक कि भैंस और बैल भी सुरक्षित नहीं थे, आज ऐसा नहीं है। निसंदेह यूपी में कानून का राज स्थापित हुआ है लेकिन सड़कों की दशा तो खस्ताहाल ही है।


यूपी में बहस विकास पर होनी चाहिए लेकिन बहस बकवास पर हो रही है। योगीजी अब्बाजान के पीछे पड़े तो किसान नेता टिकैत हैदराबादी लैला को भाजपा के चाचा जान साबित करने में जुटे हैं। बुआजान की पार्टी ब्राह्मणों के गुणगान में लगी है तो बबुआजान की पार्टी सिंहासन काबिज करने की होड़ में है। अम्मीजान अपने बेटे-बेटी को यूपी का सियासी मिजाज बदलने के लिए मिशन पर लगा दिया है। मतदाता भाईजानों! आप वक्त की नजाकत को समझिए। इन सियासी गिरगिटों को पहचानिए। भाषा और बिगड़े बोल पर मत जाइए। विकास के मुद्दे पर ही अपना नेता चुनिये।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व समीक्षक हैं)




27 सिंतम्बर 21 के वॉयश ऑफ शताब्दी में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/एन डी देहाती

चार डेग चोर से, चौदह शराबखोर से...

मनबोध मास्टर बिहार की दौरा से वापस अइलें। बतवलें,-बिहार में चुनाव के पुरहर तैयारी बा। चुनाव चाहे पंचायत के होखे चाहे विधायकी के। शराब सबसे जरूरी बा। शराब ना रही,त सब काम खराब हो जाई। बिहार में नीतीश बाबू शराब बंदी का कईलें, तस्करन के लाटरी निकल गईल। उत्पादन बन्द बा, बिक्री त दूना चौगुना दाम पर होते बा। हर चट्टी चौराहा , बाग बगइचा , खेते की मेड़ें पर ले शराब मिल जाई। कच्ची, देसी, विदेशी सब बिकत बा। बिहारी पियक्कड़न के व्यवस्था हरियाणा आ यूपी समहरले बा। पहिले हरियाणा वाला शराब लदल ट्रक बड़ा पकड़ात रहे। अब तस्कर सुधर गईलें? कि यूपी-बिहार पुलिस में राग ताग बईठ गईल? बिहार में भरपूर मिलता, मतलब धकाधक पार होता। आज मधुशाला के रचयिता स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन जिंदा रहितन त कुछ येह कदर लिखतन- *गली गली में पीने वाले, गांव गांव में मधुशाला। कहने को हैं ईंट के भट्ठे, बिकती यहाँ रोज हाला। मिले सिपाही तस्कर से तो, करें क्या अधिकारी आला। मंगलसूत्र न बचने पाया, बिक गयी कंगन औ माला।* बिहार में शराब की बहार में यूपी के बड़वर योगदान बा। सस्ता माल कच्ची खातिर ईंट भट्ठन पर सांझ की बेरा झिल्ली खातिर लाइन लगत बा,नौसादर, यूरिया, मीठा, महुआ से आदिवासी फैक्ट्री में बनल प्लास्टिक की पन्नी में दस - बीस रुपये में सस्ता माल मिलता, बिहार जाके दूना में बिकत बा। सन 2016 से यूपी रेलता, बिहार घोटता। देसी भी बेसी बिकता। बिहार की बाडर से सटल जेकर ठेका मिल गईल, बुझी की लॉटरी निकल गईल। सांझ गहराते गहक़ी मेरड़ाये लागे लें। पुलिस पियादा के खइला के बेरा होला ओही समय मे कार की तहखाना में शराब भर के बिहार पार हो जाला। पुलिस मेन रोड पर घेरले, त तस्करवा गावें-गाईं कूदत फ़ानत हेला देलें। पगडण्डी घेरले त नईये से नदी पार करा देलें। बिहारी पियक़्क़डन के दुआ लगत बा। तस्करन के खूब तरक्की होत बा। देश के बड़वर वैज्ञानिक लोग जेतना खोज ना कईलें होई ओतना त शराब तस्कर कईलें। टैंकर की भीतर टैंक। ऊपर से खोलब$ जरल मोबिल निकली। ठेहा पर पेनी के टोटी खुली त हलाहल। ट्रक देखला में खाली दिखी, चेसिस में एक फुट ऊंचाई के तहखाना में शराब भरल मिली। बिहार की बाडरन के थाना चाहे यूपी के होखे चाहे बिहार के, शराब से अड्सल बा। थाना की मालखाना में जगह ना बा, पूरा थनवे गमकत बा। जिया-जंतु सब पीके पवित्तर होता। पहिले शराब पकड़ात रहे, अब कमाई के जरिया भईल बा-
चार डेग चोर से, चौदह शराबखोर से।
चौहत्तर डेग दूर रहीं, रउरा चुगुलखोर से।
कलम की जोर से, तस्कर डेरात रहलें,
अब सब काम होता, पईसा की जोर से।।

4 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी के अंक में छपा भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

जवन जिनगी रहल, उ खामोश हो गइल...

मनबोध मास्टर बेहद गमगीन हवें। हुतात्मा के श्रद्धांजलि देत,आज आपन बतकही शुरू कईलें-आपन गोरखपुर केतना निमन हो गइल रहे। सरकार मच्छर-माफिया से छुटकारा दिला देले रहे। ठोकिया गिरोह के एगो सिपाही लोग के ठोकला की बल पर इंस्पेक्टर हो गइल। जेकरा हाथे जोर, उहे न करी बटोर। लोग के मारत-मुआवत, पईसा बटोरत,ऊपर ले बाँटत राजकाज चलावत रहे। लोग के सुरक्षा के जिम्मेदारी रहल। तनख्वाह की पईसा के हाथ लगवले के कसम खइले रहे। ऊपरवार खातिर बड़ी मेहनत करे। अपनी हल्का की होटल की आरी पासी आपन मुखबिर लगवले रहे। मालदार आदमी होटल में ठहरे त रात की बेरा छापा डाल दे। डेरवा- धमका के, छीन - झपट के खात-खिआवत काम चलत रहे। येही बीचे एगो बड़वर नगर के मालदार व्यापारी अपनी मेहरी- बच्चा की साथे गोरखपुर के विकास देखे अइलें। ओकर दुगो दोस्त भी दूसरा प्रदेश से अइलें। सपना रहल, बाबा गोरखनाथ के दर्शन, रामगढ़ के विकास देखला के। मुखबिर की कहले पर इंस्पेक्टर अपन पंच प्यारन की साथे होटल में छापा मार दिहलें। इंस्पेक्टर बुझत रहलें, सोझ अंगूरी घीव ना निकली। त तनी सा टेढ़ कईलें। जानते रहलें, गागल- नीबू-बानिया, गर दबले कुछ दे। व्यापारी ईमानदार रहलें, अकड़ गईलें। बात बिगड़ गईल। पुलिस टीम की सेवा की चलते गोरखपुर के विकास देखला की पहिलहीं बेचारे गोलोक चल गईलें। जनमरवा इंस्पेक्टर के  बड़का अफसर लोग व्यापारी की विधवा के समझावते रह गईलें। उ केस लिखा दिहलीं। देश मे बाजा बाजि गईल। लीपापोती काम ना आइल। जे कहत रहे, पुलिस के देखते गिर गईले से चोट आ गईल, ओकरा मुँहे डाक्टर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट करीखा पोत दिहलसि। एगो इंस्पेक्टर की करनी से साढ़े चार साल के चमकत आपन शहर दागदार हो गइल। जवन छवो जने होटल में छरकत रहलें, अब भूमिगत बाड़न। अखबार से लगायत टीवी तक आ फेसबुक से लेके व्हाट्सप ग्रुप तक जांबाज जनमरवा पुलिस के चर्चा चलत बा। पब्लिक सड़क पर खोजति बा, वकील लोग कचहरी में खोजत बा। मृत व्यापारी के आत्मा एनकाउंटर के राह देखत बा। सोचति बा, यह गैंगेस्टरन के गाड़ी कब पलटी? इनहन की घर पर बुलडोजर कब गरजी? देहाती बाबा के कविता बस चारे लाइन में बा-
जवन जिनगी रहल, उ खामोश हो गइल।
का गोरखपुर आइल, ही दोष हो गइल?
पईसा के लोभी, आदमखोर हो गइल।
शेर बनल रहे, आज खरगोश हो गइल।।

वायश आफ शताब्दी 6 सितम्बर 21

नगर -डगर की बात/एन डी देहाती

कोटा के राशन ले आवें, मोदी छाप की झोरा में

मनबोध मास्टर कार पर सवार होके कोटेदार की दुआरी पहुँचलें। कोटेदार एगो गरीब मनई के झपिलावत रहे- कुकुर अईसन लार चुआवत चलि अईले। तोरा लगे कारड- ओरड हइये नईखे। हम कहाँ से राशन देईं। गरीब गिड़गिड़ात रहे, लइके उपास करत हवें। कवनो व्यवस्था क द भईया। कठकरेज कोटेदार ना पसिजल। खैरात बंटाता एईजा। चल भाग। गरीब मुँह ओरमवले कोटेदार की दुआर से  चलि गईले। मास्टर के देखते कोटेदार चहक के बोललन-आईं आईं, ऐह बेरी सरकार राशन की साथे-साथे झोरवो देले बा। मोदी छाप झोरा में मुफुत वाला राशन लेके मास्टर गाव की बहरा किराना की दुकान पर गईलें। राशन बेच के सरकारी ठेका पर जाके देसी मार के मगन हो गईलें। गरीब प्रधान जी की दुआरी पहुंच के गिड़गिड़ात रहे। हमार कारड बन जाइत, त हमहुँ राशन उठइती। प्रधान के पारा चढ़ि गइल। ओट हमरी विरोधी के दिहल$ त ना बुझाईल की हमरो जरूरत पड़ी। अबे सरकार नया कारड बनावला पर रोक लगवले बा। ई बात सुनी के अपनी गरीबी पर आंसू बहावत गरीब अपना घरे चलि गइल। प्रधान जी अखबार हाथ मे लिहले बड़बड़ाये लगले- ई आधार वाली बेमारी बड़ा बाउर बा। बैंक में आधार, कार्ड बनावला में आधार, मोटर, गाड़ी, जमीन, जायदाद ख़रीदला में आधार। अब देखीं किसान के आपन गल्ला बेचलों में आधार। धत तेरी आधारे के। प्रधान के पड़ोसी बोल पडलें- ई चोरबाजारी के व्यवस्था आधार से ही सुधरी। देखीं, अपना यूपी में 64 हजार लोग आधार से ही धरा गईले कि ई लखपतिया गरीब हवें। कोटेदार की मशीन में अंगूठा लगा के पांच -पांच किलो राशन उठावे वाला लोग सरकारी गोदाम पर तीन-तीन लाख के गल्ला बेचले बा। अब सब सुधर जाई। कोटेदार आ प्रधान लोग के चोरी आ लखपतिया गरीब के बलजोरी,सब कर थाह लाग जाई। पड़ोसी की बात पर प्रधान और भड़क गईलें- हं, हं प्रधनवे आ कोटेदरवे खाली चोर बाड़ें। जवना नेताजी का दिल्ली की लुटियंस में तीन सौ करोड़ के बंगला किनाईल ह उ लोग बड़ा ईमानदार बा। साढ़े चारे साल में एतना कमा लिहलन। हम्मन के जांच पर जांच होला। नेता लोग के जांच काहें नईखे होत।

कोटा के राशन ले आवें, मोदी छाप की झोरा में।
कई लाख के गेहूं बेचें, भरि भरि के बोरा में।
अईसन ई खाद्यान्न व्यवस्था, कोटेदार की कोरा में।
कहें देहाती गड़बड़झाला, दिन दहाड़े अजोरा में।।
हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद