रविवार, 31 अक्तूबर 2010

भोजपुरी गजल

गजल


आज दीपावली ह. चारू ओर मेला के धूम-धाम के बीच मां  के होड बचपन में बहुत रहे .लेकिन आज गोरखपुर में रहला के बावजूद हम इ आनंद से अछूत बानी काहे कि इहां दीपावली के नाम पर राम लीला तक ही लोग अपने के सीमित राखे ला.मकान के सारा लोग ए गहमागहमी के हिस्सा बने चल गईल बा .हम घर में बैठ के ब्लॉग लिखतानी. हमर रूचि भीड-भाड वाला जगह पर जाए से बचे में ही ज्यादा ह .
 
अभी तक ब्लॉग पर बहुत कुछ लिखल गईल लेकिन हम अबकी दाव भोजपुरी के एगो काफ़ी समर्थ गीतकार, कवि, गजललेखक, साहित्य के सब विधा पर समान रूप से लेखनी चलावेवाला श्री दिनेश भ्रमर के कुछ भोजपुरी रचना दे तानी.भोजपुरी आ हिन्दी साहित्य पर बराबर अधिकार रखे वाला श्री दिनेश जी के कई गो रचना देश के विश्वविधालय के पाठ्यक्रम में भी लागल बा आउर बहुत किताब भी इहां के लिखले बानी.ज्योतिष पर भी इनकर काफ़ी अच्छा पकड बा. महाविधालय में कुछ दिन व्याख्याता पद पर काम कइला के बाद उहां के वर्तमान में खेती-बाडी के काम अपन आवास स्थान बगहा में रह के  देखतानी.
  भोजपुरी साहित्य में गजल आउर रूबाई के जगह दिवावे में इनकर महत्वपूर्ण नाम लेवल जाला. इनकर रचित कुछ निमन-निमन रचना अपना हिसाब से दे तानी अपनहूं लोगन के ई स्वच्छ-सुंदर आ शिष्ट रचना जरूर पसंद आई.

      गजल
आंख में आके बस गइल केहू,
प्रान हमरो परस गइल केहू.
हमरे लीपल पोतल अंगनवां में,
बन के बदरा बरस गइल केहू.
गोर चनवा पै सांवर अंधेरा,
देखि के बा तरस गइल केहू.
फूल त कांट से ना कहलस कुछु,
झूठे ओकरा पे हंस गइल केहू.
कठ के जब बजल पिपिहरी तब,
बीन के तार कस गइल केहू.


       रूबाई
मन के बछरू छ्टक गइल कइसे,
नयन गगरी ढरक गइल कइसे.
हम ना कहनी कुछु बयरिया से,
उनके अंचरा सरक गइल कइसे.

           गजल
नजरिया के बतिया नजरिया से कहि द,
ना चमके सोनहुला किरनिया से कहि द.
          नयन में सपनवां बनल बाटे पाहुन,
          सनेसवा जमुनियां बदरिया से कहि द.
लिलारे चनरमा के टिकुली बा टहटह,
लुका जाय कतहूं अन्हरिया से कहि द.
          न आवेले सब दिन सुहागिन ई रतिया,
          तनी कोहनाइल उमिरिया से कहि द.
नयन के पोखरिया भइल बाटे लबलब,
ना झलके भरलकी गगरिया से कहि द.

       दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

नर्वदेश्वर पाण्डेय  देहाती 

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

छठ

सूर्य आराधना का पर्व छठ..........!!!!!!!!!!!!!!
ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। इस कारण हिन्दू शास्त्रों में सूर्य को भगवान मानते हैं। सूर्य के बिना कुछ दिन रहने की जरा कल्पना कीजिए। संभव है क्या...? जीवन के लिए इनका रोज उदित होना जरूरी है। कुछ इसी तरह की परिकल्पना के साथ पूर्वोत्तर भारत के लोग छठ महोत्सव के रूप में इनकी आराधना करते हैं।

माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती रही है। छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है।

यह भी कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। इसका सबसे प्रमुख गीत
'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़राय
काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए' है।
दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। चार दिनों के इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है।

वैसे तो छठ महोत्सव को लेकर तरह-तरह की मान्यताएँ प्रचलित हैं, लेकिन इन सबमें प्रमुख है साक्षात भगवान का स्वरूप। सूर्य से आँखें मिलाने की कोशिश भी कोई नहीं कर सकता। ऐसे में इनके कोप से बचने के लिए छठ के दौरान काफी सावधानी बरती जाती है। इस त्योहार में पवित्रता का सर्वाधिक ध्यान रखा जाता है।
इस अवसर पर छठी माता का पूजन होता है। मान्यता है कि पूजा के दौरान कोई भी मन्नत माँगी जाए, पूरी होती। जिनकी मन्नत पूरी होती है, वे अपने वादे अनुसार पूजा करते हैं। पूजा स्थलों पर लोट लगाकर आते लोगों को देखा जा सकता है। 

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

खूब काटती चांदी यह तो हाथीवाली रानी है..........

खूब काटती चांदी यह तो हाथीवाली   रानी है..........


मोटी चमड़ी , मोटी दमड़ी मोट नोट के माला !
उनकर  लोगवा  उन्हें पेन्हावल , दूसरा के काहे दुखला !!
नोट पर टिकेट , नोट पर सत्ता ! नोट नहीं कट जाई पत्ता !!
नोट पर कुर्सी नोट पर बत्ती ! नोट नहीं त लत्ता-मुक्की !!
नोट के खोट न समझ बाबु ! नोट खातिर जन मराला !!
उनकर  लोगवा  उन्हें पेन्हावल , दूसरा के काहे दुखला !!
नोट के चंदा, नोट के धंधा ! नोट करावे कम भी गन्दा !!
नोट पर साधू, नोट पर संत ! नोट पर चोर-उचक्का लंठ !!
नोट  लक्ष्मी  के स्वरूप ह ! नोट के चहुओर  बा बोलबाला !! 
उनकर  लोगवा  उन्हें पेन्हावल , दूसरा के काहे दुखला !!

नर्वदेश्वर पाण्डेय 'देहाती'

एक दिन कS चांद

एक दिन कS चांद.............
बतकही। सत्ताइस अक्टूबर दो हजार दस की रात के बात। इन्टरनेट  पर खबरन से खेलत माउस पर हाथ। तबले बजल मोबाइल के घंटी। अरे, इ का? अबहीन त S आठ बजत बा। घर से फोन काहें आ गइल। मानसिक रूप से तैयार होत रहलीं कि डांट-फटकार सुने के परी। लगता बा फिर हमसे गलती भइल बा। किचेन के बर्तन ना धोके अइलीं का? लेकिन सर्वदा कर्कश गर्जना की जगह सुनाइल मिसिरी घोरल आवाज। ए जी! सुनत हईं? राउर आरती उतारे के बा। हमरा व्रत तोड़े के बा। दिनभर निर्जल व्रत रहलीं ह। हम लगलीं सोचे- मैडम कहिया से एकादशी भुखे लगली। माई-दादी-दादा त भुखेंले। उहो एकादशी में हमार आरती काहें उतरी।
भगवान की तरफ से भाग्य बना के आइल बानीं। घर के मलिकई कपार पर बा, त मार-मुकदमा, फौजदारी घटल-बढ़ल, हीन-नात, नेवता-हंकारी पर-पट्टीदारी, खेती-बारी, खाद-बीया, कटिया-पिटिया सब निभावे के बा। कवनो चीज में कमी भइल त हमरे कपार नोंचाई। इ आज आरती कवना बात के? बड़ा हिम्मत क के पूछि बइठलीं- श्रीमती जी! आज कवन व्रत ह, काहें हमार आरती उतारब? उ बतवलीं- करवा चौथ। हमरा मुंह से हंसी निकर गइल। उ कहली-हंसी जनि जल्दी आईं। चांद उगेवाला हवें। उनके चलनी से निहारे के बा, आ रउरा के भर नजर देखे के बा। रउरे हमार चांद हईं। हमरा फिर हंसी छूटि गइल। हमेशा हमार नामकरण गोबरगनेश, घोंचू, बकलोल, करिझींग्गन, बतबहक, घरघूमन, चौपट, अड़भंगी, कंजूस अइसन शब्दन से होत रहे। आज जमाना पलट गइल। हम चांद हो गइलिन। एक दिन क चांद।
धन्य हो करवा चौथ। ना कवनों पुराण में येकर व्याख्या बा ना कवनो धर्मशास्त्र में। फिल्मी दुनिया वाला अस देखवले कि घर-घर में छा गइल करवा चौथ। खैर, मैडम चलनी से चांद निहरली, हमके चांद बनवलीं, हमहूं उनकर चेहरा निहरलीं, त आज सुरसा, ताड़का, त्रिजटा, सूर्पणखा, चुड़ैल सा दिखे वाली छाया समाप्त हो गइल रहे। उ सावित्री अइसन सुघ्घर, सुकांत, सती, सौंदर्य के मूरति बनि गइल रहली
। 

थाली सजा के हमार आरती उतारत रहली, आ हम गुनगुनाये लगलीं- जनम-जनम का साथ है हमारा तुम्हारा...।
                              एन. डी. देहाती  

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

रउरो में कवनो के सींग कबो धंसी................

तोहरा येह सिद्धान्त पर, हमरो आवे हसीं

रउरो में कवनो के सींग कबो धंसी...

रउरी सिद्धान्त पर हमरा हसी आवत बा । रउरा बहुत बड़वर पशु प्रेमी हईं (पता ना मनई से प्रेम ह.. कि ना) रउआ हाईकोर्ट से मुकदमा दर्ज करावत हई । नगर निगम के महापौर अन्जु चौधरी, नगर आयुक्त राजमंगल, पूर्वनगर आयुक्त वीके दुबे सहित तीस लोग पर मुकदमा दर्ज करे के आदेस दिहलसि। आरोप बा कि 2007 की पहिले से लेके अबतक दस हजार गोवंशीय पशुधन के क्रुरता पूर्वक पकड़ के काजी हाऊस में बन्द क... दीहल बा। रउरी पशु प्रेम के बंदगी बा। हकीकत ई बा कि महानगर के सड़कन पर अबहीनों दस हजार से ऊपर की संख्या में छुट्टा जानवर घुमत हवें। हार्न के पों पों बाजत रहे, लेकीन ऊ नन्दी महाराज लोग पगुरी कइला में लागल रहेला। जाम के झाम में भी येह लोग के बहुत योगदान बा। सड़क पर जगह-जगह मुफ्त में कइल गोबर पर जब कौनो चरपहिया के चक्का चढ़े ला त बगल से गुजरत बाइक सवार चाहे पैदलिहा मनई के कपड़ा पोतनहर अइसन हो जाला। सब्जी मार्केटन से आसमान की भाव चढ़ल तरकारी खरीद के बहरियात कवनो माई-बहिन पर के झपट्टा मार के चौपाया गुण्डा चबा जालन त ओह घर में 'रोटी प्याज' के ही आसरा रहि जा ला। शहर के पॉस इलाका में घूमत टहलत कउनो बड़मनई के पिछवाड़ा में सींग लगा के उलाटत शायद रउरा ना देखले हईं। यूनिवर्सिटी परिसर में बिगड़ैल सांड़ जब कउनो छात्रा के चहेंट ले ला अ बेचारी के हाथ से कापी किताब छितरा जा ला। जान बचावल मुश्किल हो जाला ओह दृश्य के रउरा ना देखले होखब। कबो कबो सड़क पर सांड़न के जंग अ खुरचारी दौड़ में राहगीर भी गंतव्य तक ना पहुंच के अस्पताल पहुंच जा ला। अइसन बहुत उदाहरण बा जवना से पशु के प्रति प्रेम ना जागि सकेला। शहर के चर्चित चितकबरा, कनटूटा, लंगड़ा, भुंवरा, काना, कैरा, गोला, घवरा में कवनो से रउरा प्रेम ना देख सकेलिन। इ कवनो आतंकवादिन से कम ना हवें। रउरा बहुत बड़वर पशु प्रेमी होइब, हम ना जानत हईं। लेकिन अपना आहाता में केतना बीमार, अचलस्त गोवंशी के दवा-दारू, खरी भूंसा के इंतजाम कइले हईं एहुके खुलासा क के समाज के सामने रख दीं। पशु, पशु होलें। मनई के प्रति प्रेम भाव देखाईं। जवन पशु खूंटा से बन्हि के ना रहेलन उ अवारा कहल जालन। उनकर असली जगह जंगल ह। जहां जंगलराज चलेला। गोरखपुर शहर ह, महानगर ह। एइजा नगर निगम के भी कुछ नियम बा। नागरिकन की सुरक्षा खातिर यदि अवारा पशुन पर डंडा चलता त कवनो बाउर नेइखे होत। अबे बहुत ढीलाई बा। अगर सही में अवारा पशु काजी हाउस में बंद रहितन त सड़क पर ना दिखतन। आंख खोलीं, सड़क पर जानवरन के 'डाराज' देखीं, ओकरा बाद कवनो मनई पर मुकदमा ठोंकीं। हमरा त रउरी येह सिद्धांत पर आवता हंसी, रउरो में कवनो के सींग कबो धंसी।।  
एन. डी. देहाती 

‘अलादीन’ के ‘जिन्न’ तूं जिअS सौ साल...............





‘अलादीन’ के ‘जिन्न’ तूं जिअS सौ साल...............
युग-युग जीअS। आगे इ ना कहि सकेलिन ‘बेटा-पतोहु के लुगरी सीअS’। ‘अलादीन’ के ‘जिन्न’ तूं जिअS सौ साल। हर साल करS एगो नया कमाल, नया धमाल। फिल्मी बोतल से निकाल के जिन्न। नया इतिहास रच दS फिन। हमरी पूर्वांचल में कहल जाला- ‘साठा त पाठा’। तूं आठ साल और खींच के जवान लागेलS। तोहरी अड़सठवां जन्म दिन पर हजारन, लाखन, करोड़न बधाई। बड़ा लोग के करोड़पति बनवलS, तनीं हमरो ओर ध्यान दीतS। तूं वाकई में बालीवुड के ‘शाहंशाह’ हवS। हम तोहरी स्टाइल के फैन लरिकइएं से हईं। जब-तब कवनो सिनेमाहाल में तोहार फिल्म लगेला हमके कवनो ‘दीवार’ चाहे ‘जंजीर’ ना रोंक पावल। ‘आंखे’ त फाड़-फाड़ तोहार फिल्म देखलीं। ए छोरा गंगा किनारे वाला तू अड़सठ में भी छोरा बनल रहS। छरकत रहS। हमार बात मानS। हम्मन के ‘कभी अलविदा ना कहना’। ए ‘डॉन’! जब तूं ‘खई के पान बनारस वाला’ हमरी बन्द बुद्धि के बक्शा खोलवा दिहलS हमहूं बहुत दिन ले दोहरवली तोहार उ लाइन- ‘मेरे अंगने में तुम्हार क्या काम है।‘ ‘चीनी कम’ में बड़ा लोग चासनी चाटल। जीभ अब्बो चटर-पटर करत बा। ‘बागवान’ में तS घर-घर के पुरनिया माई-बाप लोग के आंख खुल गइल। का जमाना आ गइल। बाग के मालिक जवन सींचलस, सोहलस, पललस तवने अपनी फूलन के सुगंध से वंचित हो गइलन। ‘पा’ के आरो तोहके का कहीं? अपना बेटा कS बेटा बनि के फिल्म जगत में एगो नया मानदंड स्थापित कS दीहलS। जीवन में बहुत कुछ मिलल। ‘कभी खुशी कभी गम’ मिलल लेकिन निगम होके ईश्वर से तोहरी लंबी उम्र के प्रार्थना करत हईं। जब ‘कुली’ का चोट लगल रहे तब भी हजार हाथ दुआ खातिर उठल रहे। दूनिया में नायक-खलनायक के अभाव ना बा। अभाव बा तS नेक दिल इन्सान के। अइसने अभाव में तू अलादीन के जिन्न अइसन सबकी कामे आवेलS। तोहरी लंबी आयु, सुघ्घर स्वास्थ्य खातिर ईश्वर से प्रार्थना बा।
एन. डी  देहाती 


















शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

तोहरा येह सिद्धान्त पर, हमरो आवे हसीं



तोहरा येह सिद्धान्त पर, हमरो आवे हसीं

रउरो में कवनो के सींग कबो धंसी...

रउरी सिद्धान्त पर हमरा हसी आवत बा । रउरा बहुत बड़वर पशु प्रेमी हईं (पता ना मनई से प्रेम ह.. कि ना) रउआ हाईकोर्ट से मुकदमा दर्ज करावत हई । नगर निगम के महापौर अन्जु चौधरी, नगर आयुक्त राजमंगल, पूर्वनगर आयुक्त वीके दुबे सहित तीस लोग पर मुकदमा दर्ज करे के आदेस दिहलसि। आरोप बा कि 2007 की पहिले से लेके अबतक दस हजार गोवंशीय पशुधन के क्रुरता पूर्वक पकड़ के काजी हाऊस में बन्द क... दीहल बा। रउरी पशु प्रेम के बंदगी बा। हकीकत ई बा कि महानगर के सड़कन पर अबहीनों दस हजार से ऊपर की संख्या में छुट्टा जानवर घुमत हवें। हार्न के पों पों बाजत रहे, लेकीन ऊ नन्दी महाराज लोग पगुरी कइला में लागल रहेला। जाम के झाम में भी येह लोग के बहुत योगदान बा। सड़क पर जगह-जगह मुफ्त में कइल गोबर पर जब कौनो चरपहिया के चक्का चढ़े ला त बगल से गुजरत बाइक सवार चाहे पैदलिहा मनई के कपड़ा पोतनहर अइसन हो जाला। सब्जी मार्केटन से आसमान की भाव चढ़ल तरकारी खरीद के बहरियात कवनो माई-बहिन पर के झपट्टा मार के चौपाया गुण्डा चबा जालन त ओह घर में 'रोटी प्याज' के ही आसरा रहि जा ला। शहर के पॉस इलाका में घूमत टहलत कउनो बड़मनई के पिछवाड़ा में सींग लगा के उलाटत शायद रउरा ना देखले हईं। यूनिवर्सिटी परिसर में बिगड़ैल सांड़ जब कउनो छात्रा के चहेंट ले ला अ बेचारी के हाथ से कापी किताब छितरा जा ला। जान बचावल मुश्किल हो जाला ओह दृश्य के रउरा ना देखले होखब। कबो कबो सड़क पर सांड़न के जंग अ खुरचारी दौड़ में राहगीर भी गंतव्य तक ना पहुंच के अस्पताल पहुंच जा ला। अइसन बहुत उदाहरण बा जवना से पशु के प्रति प्रेम ना जागि सकेला। शहर के चर्चित चितकबरा, कनटूटा, लंगड़ा, भुंवरा, काना, कैरा, गोला, घवरा में कवनो से रउरा प्रेम ना देख सकेलिन। इ कवनो आतंकवादिन से कम ना हवें। रउरा बहुत बड़वर पशु प्रेमी होइब, हम ना जानत हईं। लेकिन अपना आहाता में केतना बीमार, अचलस्त गोवंशी के दवा-दारू, खरी भूंसा के इंतजाम कइले हईं एहुके खुलासा क के समाज के सामने रख दीं। पशु, पशु होलें। मनई के प्रति प्रेम भाव देखाईं। जवन पशु खूंटा से बन्हि के ना रहेलन उ अवारा कहल जालन। उनकर असली जगह जंगल ह। जहां जंगलराज चलेला। गोरखपुर शहर ह, महानगर ह। एइजा नगर निगम के भी कुछ नियम बा। नागरिकन की सुरक्षा खातिर यदि अवारा पशुन पर डंडा चलता त कवनो बाउर नेइखे होत। अबे बहुत ढीलाई बा। अगर सही में अवारा पशु काजी हाउस में बंद रहितन त सड़क पर ना दिखतन। आंख खोलीं, सड़क पर जानवरन के 'डाराज' देखीं, ओकरा बाद कवनो मनई पर मुकदमा ठोंकीं। हमरा त रउरी येह सिद्धांत पर आवता हंसी, रउरो में कवनो के सींग कबो धंसी।।                          
N.डी. देहाती 

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

संत-संत में भेद है, कुछ मुंड़ा कुछ झोंटा....


संत-संत में भेद है, कुछ मुंड़ा कुछ झोंटा....
भारत देश विभिन्नता में एकता के दर्शन करावे ला। कृषि प्रधान देश की बावजूद किसान से कम महान एइजा के संत, महात्मा, भगवान ना हवन। ढ़ाई अक्षर के शब्द संत के भी अंत पावल बड़ा कठिन काम हs। अयोध्या मामला के बातचीत चलत रहे। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष मंहत ज्ञानदास, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि जी महाराज  हाशिम चाचा की साथे रोज-रोज फोटो खिचवावत रहलें। बातचीत की जरिये ममिला सुलझावत रहलें। एही बीच में राममंदिर से जुड़ल संत उच्चाधिकार समिति के भी बैठक में अयोध्या आन्दोलन के अगुआई करे वाला ढेर संत-महात्मा बिटुरइले। कुछ नेतागिरी करे वाला संगठन के लोग भी गइलें। तय कs दिहलें कि जमीन के विभाजन स्वीकार ना बा। मतलब हाईकोर्ट के निणर्य से संतुष्ट ना हवें इ संत। अब संत-संत में भेद हो गइल। अखाड़ा तs अलगा-अलगा चलके रहे। हिन्दू धर्म के राहि देखावे वाला संत के राह भी जुदा-जुदा हो गइल। निरमोही अखाड़ा तs एकदम से मोह त्याग के सिंहल(विहिप) की टिप्पणी पर उखड़ गइल। निर्मोही अखाड़ा के संत रामदास एतना ले कहलन कि रामजन्म भूमि न्यास अवैध बा। एकर गठन दिल्ली में भइल रहे। संत उच्चाधिकार समिति गोवा में बनल  रहे। जब दूनो के गठन अयोध्या में भइबे ना कइल तs अयोध्या की बारे में का बतिअइहन।
अब तरह-तरह के संत आ तरह-तरह की बात पर इ कहल जा सकेला कि जब हिन्दू समाज के अगुआ लोग में खुद फुटमत बा तs अयोध्या के हाल श्रीराम जी की ही हाथे रही। संत में कुछ....खुल्ला बाड़न, तs कुछ दाढ़ी-झोटा बाल हवें। संत के रंग, रुप, स्वभाव पर इ कहल जा सकेला-

                             
संत-संत में भेद है, कुछ मुड़ा कुछ झोटा।
  कुछ नीचे से खुल्लम खुला, कुछ बान्हे मिले लंगोट।।



N.डी.Dehati

हेलमेट लगाई, तब प्रेसवार्ता मे जाई.....


हेलमेट लगाई, तब प्रेसवार्ता मे जाई.....
बुखारी का ‘बुखार’ हो गइल बा। ज्वर जब ज्यादा चढ़ि जाला तs मनई असमान्य हो जाला। ज्वर से पीडित कई लोग बउरा जालें। अइसन लोग के ‘दवाई’ के जरुरत पड़ेला। अब सवाल इ बा कि बुखारी साहब कs बुखार के उतारी? हजरतगंज कोतवाली में दर्ज एनसीआर(323,506) से उनकर कवन ‘रोआं’ टेढ़ हो जाई। गनीमत बा, बुखारी साहब आपन आपा खो के अपनी ही बिरादरी के पत्रकार मोहम्मद वहीद  चिश्तीसे मारपीट कइलन। बात लखनऊ की गोमती होटल के हs। दिल्ली के जाम मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सय्यद अहमद बुखारी के प्रेस कांन्फेस चलत रहल। ‘दास्तान-ए-अवध’ के सम्पादक मोहम्मद वहीद चिश्ती सवाल दागि दीहलें- ‘जब 1528 की खतौनीमें अयोध्या के विवादित भूमि राजा दशरथ के नाम से बा, तs आप दशरथ की बेटा राम की नाम पर जमीन काहें ना दे देत हई।‘ सवाल तीर अइसन बुखारी कि करेजा में धंसि गइल। उ संपादक के कांग्रेश कs एजेन्ट बना दिहलें। गर्दन नापे के घोषणा क s दीहलें। एकरा बाद भी करेजा ना ठंढाइल तs संपादक के दौडा-दौडा पीटलन।
N.D.Dehati

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

Dehati Ji

योगी बाबा गेरुआधारी, मुंह पर करिया कपड़ा…................
N.D.Dehati
रंग की ममिला में बाबा का पसंद ह ‘गेरुआ’।
समूचा पूर्वांचल में येह ‘गेरुआधारी’ के समर्थक हवें। गांव-गांव केसरिया झंडा हिंदू-हिंदुत्व ही ना अन्याय की प्रतिवाद में तनेन होके खड़ा मिलेला। बाबा बोलेलें तS प्रशासन के चूल हील जाला। सम्मेलन करेलन तS जनसैलाब उमड़ जाला। गरमा-गरम भाषण देवे वाला बाबा आज मौन रहलन। मौन ही ना, मुंह पर करिया कपड़ा बांधि लिहलें। गेरुधारी की मुंह पर करिया कपड़ा देख के रोंआ खड़ा हो गइल। बाबा बाजार बंद करा सकेलन, बस रोकवा सकेलन, ट्रेन ठप्प करा सकेलन। बाबा की एगो संदेश पर उनकर सेना पूर्वांचल बंद करा दे, लेकिन बाबा आपन मुंह बंद कS लिहलन करिया कपड़ा से। दरअसल इ मौन गुस्सा रहल। बाबा के गुस्सा वाजिब बा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अब तक करीब पचास हजार लरिकन के जान नवकी बेमारी से चलि गइल। अंगरेजी में येह बेमारी के इंसेफेलाइट कहल जाता। कुछ लोग जापानी बोखार तS कुछ लोग मस्तिष्क ज्वर कहत हवें। नाव कुछऊ होखे इ ताड़का राक्षस अइसन लरिकन के खात जात बा। इ बेमारी ना महामारी हो गइल बा। केतने महतारिन के गोद सून हो गइल। केतने बहिनिन के भाई आपन जान गवां दिहलन। केतने बाप रोवत-बिलखत लइका लेके अइलें आ कान्हे पर लाश लाद के गइलन। लोग की दुख से बाबा का भी पीड़ा पहुंचल। ना रोक पवलें तS मुंह पर करिया कपड़ा बान्हि लिहलें।
बाबा अपने संगी-साथी, समर्थन की साथे गोरखपुर की कमिश्नर पीके महांति से मिललें। बाबा के मांग बा कि बीआरडी मेडिकल कालेज की साथ-साथ मंडल की सजो सरकारी अस्पताल में नवकी बेमारी (इंसेफेलाइटिस) की उपचार के व्यवस्था होखे के चाहीं। बाबा के बात तS सोरहों आना ठीक बा, लेकिन हकीकत इ बा सरकारी डाक्टर सरकारी कार्य छोड़ि के प्राइवेट धंधा-पानी में लागल हवें। बाबा के दूसरका मांग बा कि गोरखपुर महानगर की साथ-साथ सजो कस्बा आ ग्रामीण क्षेत्र में साफ-सफाई होखे के चाही। बाबा!  महानगर वाली ‘मैडम’ तS रउरी सथवे हई। नगर में केतना साफ-सफाई आ फागिंग होला हर नगरवासी ढंग से जानत हवे। कस्बा तS कमाए वालन की हाथ में दीया गईल बा। बजट-गटक नारायन। रहल बात गांव के तS हर गांव में सफाईकर्मी के तैनाती भइल बा। बड़ जाति वाला नौकरी के नाम पर सफाईकर्मी (भंगी) तS बनि गइले लेकिन झाड़ू उठावला में सकुचात हवें। बाबा!  रउरा सड़क से लेके संसद तक येह बीमारी से बच्चन के बचावे खातिर संघर्ष करत बानी। रउरा धन्य बानीं। रउरा उ विश्वामित्र बानीं जवन ‘ताड़का वध’ करा के दम लेइब। हम गांव के निपट गवांर मनई राजा दशरथ तS ना बनि सकेलिन लेकिन अपना ‘राम-लक्षुमन’ के रउरी एह संकल्प की साथे जोड़ सकेलिन। बाबा! मुंह से करिया कपड़ा हटाई, आ आदेश देईं। हमार पुत्तर लोग शासन-प्रशासन की लापरवाह व्यवस्था की मुंह पर करिखा पोते खातिर तैयार हवें। इन्सेफेलाइटिस की मुद्दा पर सबका एक होखे के चाही, जे एक होखे के ना तइयार बा ओहू की मुंह पर करिखा लगा देइब दौड़ा के। 
N.D.Dehati

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

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वोट ओटिया के सब् पटिया के.........
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उत्तर प्रदेश में पचांयत महासग्राम चलत बा। बड़ हो चाहे छोट, दूब्बर हो चाहे मोट सब लोग हाय कुरसी-हाय कुरसी करत बा। वोट ओटिया के , सबके पटिया के सब बनल बा प्रधान, प्रमुख आ जिला पंचायत अध्यक्ष। जन सेवा की नाम मेवा काटे के खातिर लोग उतर गइल बा। पढ़वइन का भी प्रधान भावनत। नोकरी ना मिली त प्रधानी कौने नोकरी से कम बा। पांच साल में कमा के लाल हो जइहन। उत्तर प्रदेश में बड़े-बड़े रथी-महारथी लोग भी अपनी कुल- परिवार की लोग के उतार देले हवें। उनकर विचार बा हम दिल्ली-लखनऊ के रीजनीति ककरी त घर परिवार के लोग काहें बेरोजगार रही। उहो लोग पद-प्रतिष्ठा, रुपया-पइसा कमाये खाये की जोगाड़ में लाग जाउ। बड़े-बड़े लोग क संतोष धाराशाही हो गईल बा। माननीय कहाये वाले लोग अपनी मेहरी, बच्चा, चच्चा, भाई-भतीजा के पंचायत चुनाव में उतार देले बाड़न। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बीर बहादुर सिंह के बेटा प्रदेश में वनमंत्री हवन। एतना बड़वन पद रहले के बाद भी फतेह बहादुर सिंह जिला पंचायत सदस्य के चुनाव फतह कइल चाहत हवे। उ अपनी मेहरारु साधना सिंह के चुनाव लड़ावत हवें। सदस्य हो गइल के बाद जनसेवा के क्रेज अउर बढ़ि जाऊ। वनमंत्री से वित्तमंत्री कम ना बाड़न। लाल जी वर्मा अपने मेहरारु शोभावती के अंबेडकर नगर से जिला पंचायत सदस्य के चुनाव लड़ावत हवें। जीत गइल के बाद ललकी बत्ती उनक शोभा बढ़ाई। वन आ वित्त से कम उर्जा मंत्री भी ना हवन। अपनी घर-परिवार के सजो पुर्जा के कवनो ना कवनो पद पर बइठवला में लागल हवें। रामवीर उपाध्याय अपने अपने भाई विनोद उपाध्याय के मेहरारु सरोज उपाध्याय के जिला पंचायत के चुनाव लड़वावत हवें। दूसरा भाई रामेश्वर उपाध्याय जवन ब्लाक प्रमुख रहलन फिर से बीडीसी हो गइलन निर्विरोध, मतलब बिना विरोध के। रामवीर उपाध्याय के मेहरारु खुद सांसद बाड़ी। यह प्रकार से पूरा उपाध्याय परिवार सेट बा। कुशीनगर के विधायक आ बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आ प्रदेश के केबिनेट मंत्री श्वामी प्रसादज केहू से पीछे ना हवन। उ पूरा मौर्य वंश के स्थापना में लागल हवन। उनपर भतीजा प्रमोद मौर्य आ पतोहु पुष्प लता प्रतापगढ़ से जिला पचांयत के चुनाव लड़त हवें। मौर्य जी के विरोधी लोग कहत बा, उनकी परिवार के दर्जन भर लोग पचांयत चुनाव में बा। रिश्तेदारी-नातेदारी की लोग के जोड़ दीहल जाव त अर्द्धशतक हो जाई। अरे भाई। लोकतत्रं में सबका लड़ला के मतलब सेवा कइला के अधिकार बा। कुरसी मिलते मान-सम्मान, सरकारी धन सुलभ हो जाई। सब लागल बा वोट ओटिहवला में। चुनाव में विधायक, मनिस्टर, सांसद अइसन बड़ पद बइठल माननीय लोगल के प्रतिष्ठी लागल बा। राजतत्रं त समाप्त हो गइल लेकिन कई जगह राजघराना के राजपरिवार चुनावी महासंग्राम में उतरल हवें। कुशीनगर  की बरियारपुर में एक जने कवि रहलन घरीक्षण मिश्र। उ सरगे गइलन। लेकिन पचांयत चुनाव पर जवन कविता सुना गइलन उ आज सोरहो आना सच उतरत बा—
बेल काटि क बइर बोआई, सोचल गइल लाभ के कार।
बड़-बड़ मनई बाथ जोड़ले, जन सेवा खातिर तैयार।।
यह जनसेवा में मिसिरी बा, मलाई बा, दाम बा, काम बा, मान बा, सम्मान बा छोट-मोट कुरसी से सेवा कइला की बाद बड़ सेवा के रास्ता साफ हो जाला। जिला पचांयत सदस्य की पद के अदना मत समझी। इ मिनी विधायक के पद हव। आ अध्यक्ष हो गइला के बाद पूरा जिला के मालिक। ललकी बत्ती, हूटर-शूटर मुक्त। येह लिए आई पूरा मनोयोग से चुनाव लड़ी आ लड़ाई। वोट ओटिआई, सबके पटिआई, आ जीत के रउरा सभें ऊपर जाईं।      -

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Dehati Ji

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हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो, विजय हो...
N.D.Dehati
केन्द्रीय सतर्कता विभाग के पूर्व आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा भ्रष्टाचार से चिन्तित हवन। उनकर कहनाम बा- ‘हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट’। हम कहता हई रिटायर भइला के बाद काहे बुद्धि खुलल ह। भ्रष्टाचार पर नजर रखे वाली विश्व स्तर के संस्था ट्रांसपरेन्सी इन्टरनेशनल जवन भ्रष्ट देशन के सूची बनवले बा ओहमा भारत के नंबर 84वां स्थान पर बा। इ दूनो बात सुन के हमार खोपड़ी पौराणिक काल की ओर घुमि गइल। सतयुग, द्वापर, त्रेता के एक-एक कहानी आंखि की सामने नाचेलागल। अचानक ना चाहते भी मुंह से निकर गईल- हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो! विजय हो!
वइसे भ्रष्टाचार क शाब्दिक अर्थ ज्ञानी लोग गढ दिहलें जे अचार-विचार से भ्रष्ट उ भ्रष्टाचारी। ज्ञानी लोग भ्रष्टाचार की कई रूप-स्वरूप के बड़ी-बड़ी व्याख्या कइले हवें, यथा-लूट, डकैती, चोरी अपहरण, हत्या, झूठ, फरेब, धोखाधड़ी, विश्वासघात, रिश्वतखोरी, हरामखोरी, लालच, छल...। जैसे हरि के हजार नाम, वैसे भ्रष्टाचार के भी कयी नाम। येही से बंदा कहता- हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो, विजय हो...।
धर्म में आस्था रखे वाला भाई-बहिनिन से माफी चाहत, भ्रष्टाचार के गुणगान के लिए कुछ उदाहरण अपने समझदानी से देत हईं। भगवान भोलेनाथ के लड़िकन, कार्तिकेय व गणेश में पृथ्वी के भ्रमण की होड़ लगल त गणेश महराज क चूहा षड़ानंद के मोर से भला कैसे तेज दौड़ सकत, सो गणेश जी ने माता-पिता के ही परिक्रमा क लिहलें। इ कौन इमानदारी ह भाई? श्रीहरि बामन रूप में राजा बलि से तीन डेग जमीन की बदला में तीनों लोक आ बलि के पीठ भी नपला लिहलें। हरिश्चन्द्र अइसन सत्यवादी के भ्रष्टाचार की जाल में फंसा के सांसत में डाल दिहल गइल। चक्रवर्ती सम्राट के डोम राजा की घरे बिकाये के पड़ल। बेटा बिकाइल, मेहरी नीलाम हो गइल। मरघट के रखवाली करे क पड़ल। गौतम ऋषि के नारी अहिल्या से देवतन के राजा इंद्र व चंद्रमा छल कइलें। रामजी, बाली के ताड़ की आड़ से मार दिहलें, इहो एगो छले ह। महाभारत काल में त भ्रष्टाचार के दुष्टान्त भरल पड़ल बा। पांच पति के एगो पत्नी...। जुआड़ी दांव पर लगा दिहलें। मामा शकुनी अइसन मकुनी पकवले की भांजा दुर्योधन के जितवा दिहलें। धृतराष्ट्री व्यवस्था में द्रोपदी क चीरहरण हो गइल। लाक्षागृह में आग लगवावल, चक्रव्यूह के रचना..., अभिमन्यु क वध...। इ सब भ्रष्टाचार ना त का ह?
 उपभोक्तावादी संस्कृति आ बाजारवाद की येह दुनिया में जे भ्रष्ट आचरण ना सीखी उ बउक कहाई। बच्चा ईमानदारी से परीक्षा दई त मेरिट में पिछड़ जाई। भ्रष्टाचार के गुणा-गणित वाला के देखीं कइसे छलांग लगावत, छरकत आगे बढल चल जात हवें। ई भ्रष्टाचार के ही कृपा बा कि जेकरा सलाखन की पीछे होखे के चाहीं उ सदन के सोभा बढ़ावत हवें। न्याय क मंदिर में जहां न्यायदेवता बैठल हवें ओहिजा पेशकार नाम क जीव रहले भेंट लेता, तब तारीख देता। येही से बंदा कहता- हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो, विजय हो...।

Dehati Ji

नेताजी की पेट में बहुत दर्द बा
-N.D.Dehati
हाथ से ‘हीरामन सुग्गा’ उड़ी गइल। सुग्गा उड़ला की अफसोस में दुई दिन बर्दास्त वाली गोली खाके, मुंह पर ताला लगाके, नेताजी चुप्प रहलन। तीसरे दिन उनकर धैर्य जवाब दे गईल। नेताजी की पेट में बहुत दर्द बा। दर्द के कारण इ बा कि जवने हीरामन सुग्गा ‘मुद्दा’ बनि के नेताजी की हाथ में रहल, तबले उनकी राजनीति के खेती- बारी और दुकानदारी हरियर रहल। येही मुद्दा की बदौलत कुछ जालीदार टोपी वाला, चरखाना के लुंगी वाला, कटल-छटंल दाढी वाला भाई लोग नेताजी की साथे, मतलब समर्थन में रहत रहलें। हाईकोर्ट में एगो फैसला भइल, सुप्रीम कोर्ट में लोग जाये खतिर तैयार बा, लेकिन नेताजी की पेट में दर्द उपटि गईल बा। कहत हवें मुसलमान ‘ठगा’ गइलन।
बात करत हई अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट की फैसला के। वादी-प्रतिवादी, सतवादी-गप्पावादी सब लोग फैसला के स्वागत कइल। पूरा देश एतना बड़ा फैसला की बाद अपनी भारत की एकता, अखंडता, साहस, धैर्य, संयम के प्रशंसा कइल। बहुत मर्यादित ढंग से मामला निबट गइल। कहीं कवनो विरोध ना, कहीं कवनो प्रदर्शन ना। पक्षकारन की एतराज खातीर तीन महीना के बड़वर समय दीहल गइल। जब चाहे जायं। सुप्रीम कोर्ट के दरवाजा खुलल बा। अयोध्या की हाईकोर्ट वाला फैसला पर देश के ज्ञानी-विज्ञानी, धर्मी-अधर्मी, पंडा-पुजारी, मोलबी-नमाजी केहू कमेंट ना कइल कि फैसला बाउर बा। सबकी लगे थोड़-ढेर बुद्धि बा। न्यायालय की फैसला पर ओहसे बड़वर अदालत में जाइल जा सकेला, लेकिन फैसला के ‘मुहंदेखल’ ना कहल जाला। लेकिन वाह रे नेताजी! तूं त मुल्ला-कठमुल्ला से भी आगे निकर गइल। तूं कहल कि मुसलमान ‘ठगा’ गइलें। केतना बड़वर अपराध कइल, एकर गंभीरता समझ। का न्यायालय के ‘ठग-बंटमार’ बनावला में तोहरा अचिको ‘लाज-हया’ ना लागत? येह देश के गंगा-जमुनी संस्कृति में काहें जहर घोरल चाहत हव। पूरा देश देखत बा, जानत बा, सूनत बा। अयोध्या विवाद की समाधान के पहल अब भी जारी बा। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास आ बाबरी मस्जिद के पक्षकर हाशिम अंसारी हनुमान गढ़ी में बइठ के घंटन चर्चा कइले। अरे ए नेताजी! मुद्दई-मुद्दालय एक हो जालें त गवाह भी ना पुछालें, तोहके के पूछी? शांती बा त शांती बनल रहे द। बेवजह बयानबाजी से काहें लोग के भड़कावत हव। सबकी मुंह में जुबान बा। कुछ तूं बोलब, कुछ उ बोलिहें। फिर बाताकही बढ़ी। अमन में खलल पड़ी। रहल बात ठगइला के, त लोग खरीददारी में ठगालें। रास्ता चलत कवनो फरेबी की चक्कर में ठगालें। न्यायालय न्याय क मंदिर ह, जहां से न्याय देवता न्याय देलें। न्यायालय कवनो ‘ठगालय’ ना ह जहां लोग ठगा जाई। देश की राष्ट्रीयता, एकता, अखंडता खातिर बर्दास्त वाली गोली खाके चुप्प मारि के बइठ जा। पेट में ज्यादा दर्द होवे त हर्रे-हींग, कालानमक मिला के गुनगुना पानी से फांकि ल। वइसे भी तोहार राजनीतिक दुकानदारी डवांडोले चलल बा। देख हाथ से ‘हीरामन सुग्गा’ उड़ि गइल त कुछु दूसर मुद्दा ढूढ़। अदालत के स्वतंत्र छोड़ द। नाहीं त ‘ऊसर मरन विदेश, ताहू पर कुछ बाकी...’

Dehati Ji

उज्जर कुरता, करिया काम! नाहक में लोगवा बदनाम
-N.D.Dehati
सोमवार की सांझि बेरा गोरखपुर यूनिवर्सिटी चौराहा से पार्क रोड तक एकै चर्चा टांग ले गइलन। दु जने के अपहरण हो गइल। पंद्रह बदमाष रहलन। असलहा की बल पर उठा ले गइलन। भीड़-भाड़ वाला इलाका से अपहरण होत आ लोग टुकुर-टुकुर देखत रहे। काहें टांग अड़ाई भाई। टुच्चन-लुच्चन की चक्कर में षरीफ मनई काहें पड़ी। खैर, 100 नंबर बहुत तेजी देखवलिस। अपाची दस्ता तुरंत पहुंचल। तवले असीम अरुण के सैनिक षहर के चप्पा-चप्पा घेर लिहलन। ष्बचि के बदमाष कहां जाओगे, जाल हम हैं बिछाये...ष् टाइप के गीत गूंजे लागल।
बहरहाल दु घंटा के बाद कैंट थाना में एगो स्कार्पियो घुसल। एगो ष्एगो भलमनईष् दु गो लइकन के पुलिस के सौंप दिहलें। कहलें कि षहर में पर्चा बांटि के सांप्रदायिक सौहार्द खराब करत रहलें। पुलिस के जब दुनों लइकन से पूछताछ शुरू कइलसि त पता चलल, ई दूनो पटरी व्यवसाई नामक संगठन के जीव हवें। अपराध इ बा कि इनकर संगठन जोगी बाबा के पुतला फूंक के प्रेस विज्ञप्ति बांटे खतिर निकरल रहलें। षहर में बाबा के लहर चलेला। दूसर केहू के कइसे चली। जे चलाई, उ पिटाई, टंगाई आ उल्टे आरोप मढ़ाई।
लोग कहता, लोकतंत्र में पीएम से सीएम तक के पुतला रोजे फुंकात बा, एगो एमपी के फुंका गइल त का भईल। अरे भाई! इहे त भ्रम बा। एमपी के बाना बा, बाना में आस्था बा। एमपी क सेना बा, सेना में सैनिक हवें। सैनिकन के काम ह देष के सुरक्षा। अब सुरक्षा में केहु असुरक्षित हो जाव, अगवा हो जाव, टंगा जाव, पिटा जाव त ओकरा भाग्य के दोष कहल जाई। पुलिस स्कार्पियो सवार भमनई लोग पर अपहरण, मारपीट आ धमकी के मामला दर्ज क ले ले बा। आपन बतकही बंद करत इहे कहब- उज्जर कुरता, करिया काम! नाहक में लोगवा बदनाम...

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हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो, विजय हो...
केन्द्रीय सतर्कता विभाग के पूर्व आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा भ्रष्टाचार से चिन्तित हवन। उनकर कहनाम बा- ‘हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट’। हम कहता हई रिटायर भइला के बाद काहे बुद्धि खुलल ह। भ्रष्टाचार पर नजर रखे वाली विश्व स्तर के संस्था ट्रांसपरेन्सी इन्टरनेशनल जवन भ्रष्ट देशन के सूची बनवले बा ओहमा भारत के नंबर 84वां स्थान पर बा। इ दूनो बात सुन के हमार खोपड़ी पौराणिक काल की ओर घुमि गइल। सतयुग, द्वापर, त्रेता के एक-एक कहानी आंखि की सामने नाचेलागल। अचानक ना चाहते भी मुंह से निकर गईल- हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो! विजय हो!
वइसे भ्रष्टाचार क शाब्दिक अर्थ ज्ञानी लोग गढ दिहलें जे अचार-विचार से भ्रष्ट उ भ्रष्टाचारी। ज्ञानी लोग भ्रष्टाचार की कई रूप-स्वरूप के बड़ी-बड़ी व्याख्या कइले हवें, यथा-लूट, डकैती, चोरी अपहरण, हत्या, झूठ, फरेब, धोखाधड़ी, विश्वासघात, रिश्वतखोरी, हरामखोरी, लालच, छल...। जैसे हरि के हजार नाम, वैसे भ्रष्टाचार के भी कयी नाम। येही से बंदा कहता- हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो, विजय हो...।
धर्म में आस्था रखे वाला भाई-बहिनिन से माफी चाहत, भ्रष्टाचार के गुणगान के लिए कुछ उदाहरण अपने समझदानी से देत हईं। भगवान भोलेनाथ के लड़िकन, कार्तिकेय व गणेश में पृथ्वी के भ्रमण की होड़ लगल त गणेश महराज क चूहा षड़ानंद के मोर से भला कैसे तेज दौड़ सकत, सो गणेश जी ने माता-पिता के ही परिक्रमा क लिहलें। इ कौन इमानदारी ह भाई? श्रीहरि बामन रूप में राजा बलि से तीन डेग जमीन की बदला में तीनों लोक आ बलि के पीठ भी नपला लिहलें। हरिश्चन्द्र अइसन सत्यवादी के भ्रष्टाचार की जाल में फंसा के सांसत में डाल दिहल गइल। चक्रवर्ती सम्राट के डोम राजा की घरे बिकाये के पड़ल। बेटा बिकाइल, मेहरी नीलाम हो गइल। मरघट के रखवाली करे क पड़ल। गौतम ऋषि के नारी अहिल्या से देवतन के राजा इंद्र व चंद्रमा छल कइलें। रामजी, बाली के ताड़ की आड़ से मार दिहलें, इहो एगो छले ह। महाभारत काल में त भ्रष्टाचार के दुष्टान्त भरल पड़ल बा। पांच पति के एगो पत्नी...। जुआड़ी दांव पर लगा दिहलें। मामा शकुनी अइसन मकुनी पकवले की भांजा दुर्योधन के जितवा दिहलें। धृतराष्ट्री व्यवस्था में द्रोपदी क चीरहरण हो गइल। लाक्षागृह में आग लगवावल, चक्रव्यूह के रचना..., अभिमन्यु क वध...। इ सब भ्रष्टाचार ना त का ह?
 उपभोक्तावादी संस्कृति आ बाजारवाद की येह दुनिया में जे भ्रष्ट आचरण ना सीखी उ बउक कहाई। बच्चा ईमानदारी से परीक्षा दई त मेरिट में पिछड़ जाई। भ्रष्टाचार के गुणा-गणित वाला के देखीं कइसे छलांग लगावत, छरकत आगे बढल चल जात हवें। ई भ्रष्टाचार के ही कृपा बा कि जेकरा सलाखन की पीछे होखे के चाहीं उ सदन के सोभा बढ़ावत हवें। न्याय क मंदिर में जहां न्यायदेवता बैठल हवें ओहिजा पेशकार नाम क जीव रहले भेंट लेता, तब तारीख देता। येही से बंदा कहता- हे भ्रष्टाचार तोहार जय हो, विजय हो...।   

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