बुधवार, 10 नवंबर 2021

भोजपुरी व्यंग्य : एन डी देहाती 7 नवम्बर 21

चिउंटी मरलसि बाघ के,पिछला टांग उठाय

भोजपुरी व्यंग्य-पांडे एन डी देहाती

 मनबोध मास्टर का गर्व बा अपनी धर्म पर। गर्व बा अपनी कर्म पर। आज ले सब इहे जानल जात रहे कि अपना देश मे चार दिशा में चार गो पीठ , आदि शंकराचार्य जी स्थापित कईलें। ई चारो धाम कहाइल। पूरब में जगन्नाथ पुरी, पश्चिम में द्वारिका पुरी। उत्तर में वदरीनाथ धाम दखिन में रामेश्वर। आदि शंकराचार्य जी येही चार गो पीठ के स्थापना कईलें। देश की चारों दिशा में फइलल अलग -अलग संस्कृति के जोड़े के अद्भुद प्रयास रहे। ई चारो धाम रहे। ई चारो तीर्थ रहे। जे चारो धाम के यात्रा क ले, उ आपन जीवन सफल मानत रहे। बाद में और धार्मिक स्थल बढ़ल। अब त खाली उत्तराखंड जइसन ऐके प्रांत में चार धाम बतावल जाता। वदरीनाथ धाम की साथ-साथ केदारनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार के भी महत्व बढ़ल। 
तीर्थाटन में व्यवसाय घुसल, साथ मे राजनीति भी समाईल। अब -आन क मैदा, आन क घी, शंख बजावें बाबा जी। पुण्य कमाये के लालसा कम, पैसा कमाए के लालसा ज्यादा हो गइल। वोट बटोरला के धंधा भी कम नइखे। तीर्थ के भाव कम, पर्यटन केंद्र ज्यादा हो गइल। खबर, बेचैन करे वाला चैनल में समा गईलें। शुक के मोदी जी केदारनाथ से लाइव रहलें। देश देखल, दुनिया देखल। 
एगो बुद्धू बक्शा में बइठल एंकर, मोदी जी के कहल बात लोकावत रहे। उ बेर बेर केदारनाथ के स्थापना में आदिशंकराचार्य के जोड़त रहे। ओकरा एतनो ज्ञान ना रहल कि केदारनाथ देश की प्रसिद्ध द्वादस ज्योतिर्लिंग में एगो ह। केदारनाथ पहिले भईल। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग ह। बदरी धाम बाद में पड़ेला। बद्रीधाम के आदि शंकराचार्य जी स्थापित कइलीं। बद्री धाम के यात्रा तब सफल होला जब केदारनाथ के दर्शन क के आगे बढ़ल जाला। अपना देश में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन,महाकालेश्वर ,ओंकारेश्वर,
केदारनाथ,भीमाशंकर, विश्वनाथ,त्र्यंबकेश्वर,  वैद्यनाथ  नागेश्वर, रामेश्वर और घृष्‍णेश्‍वर नाम से कुल 12 गो ज्योतिर्लिंग बा, जवना में केदारनाथ भी एगो ज्योतिर्लिंग ह। अल्पज्ञानी लोकई लोग अल्प ज्ञान की चलते भारत के धार्मिक महत्व भी ढंग से ना बता पावत बा। ई कुछ भी परोस देई लोग-

हाथी चढ़ि गईल पेड़ पर,बिनि-बिनि महुआ खाय ।
चिउंटी मरलसि बाघ के,पिछिला टांग उठाय।
थोड़ा कहें कबीरदास, ज्यादे कहें कविराय।
लोकई उहे लोकाय रहे, जेकरा जवने भाय।।

सोमवार, 1 नवंबर 2021

सुनामी एक्सप्रेस में आज छपी सम्पादकीय

बिखरे विपक्ष की योगी सरकार को बेदखल करने की कवायद

पांडे एन डी देहाती

यूपी का सियासी मिजाज रोचक होता जा रहा। विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों में सभी राजनीतिक दल लगे हैं। बिखरे विपक्ष की योगी सरकार को बेदखल करने की कवायद शुरू है। प्रमुख विपक्षी दलों के अपने-अपने राग और अपनी- अपनी राय है। राजनीतिक द्वंद में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निर्द्वन्द हैं। उन्हें अपने किये गए विकास कार्यों पर भरोसा है। जनता का विश्वास भाजपा के साथ है। कुछ मंत्रियों की बेतुका बयानबाजी, कुछ विधायकों का जनता से दूरी के कारण भाजपा की कुछ सीटें प्रभावित होने की प्रबल सम्भावनाएं हैं। स्वच्छ व जनप्रिय सरकार के लिए योगी अपने ही कुछ सिटिंग विधायकों को टिकट नहीं देंगे। नकारा व नखादा विधायकों में भले इस बात को लेकर बेचैनी हो लेकिन जनता के लिए सुकून भरी खबर है। भाजपा के फार्मूले के अनुसार यदि टिकट वितरण हुआ तो विधानसभा चुनाव-2022 में 100 से अधिक विधायक इस बार चुनाव से वंचित किये जायेंगे। उम्मीदवार बदल जाएंगे। योगी सरकार के कार्यों का रिपोर्ट कार्ड लेकर भाजपा के लोग अब गांवों की ओर रुख कर लिए हैं। कई जगह भाजपा के लोग खदेड़े गए, लेकिन यह उनकी कार्यसंस्कृति के चलते हुआ। इसमें लोग सरकार ने नाराज नहीं, अपने प्रतिनिधि से नाराज दिखे। सरकार की लोकलुभावन घोषणाएं सामने आने लगीं हैं। प्रदेश सरकार 3 हजार करोड़ की निधि से 1 करोड़ युवाओं को स्मार्ट फोन और लैपटॉप देने की योजना लेकर आ रही है। इसके साथ ही प्रदेश सरकार प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने के लिये युवाओं को भत्ता भी देगी। मुख्‍यमंत्री ने यह भी कहा  है कि सरकार निराश्रित महिलाओं के उत्‍थान के लिए भी जल्‍द योजना लेकर आ रही है।  भाजपा सरकार ने अपने शासनकाल में साढ़े चार लाख सरकारी नौकरियां दी हैं। इन भर्तियों में पारदर्शिता और ईमानदारी बरती गई।
योगी के राज में अराजकता समाप्त हुई। गुंडे माफिया जेल गए। बड़ी संख्या में इनकाउंटर हुए। कानून का राज स्थापित हुआ। योगी की लोकप्रियता दोगुनी हुई। जनता का भरोसा चारगुना बढ़ा। इन सबके बावजूद कुछ तेलवाज अधिकारियों ,चापलूस नेताओं,मंत्रियों के बेतुके बयान और एक खास वर्ग के लोगों के सत्ता में बढ़ते वर्चस्व को भी जनता ने बहुत नजदीक से देखा। जिला पंचायत व प्रमुख के चुनावों में पार्टी का सिंबल देने में जो गड़बड़ी की गई उसका करारा जवाब भी जनता ने दिया। जीत के बाद बागी भी मुख्यधारा में जुड़ गए , यह एक अच्छी उपलब्धि हुई।बीच में कुछ ऐसे कांड भी हुए जिसमें विपक्ष को पूरा मौका मिला लेकिन योगी ने बहुत जल्द सब कंट्रोल कर लिया। कुल मिलाकर अभी भी जनता को योगी पर भरोसा है।
अब आईये, विपक्ष की भूमिका भी देख लें। यूपी में समाजवादी पार्टी प्रमुख विपक्षी पार्टी है। सपा मुखिया योगी को सत्ता से बेदखल करने में लग गए हैं। यात्राओं का दौर शुरू है। घोषणाएं भी जारी हो रहीं हैं। सत्ता वापसी के प्रयास में लगे अखिलेश यादव कई तरह के आकर्षक वायदे पेश करने की तैयारी में है।  आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल ही नहीं, ममता बनर्जी के उस घोषणा पत्र को भी खंगाला जा रहा है। कुछ बेहतर करने की बातें की जा रहीं हैं। उनका नया नारा है, ‘नई हवा है नई सपा है बड़ों का हाथ, युवा का है साथ...काम ही बोलेगा-2022 में बीजेपी की पोल खोलेगा’...इस नारे के जरिए भी सपा आने वाले दिनों में भाजपा को घेरेगी। जमीनी स्तर पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता अन्य दलों की तुलना में ज्यादे संघर्षशील रहते हैं, अब भी हैं। सपा मुखिया अखिलेश की एक आवाज पर चाहे जेल भरो, चाहे रेल रोको सपा कार्यकर्ता पीछे हटने वाले नहीं हैं।
कांग्रेस में भी जान लौट रही है। प्रियंका गांधी के नेतृत्व में सत्ता में आने की कवायद हो रही। कांग्रेस अब घोषणा नहीं प्रतिज्ञा कर रही। कांग्रेस की प्रमुख प्रतिज्ञाओं में टिकट में महिलाओं की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी।  छात्राओं को स्मार्टफोन और स्कूटी।
किसानों का पूरा कर्जा माफ। 2500 में गेहूं धान, 400 पाएगा गन्ना किसान। बिजली बिल सबका हाफ, कोरोना काल का बकाया साफ। दूर करेंगे कोरोना की आर्थिक मार, परिवार को देंगे 25 हजार और 20 लाख को सरकारी रोजगार प्रमुख हैं। बहुजन समाज पार्टी ने भी कमर कस ली है। अमूमन घोषणा पत्र जारी न करने वाली मायावती इस बार घोषणा पत्र जारी करने की तैयारी में हैं।  मायावती ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि वो किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेंगी और 403 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगी। इसके अलावा संजय सिंह, ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी जैसे लोग भी अपनी पार्टी के लिए जमीन तलाश रहे। गठबंधन तलाश रहे। कुल मिलाकर देखें तो बिखरे विपक्ष की योगी सरकार को बेदखल करने की कवायद शुरू है। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व समीक्षक हैं)

1 नवम्बर21 के वायश ऑफ शताब्दी की अंक में

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

गोधन बाबा कूटल जइहें, रडुहन के तिलहरू अइहें

इ हफ्ता, तिहुयार के बहार रही। कातिक की अमौसा के घर -घर दीया बराई। लक्ष्मी जी के गोहरावल जाई। ओल के चोखा खाईल जाई। दूसरा दिन दलिद्दर खेदाई। सूपा बाजी। अगिला दिने गोधन बाबा कूटल जइहैं। रडुहन के लगन खुल जाई। बियाह कटवन के भी बहार आ जाई। गोधन के कुटला की बाद उनकी खानल-कूटल गोबर से पीडिया लागी। दुनिया से विदा भईल कलम-दवात खोजाई, चित्रगुप्त महाराज पूजल जइहैं। छठ माई पूजइहें। सालों-साल जवना जगह पर गंदगी भरल रहे, ओहूजा माई-बहिन लोग के आस्था के अर्घ्य से,अगरबत्ती की धुंआ से वातावरण पवित्र हो जाई। 
मनबोध मास्टर कहलन-लोक परम्परा में छठ ही एगो अईसन पर्व ह जवना में साक्षात देवता सूर्य के डुबलो पर पूजा आ बिहाने उगलो पर पूजा। चौहत्तर साल से
घर -घर सूपा त बाजल । का मन के दलिद्दर भागल? ईआ, बड़की माई, काकी, भौजी, बहुरिया और न जाने के के असो भी सूप बजइहैं। सबकर बस एकही इच्छा,दलिद्दर भाग जा। मतलब साफ बा बगैर शोर के कुछ न भागी। सीमा से दुश्मन। देश से गद्दार। गरीबी, कदाचार। सब भगावे खातिर सूप बजावे वाली परम्परा। शोर। आजादी से लेके अबतक खूब भोपू बाजल। हकीकत आप की सामने बा। केतना दलिद्दर भागल। भागे न भागे हमार काम भगावल ह। सबके जगावल ह। 
 धनतेरस की दिने से ही त्योहार के उत्साह शुरू । त्योहार हम्मन के संस्कृति ह। केतना सहेज के राखल बा। धनतेरस के एक ओर गहना-गुरिया, बर्तन- ओरतन, गाड़ी-घोड़ा किनला के होड़ त दूसरी ओर भगवान धन्वंतरि के अराधना- जीवेम शरदं शतम् के अपेक्षा। प्रकाश पर्व पर दीया बारि के घर के कोने-अंतरा से भी अंधकार भगा दिहल गइल। जग प्रकाशित भइल। मन के भीतर झांक के देखला के जरूरत बा, केतना अंजोर बा? ये अंजोर से पास- पड़ोस, गांव-जवार, देश-काल में केतना अंजोर बिखेरल गइल? दलिद्दर खेदला के परंपरा निभावल गइल। घर की कोना-कोना में सूपा बजाके दलिद्दर भगावल गइल लेकिन मन में बइठल दलिद्दर भागल? दुनिया की पाप-पुन्य के लेखा-जोखा राखे वाला चित्रगुप्त महराज पूजल गइलें। बहुत सहेज के रखल गइल दुर्लभ कलम-दावात के दर्शन से मन प्रसन्न हो गइल। अपनी कर्म के लेखा-जोखा जे ना राखल ओकरी पूजा से चित्रगुप्त महराज केतना प्रसन्न होइहन?  छठ माई के घाट अगर साल के तीन सौ पैंसठों दिन एतने स्वच्छ रहित त केतना सुन्नर रहित। पर्व-त्योहार के जड़ हमरी संस्कृति में बहुत गहिर ले समाइल बा। ओके और मजबूत बनावला के जरूरत बा। संकल्प लिहला के जरूरत बा की फिजुलखर्ची में कटौती क के ओह धन से कवनो जरूरतमंद के सहयोग क दिहल जा। अइसन हो जाय त त्योहारन के सार्थकता और बढ़ जात। खूब खुशी मनावल जा, लेकिन केहू के दुख ना पहुंचे येह पर ध्यान दिहला के जरूरत बा। खूब सूप बाजो। अब मौसम आवत बा, साढ़े साल से लुकाईल जीव बाहर निकरल हवें। विकास के बाजा बजावत जब रउरी गाँव-नगर में लउके त जे बढ़िया काम कईलें होई ओकर स्वागत करीं। जे खराब कईलें उनकी कपार पर सूपा बजा दीं।
 
गोधन बाबा कूटल जइहें, रडुहन के तिलहरू अइहें।
केतनो महंगी मरले बाटे, फिर भी लक्ष्मी पूजल जइहें।।
तरह-तरह के फल किनाई, घाट-घाट प्रसाद बटाई।
भुजा मिलौनी के परम्परा से, ऊंच-नीच के खाई पटइहें।।

सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

25 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित

नगर -डगर की बात/ एन डी देहाती

महंगी बा एतना, चहछननी से चेहरा निहार ल

मनबोध मास्टर बाजार जाये बदे निकरलन। सालो-साल गाल फुलवले, मुंह ओरमवले रहे वाली मस्टराइन, आज बिहाने से ही चहकत रहली। उनकर रूपजाल देख के मनबोध मास्टर वइसे सम्मोहित रहलें, जेईसे मोदी के भाषण सुन के भाजपाई। मास्टर रोमांचित रहलें, आनंदित रहलें। झुराइल जिनगी की रेगिस्तान में कुछ-कुछ हरियर लउके लागल। भोरही से मस्टराइन के एक ही रट- ए जी! सुनत हई। आज बाजार जाईब त संवकेरे घरे आ जाइब, आज करवा चौथ ह। आज राउर चांद नियर चेहरा चलनी से निहरला की बादे हम पानी पिअब। आवत में बाजार से एगो नया चलनी आ किचन के कुछ सामान लेत आइब। सांझ बेरा मास्टर बाजार गईलें। बाजार में आग लागल रहे। टमाटर के भाव सुनते चेहरा लाल हो गइल। प्याज त परवल की भाव रहे। सरसों की तेल के खेल समझ मे ना आइल त सोचले कि डॉक्टर साहब तेल-मसाला मने कईलें हवें। गोभी, परवल में तेल मसाला लागी। नेनुआ लीया जाऊ। ओही के उसीन के क्षुधा के आग बुझावल जाई। नेनुआ भी असो बरेडी चढ़ल रहे। तीस रुपया किलो बिकत रहे। कइसो सब्जी लिआईल। चलनी की बेर जेब मे पांच रुपया के एगो सिक्का बचल रहे। चलनी के दाम बीस रुपया सुनके मास्टर चलनी की जगह प्लास्टिक वाली चहछननी खरीद के चल दिहलन। सोचत जात रहलें, मुहें न देखे के बा। असो चलनी की जगह चहछननी ही सही। रास्ता में स्कूटर के तेल खत्म। ढकेलत, हाफ़त, पेट्रोल की महंगी पर गरिआवत घरे पहुंचते पता चलल कि सिलेंडर खत्म। चकरा के गिर गईलें। एक त करोना की बेमारी में कर्जा से चताईल रहलें, ऊपर से महंगी के मार। गैस पर जवन छूट मिलत रहे उहो खत्म। चार सौ वाला सिलिंडर एक हजार पार। वाह रे सरकार। यह अच्छा दिन से त उ बऊरके दिन ठीक रहे। पर्व त्योहार अब अमीरन खातिर ही बा। गरीब आदमी कईसे जी। मास्टराईन एक ओर आसमान की चांद के निहारत रहली त दूसरा ओर बरामदा में कपारे हाथ धइले अपनी चांद के। बोलली- चिंता छोड़ीं, चलीं राउर आरती उतारेके बा। मनबोध मास्टर सोचे लगलें- अगर इ व्रत ना रहित त मस्टराइन के मधुरीबानी की जगह रोज सुने वाला कर्कश आवाज ही सुने के मिलत। आदमी के जीवन एगो पत्ता अइसन बा। क्षणिक सत्ता पर एतना गुमान रहत बा। मनई जीवन की डाल से लटकल बा। मोह-माया में भटकल बा। जेकरा पर पूरा जवानी कुर्बान क दिहल गइल, अभाव में लोग के स्वभाव बदल जाला।भला हो हमरी संस्कृति के, हमरी परंपरा के, पर्व-त्योहार के। इ प्रेम के उमंग बढ़ावत बा। जीवन में खुशबू महकावत बा। घरकच की करकच में रोज-रोज घटल नून-तेल-मरिचाई के चिंता से मुक्ति दिया के पूजा-पाठ-वंदन के उछाह बढ़ावत बा। मास्टराईन चहछननी देख के बोल पड़ली-का दिन आ गईल। चलनी की जगह चहछननी पर आम आदमी आ गईल। पड़ोस में केहू कविता पढ़त रहे-

बिगड़त बजट बाटे, अबो से सम्हार ल।
चाह बहुत पियला, अब खाली ओठ जार ल।
खूनचुसवन से अबकी बेर किनार ल।
महंगी बा एतना, चहछननी से चेहरा निहार ल।।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

11 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर -डगर की बात/एन डी देहाती

...हाथी की दातें जस, खाये के अउर-दिखावे के अउर

मनबोध मास्टर गोरखपुर कांड से लेके लखीमपुर कांड तक दुनो ओर से फ़इलावल रायता देख के दुखी हवें। विरोधी त विरोध करबे करिहन, कम से कम शासन-प्रशासन का त सच की साथे खड़ा रहे के चाहीं। गोरखपुर में कनपुरिया व्यापारी के पुलिसवाला मार के जान ले लिहलन, त जिला के दु जने बड़वर अधिकारी लोग कईसे बचाव में उतरल रहे लोग, दुनिया देखल। भला हो योगी बाबा के, जब जांच करवले त साँच उपरिया गईल। अब हत्यारन पर ईनाम धरा गईल। पुलिस तेज हो गइल। दरोगा के लईका टँगा गईलें। गोरखपुर के ममिला गर्मईले रहे तवले संतकबीर नगर में एक जने सोनार के पुलिस पीट के घाही क दिहलसि। थानेदार सहित तीन जने सस्पेंड हो गईलें। इ त बेलगाम पुलिस के काला कारनामा रहल। अब चलीं-लखीमपुर। जवन पर्यटन केंद्र भईल बा। मनई के जान के कीमत कीड़ा-मकोड़ा जेईसे समझे वाली सत्ता,करिया झंडा पर एतना कुपित भईल की कार चढ़ा के मार नवलसि। घटना की बाद उग्र भईल लोग-जेईसे को तेईसे निबटा दिहलन। दुनों ओर से आठ जने के आल्हर जान चलि गईल। जेतना मौत पर गम ना ओतना राजनीतिक बम चलल। 45 लाख के मुआवजा दिआईल। अब त साबित हो गइल कि उ किसान ही रहलें। हत्या की केस में मंत्री जी के बेटा नामजद हो गईलें। विरोधिन के ऊर्जा मिलल। एगो बात साफ हो गइल। कहे खातिर, एगो देश-एगो कानून, सुने में अच्छा लागेला। देश मे हत्या की बाद नामजद लोग जब ना मिलेला त घर के ही ना नात-रिश्तेदार के भी पुलिस पूजा क देले। गोरखपुर आ लखीमपुर दुनो घटना में पुलिस के तेवर ठंडा रहल। दुनो आरोपी रसूखदार रहलें। ओहर खाकी रहल, एहर खादी रहल। दुनों के नैतिकता गायब रहल। लखीमपुर की घटना पर सत्ता आ सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग नजरिया बा। यूपी सरकार कहति बा कि केहू के दबाव में हम कार्रवाई ना करब। साक्ष्य मिली त छोडबो ना करब। सुप्रीम कोर्ट कहत बा कि हम यूपी पुलिस की जांच से संतुष्ट ना हईं। कोर्ट त एतना ले कहि दिहलसि- का 302 में केहू पर केस लिखाला, त उ धराला की ना धराला? यूपी में खाकी आ खादी की ओर से जवन कारनामा भईल ओपर बस चार लाइन के इहे कविता बा पुलिस खातिर-

नैतिकता के बात राउर, सुनत में निक लगे,
हाथी के दांत, खाये के अउर-दिखावे के अउर।
ब्रह्मा जी जइसन रउरा चार हाथ पवले हईं,
मारे वाला अउर, बचावे वाला अउर।
हाथे में रउरी कानून के किताब बा,
पढ़े लीं अउर, पढाईलेईं अउर।
खाकी हईं त, अपराधिन के खाक करीं,
न्याय करीं, दुनिया मे बनी सिरमउर।।

18 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी की अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/एन डी देहाती

मन के रावन ना मरी, त का करिहै प्रभु राम

मनबोध मास्टर का चिंता बा धरम की बदलत रूप पर।पर्व-त्योहार की बदलत स्वरूप पर। दशहरा की दिन प्रभु राम निशाचर के वध कईले रहलें। उ त्रेता युग रहे। आज कपार पर कलिकाल चढ़ल बा। दशहरा के शाब्दिक अर्थ अब दश (रावण) हरा ( हरा-भरा) भी हो गइल बा। लोग जवले अपनी मन मे समाईल रावण के वध ना करी, तबले देश के दशा आ दिशा ना बदली। चारों ओर देखीं- सत्य सकुचात बा। झूठ मोटात बा। नैतिकता के पर्व के रूप में, न्याय की स्थापना की रूप में, अन्याय पर न्याय के जीत की रूप में, नास्तिकता पर आस्तिकता के विजय की रूप में दशहरा मनावला के परंपरा शुरू भइल। येही दिन त रावण के वध भइल रहे। युगन से रावण दहन होत आवता, लेकिन रावण जिंदा बा। देखला के दृष्टि चाहीं। दूसरे की दिल में ना अपने मन में झांक के देखीं। मन में रावण बैठल बा। मन के रावण मरला बगैर कागज-पटाखा की रावण के पुतला फूंकले ना शांति मिली ना संतुष्टि। प्रवृति आसुरी हो गइल बा। एगो सीता मइया की हरण में रावण साधु वेष बनवलसि। रावण त सीता मइया के खाली हरण कइलसि , आज हरण की तुरंत बाद वरण आ ना मनला पर मरण तक पहुंचवला के स्थिति बा। रामजी की नाम पर कथा, प्रवचन, भजन, राजनीति करे वालन के नजर दौड़ाई। महल -अटारी,मोटर-गाड़ी, बैंक -बैलेंस, चेला- चपाटी के लाइन लागल बा। रावण के एगो रूप नवरात्र के आखिरी दिन देखे के मिलल जब कन्या भोज खातिर मनबोध मास्टर घर-घर लड़की तलाशत रहलें। कई घर छनला की बाद बहुत मुश्किल से 21 कन्या मिलली। दरअसल लोगन की मन मे समाईल रावण की प्रभाव से एतना कन्या भ्रूण हत्या भइल की लड़की लोग के संख्या ही कम हो गइल। एकरा पीछे के कारण तलाशीं त साफ हो जाई की रावण के दुसरका रूप दहेज की आतंक से कन्या भ्रूण हत्या के संख्या बढ़त बा। आई असों की रामलीला में रावण दहन की पावन बेला में सौगंध खाइल जा की मन के रावण मार दिहल जाई। दहेज दानव के भगावल जाई। कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगावल जाई। अगर अइसन ना कइल जाई त रामजी रावण के वध ना क पइहन। आज इ कविता बा-

मन के रावन ना मरी, त का करिहै प्रभु राम।
पूजा-पाठ , प्रदर्शन हो गईल, आस्था के काम तमाम।।
भजन भूल के गन्दा गाना, बजे सुबह आ शाम।
कईसे मईया खुश होईहैं, जब भक्त लड़इहैं जाम।।

सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

भोजपुरी व्यंग्य प्रकाशित 2 अगस्त 21

13.9.21 के वॉयश ऑफ शताब्दी के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

हईचों-हईचों जोर लगावें, कुछ ना पायें बिगाड़ी

मनबोध मास्टर रिटायर मनई। विभाग विदा क दिहलसि की हमरे काम के अब ना बाड़न। घर के लोग भी उनके फालतू ही समझत बा। और त और अब मस्टराईन भी बमक जाली- दिन भर कुरसी तोड़त हवा, मोबाइल में आंख फोड़त हवा। मास्टर जब टीवी पर कवनो खबर देखें त नाती-पोता आके रिमोट छीन लें और गप्प से कार्टून लगा लें। रिटायर मनई के कहीं ठेकान नईखे। मास्टर के ना घर-परिवार में, ना गाँव-जवार में, ना साथ -समाज में कहीं इज्जत वाली जगह ना मिलल। पार्टी में ई झुनझुना जवन बंटाता, ओहू में मास्टर के लिस्ट से नाम गायब। मास्टर रीश खीश में बमकल हवें- का जमाना आ गइल, हाल ई बा कि अन्हरा बांटे रेवड़ी, तब्बो घरे-घराना खाई। जे तेल लगाई, उहे न आगे जाई। जे साँच कही,उ जुत्ता खाई। सगरो जगह एके हाल बा। जेके गरीबन के मसीहा बनाके टिकट दियात रहे ओके अब माफिया बतावल जाता। आ हेने देखीं- बाप रे बाप!अईसन तानाशाही।  नौ महीना में त लईका हो जाला, लेकिन किसान लोग नौ महीना से सड़क पर पिसान सानत बा । दिल्ली के तीन ओर से घेरले हवें, तिने गो कानून वापस करे के बा लेकिन कानून वापस करावला में तेरहो करम हो गइल। किसान भाई अब चाहे दिल्ली घेर$ चाहे लखनऊ। करनाल में ताल ठोक$ चाहें मुजफ्फरनगर में पंचाइत कर$। तोहरो रूप चिन्हाईले बा। ई नया भारत के नवका रूप ह। जब तीन सौ के सिलिंडर मिलत रहे त महंगाई डाईन भईल रहे। आज एक हजार के मिलत बा त महंगाई भौजाई भईल बा। तीस रुपया लीटर पेट्रोल दियावे वाला झामदेव सौ से ऊपर भईला पर मौनासन में बाड़न। देश के व्यवस्था सुधरला की नाम पर सरकारी संस्थान अपनी खास दोस्तन के ठेका पर दिहल जाता। चार आना के जोंहरि रखावे खातिर चौदह आना के मचान बनत बा। अब त ओखरी में मुड़ी पडलें बा, चोट गिनला के जरूरत नईखे। मास्टर बकबकाते रहलें तवले मस्टराईन के बेलना कपार पर ठक्क से गिरल। मास्टर माथा पकड़ के बुद्बुदईलें-अब घर घर में राजदरबारी घुस गईलें। लईका, मेहरी, नाती, पोता सबके मति मार लेले बाड़न सन। मस्टराईन कहली-
 
तीन सौ सत्तर हटल खट्ट से, देखल दुनिया सारी।
अयोध्या की भव्य मंदिर में, रहिहैं अवधबिहारी।
हईचों-हईचों जोर लगावें, कुछ ना पायें बिगाड़ी।
कहें देहाती राजकाज ह, देखीं पारा-पारी।।

20 सिंतम्बर 21 के सुनामी एक्सप्रेस में प्रकाशित

सियासी मंचों पर सतही बोल

-पांडे एन डी देहाती

यूपी में 22 का विधान सभा चुनाव है। राजनीतिक पार्टियों का होलियाना अंदाज शुरू है। सियासी मंचों पर एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सतही बोल बोले जा रहे। बोलने वाले अपने पद व प्रतिष्ठा का भी ख्याल नहीं रखते। सबकी भाषा लगभग एक ही निकल रही। याद आ रहा वह 75 का दौर जब देश की महान नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ गांवों तक दुर्वचन बोले जा रहे थे। नारे ईजाद किये थे, गली-गली में झंडी है.....। इंदिरा का सिंहासन हिला मोरारजी की सरकार बनी। उन्हें मूत... प्रधानमंत्री बना दिया गया। बीपी सिंह को किसी ने राजा से फकीर बनाया तो किसी ने भारत का कलंक कहा। यूपी में बसपा व सपा की सन्युक्त एंट्री हो रही थी। नारे गढ़े गए-मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गए जयश्री राम। मर्यादा भगवान श्रीराम को भी राजनीतिक मंचों पर सियासी गिरगिटों ने नहीं छोड़ा। बसपा ने जातिवादी सोच पर प्रतिकार में- तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार तक पहुंचा दिया। भाजपा ने श्रीराम को भुनाया तो बसपा ने हाथी को ही गणेश साबित किया। बाद की स्थितियों में बोल और बिगड़ते गए। टीवी चैनलों के डिबेट में भी टोटी चोर और फेकू जैसे शब्दों पर बहसें होती रहीं।

21 के दौर में 22 की चिंता। अब तो और भी जहरीली वाणियों को सुनने का सीजन आ गया है। योगी आदित्यनाथ जैसे संत की भाषा भी अब्बाजान से शुरू हो रही। राजनीतिक गलियारों में भी ऐसी भाषा पर कई सवाल खड़े हुए। लेकिन महन्त ने तो अपना 'तकिया कलाम' बना लिया। विधान परिषद में जब यह मुद्दा उठा, तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ''अब्बाजान शब्द कब से असंसदीय हो गया?'  राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा ने तो उनकी आलोचना में बेहद कड़े शब्दों तक का इस्तेमाल किया और कहा कि उनके पास उपलब्धि बताने को कुछ नहीं है, तो ये सब कर रहे हैं। अब उन्हें कौन याद दिलाए की उनके नेता कभी बिहार में भूरा बाल साफ करो का ज्ञान बांटते थे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर अलीगढ़ में हुई एक रैली में उन्होंने कहा, "पहले उत्तर प्रदेश की पहचान अपराध और गड्ढों से होती थी। पहले हमारी बहनें और बेटियां सुरक्षित नहीं थीं।  यहां तक कि भैंस और बैल भी सुरक्षित नहीं थे, आज ऐसा नहीं है। निसंदेह यूपी में कानून का राज स्थापित हुआ है लेकिन सड़कों की दशा तो खस्ताहाल ही है।


यूपी में बहस विकास पर होनी चाहिए लेकिन बहस बकवास पर हो रही है। योगीजी अब्बाजान के पीछे पड़े तो किसान नेता टिकैत हैदराबादी लैला को भाजपा के चाचा जान साबित करने में जुटे हैं। बुआजान की पार्टी ब्राह्मणों के गुणगान में लगी है तो बबुआजान की पार्टी सिंहासन काबिज करने की होड़ में है। अम्मीजान अपने बेटे-बेटी को यूपी का सियासी मिजाज बदलने के लिए मिशन पर लगा दिया है। मतदाता भाईजानों! आप वक्त की नजाकत को समझिए। इन सियासी गिरगिटों को पहचानिए। भाषा और बिगड़े बोल पर मत जाइए। विकास के मुद्दे पर ही अपना नेता चुनिये।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व समीक्षक हैं)




27 सिंतम्बर 21 के वॉयश ऑफ शताब्दी में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/एन डी देहाती

चार डेग चोर से, चौदह शराबखोर से...

मनबोध मास्टर बिहार की दौरा से वापस अइलें। बतवलें,-बिहार में चुनाव के पुरहर तैयारी बा। चुनाव चाहे पंचायत के होखे चाहे विधायकी के। शराब सबसे जरूरी बा। शराब ना रही,त सब काम खराब हो जाई। बिहार में नीतीश बाबू शराब बंदी का कईलें, तस्करन के लाटरी निकल गईल। उत्पादन बन्द बा, बिक्री त दूना चौगुना दाम पर होते बा। हर चट्टी चौराहा , बाग बगइचा , खेते की मेड़ें पर ले शराब मिल जाई। कच्ची, देसी, विदेशी सब बिकत बा। बिहारी पियक्कड़न के व्यवस्था हरियाणा आ यूपी समहरले बा। पहिले हरियाणा वाला शराब लदल ट्रक बड़ा पकड़ात रहे। अब तस्कर सुधर गईलें? कि यूपी-बिहार पुलिस में राग ताग बईठ गईल? बिहार में भरपूर मिलता, मतलब धकाधक पार होता। आज मधुशाला के रचयिता स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन जिंदा रहितन त कुछ येह कदर लिखतन- *गली गली में पीने वाले, गांव गांव में मधुशाला। कहने को हैं ईंट के भट्ठे, बिकती यहाँ रोज हाला। मिले सिपाही तस्कर से तो, करें क्या अधिकारी आला। मंगलसूत्र न बचने पाया, बिक गयी कंगन औ माला।* बिहार में शराब की बहार में यूपी के बड़वर योगदान बा। सस्ता माल कच्ची खातिर ईंट भट्ठन पर सांझ की बेरा झिल्ली खातिर लाइन लगत बा,नौसादर, यूरिया, मीठा, महुआ से आदिवासी फैक्ट्री में बनल प्लास्टिक की पन्नी में दस - बीस रुपये में सस्ता माल मिलता, बिहार जाके दूना में बिकत बा। सन 2016 से यूपी रेलता, बिहार घोटता। देसी भी बेसी बिकता। बिहार की बाडर से सटल जेकर ठेका मिल गईल, बुझी की लॉटरी निकल गईल। सांझ गहराते गहक़ी मेरड़ाये लागे लें। पुलिस पियादा के खइला के बेरा होला ओही समय मे कार की तहखाना में शराब भर के बिहार पार हो जाला। पुलिस मेन रोड पर घेरले, त तस्करवा गावें-गाईं कूदत फ़ानत हेला देलें। पगडण्डी घेरले त नईये से नदी पार करा देलें। बिहारी पियक़्क़डन के दुआ लगत बा। तस्करन के खूब तरक्की होत बा। देश के बड़वर वैज्ञानिक लोग जेतना खोज ना कईलें होई ओतना त शराब तस्कर कईलें। टैंकर की भीतर टैंक। ऊपर से खोलब$ जरल मोबिल निकली। ठेहा पर पेनी के टोटी खुली त हलाहल। ट्रक देखला में खाली दिखी, चेसिस में एक फुट ऊंचाई के तहखाना में शराब भरल मिली। बिहार की बाडरन के थाना चाहे यूपी के होखे चाहे बिहार के, शराब से अड्सल बा। थाना की मालखाना में जगह ना बा, पूरा थनवे गमकत बा। जिया-जंतु सब पीके पवित्तर होता। पहिले शराब पकड़ात रहे, अब कमाई के जरिया भईल बा-
चार डेग चोर से, चौदह शराबखोर से।
चौहत्तर डेग दूर रहीं, रउरा चुगुलखोर से।
कलम की जोर से, तस्कर डेरात रहलें,
अब सब काम होता, पईसा की जोर से।।

4 अक्टूबर 21 के वायश आफ शताब्दी के अंक में छपा भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

जवन जिनगी रहल, उ खामोश हो गइल...

मनबोध मास्टर बेहद गमगीन हवें। हुतात्मा के श्रद्धांजलि देत,आज आपन बतकही शुरू कईलें-आपन गोरखपुर केतना निमन हो गइल रहे। सरकार मच्छर-माफिया से छुटकारा दिला देले रहे। ठोकिया गिरोह के एगो सिपाही लोग के ठोकला की बल पर इंस्पेक्टर हो गइल। जेकरा हाथे जोर, उहे न करी बटोर। लोग के मारत-मुआवत, पईसा बटोरत,ऊपर ले बाँटत राजकाज चलावत रहे। लोग के सुरक्षा के जिम्मेदारी रहल। तनख्वाह की पईसा के हाथ लगवले के कसम खइले रहे। ऊपरवार खातिर बड़ी मेहनत करे। अपनी हल्का की होटल की आरी पासी आपन मुखबिर लगवले रहे। मालदार आदमी होटल में ठहरे त रात की बेरा छापा डाल दे। डेरवा- धमका के, छीन - झपट के खात-खिआवत काम चलत रहे। येही बीचे एगो बड़वर नगर के मालदार व्यापारी अपनी मेहरी- बच्चा की साथे गोरखपुर के विकास देखे अइलें। ओकर दुगो दोस्त भी दूसरा प्रदेश से अइलें। सपना रहल, बाबा गोरखनाथ के दर्शन, रामगढ़ के विकास देखला के। मुखबिर की कहले पर इंस्पेक्टर अपन पंच प्यारन की साथे होटल में छापा मार दिहलें। इंस्पेक्टर बुझत रहलें, सोझ अंगूरी घीव ना निकली। त तनी सा टेढ़ कईलें। जानते रहलें, गागल- नीबू-बानिया, गर दबले कुछ दे। व्यापारी ईमानदार रहलें, अकड़ गईलें। बात बिगड़ गईल। पुलिस टीम की सेवा की चलते गोरखपुर के विकास देखला की पहिलहीं बेचारे गोलोक चल गईलें। जनमरवा इंस्पेक्टर के  बड़का अफसर लोग व्यापारी की विधवा के समझावते रह गईलें। उ केस लिखा दिहलीं। देश मे बाजा बाजि गईल। लीपापोती काम ना आइल। जे कहत रहे, पुलिस के देखते गिर गईले से चोट आ गईल, ओकरा मुँहे डाक्टर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट करीखा पोत दिहलसि। एगो इंस्पेक्टर की करनी से साढ़े चार साल के चमकत आपन शहर दागदार हो गइल। जवन छवो जने होटल में छरकत रहलें, अब भूमिगत बाड़न। अखबार से लगायत टीवी तक आ फेसबुक से लेके व्हाट्सप ग्रुप तक जांबाज जनमरवा पुलिस के चर्चा चलत बा। पब्लिक सड़क पर खोजति बा, वकील लोग कचहरी में खोजत बा। मृत व्यापारी के आत्मा एनकाउंटर के राह देखत बा। सोचति बा, यह गैंगेस्टरन के गाड़ी कब पलटी? इनहन की घर पर बुलडोजर कब गरजी? देहाती बाबा के कविता बस चारे लाइन में बा-
जवन जिनगी रहल, उ खामोश हो गइल।
का गोरखपुर आइल, ही दोष हो गइल?
पईसा के लोभी, आदमखोर हो गइल।
शेर बनल रहे, आज खरगोश हो गइल।।

वायश आफ शताब्दी 6 सितम्बर 21

नगर -डगर की बात/एन डी देहाती

कोटा के राशन ले आवें, मोदी छाप की झोरा में

मनबोध मास्टर कार पर सवार होके कोटेदार की दुआरी पहुँचलें। कोटेदार एगो गरीब मनई के झपिलावत रहे- कुकुर अईसन लार चुआवत चलि अईले। तोरा लगे कारड- ओरड हइये नईखे। हम कहाँ से राशन देईं। गरीब गिड़गिड़ात रहे, लइके उपास करत हवें। कवनो व्यवस्था क द भईया। कठकरेज कोटेदार ना पसिजल। खैरात बंटाता एईजा। चल भाग। गरीब मुँह ओरमवले कोटेदार की दुआर से  चलि गईले। मास्टर के देखते कोटेदार चहक के बोललन-आईं आईं, ऐह बेरी सरकार राशन की साथे-साथे झोरवो देले बा। मोदी छाप झोरा में मुफुत वाला राशन लेके मास्टर गाव की बहरा किराना की दुकान पर गईलें। राशन बेच के सरकारी ठेका पर जाके देसी मार के मगन हो गईलें। गरीब प्रधान जी की दुआरी पहुंच के गिड़गिड़ात रहे। हमार कारड बन जाइत, त हमहुँ राशन उठइती। प्रधान के पारा चढ़ि गइल। ओट हमरी विरोधी के दिहल$ त ना बुझाईल की हमरो जरूरत पड़ी। अबे सरकार नया कारड बनावला पर रोक लगवले बा। ई बात सुनी के अपनी गरीबी पर आंसू बहावत गरीब अपना घरे चलि गइल। प्रधान जी अखबार हाथ मे लिहले बड़बड़ाये लगले- ई आधार वाली बेमारी बड़ा बाउर बा। बैंक में आधार, कार्ड बनावला में आधार, मोटर, गाड़ी, जमीन, जायदाद ख़रीदला में आधार। अब देखीं किसान के आपन गल्ला बेचलों में आधार। धत तेरी आधारे के। प्रधान के पड़ोसी बोल पडलें- ई चोरबाजारी के व्यवस्था आधार से ही सुधरी। देखीं, अपना यूपी में 64 हजार लोग आधार से ही धरा गईले कि ई लखपतिया गरीब हवें। कोटेदार की मशीन में अंगूठा लगा के पांच -पांच किलो राशन उठावे वाला लोग सरकारी गोदाम पर तीन-तीन लाख के गल्ला बेचले बा। अब सब सुधर जाई। कोटेदार आ प्रधान लोग के चोरी आ लखपतिया गरीब के बलजोरी,सब कर थाह लाग जाई। पड़ोसी की बात पर प्रधान और भड़क गईलें- हं, हं प्रधनवे आ कोटेदरवे खाली चोर बाड़ें। जवना नेताजी का दिल्ली की लुटियंस में तीन सौ करोड़ के बंगला किनाईल ह उ लोग बड़ा ईमानदार बा। साढ़े चारे साल में एतना कमा लिहलन। हम्मन के जांच पर जांच होला। नेता लोग के जांच काहें नईखे होत।

कोटा के राशन ले आवें, मोदी छाप की झोरा में।
कई लाख के गेहूं बेचें, भरि भरि के बोरा में।
अईसन ई खाद्यान्न व्यवस्था, कोटेदार की कोरा में।
कहें देहाती गड़बड़झाला, दिन दहाड़े अजोरा में।।

सोमवार, 20 सितंबर 2021

20 सितम्बर 21 के वायश आफ शताब्दी में प्रकाशित हमारा भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

...दुख ना बूझें, कठकरेजी सरकार बा


मनबोध मास्टर कहलन कि 17 सितम्बर 21 के दिन बड़ा महान बा। विश्वकर्मा जयंती आ मोदी जी के जन्मदिन के जानत जहान बा। एगो आदि शिल्पी देवता आ दुसरका राजनीतिक शिल्पी। दुनों के दण्डवत करत हम तिसरका महत्व बतावत हईं। आजु भादो के महीना, अंजोरिया के रात, एकादशी के बरत।   आजु के एकादशी भी बड़ा खास बा। आजु की एकादशी के चार-चार गो नाम बा। कहीं जलझुलनी एकादशी, कहीं पदमा एकादशी, कहीं दोल ग्यारस आ कहीं परिवर्तनी एकादशी की नाम से मशहूर भादो अजोरी के एकादशी के महिमा महान बा। कहल जाला कि आजुवे की दिन शेष शैय्या पर सुतल विष्णु भगवान करवट लेले रहलें। आजुवे की दिन त्रेता में बावन रूप भगवान बलि राजा के छल से तीन डेग जमीन दान में मंगला की बहाने ओकर पीठ ले नाप के पाताल के राजा बना दिहलें। आजुये की दिन मईया यशोदा कन्हैया के पहिला बेर कपड़ा फिंचले रहली। ई त रहल पौराणिक प्रमाण। अब घनघोर कलयुग में सन 21 की सितम्बर में जवन घनघोर पानी सबके बोर देले बा,ओहू के कारण बा। इंद्र भगवान येह राज काज से बड़ा खुश बाड़न। एतना पानी ठेल देले बाड़न कि गावँन के नदी-नाला-पोखरा के बात छोड़ीं, बड़े -बड़े शहरियों में पंवरे भर के पानी बा। जीया-जंतु, गोरु-बछरू क के कहे , मनई की जान पर आफत बा। सुखरख में करोना मुएलसि आ दहतर में पानी। घर के घर गिर गइल। बहुते जने मर गईलें। अस्पताल में लईकन के बोखार वाला अईसन नवका बेमारी आइल बा कि ना बेड मिलत बा ना दवाई। सरकार व्यवस्था कम, गाल ज्यादा बजावत बा। जलझुलनी के जल झुल$ता। प्रकृति की प्रलय की बीचे मोदी की जन्मदिन के जश्न मनत बा। जेकरा हाथे जोर,ओकरा खातिर बटोर। बात त हम कहब फरीछा, चाहे मीठा लागी चाहे मरीचा। कहीं मोदी के जय, कहीं भगवान विश्वकर्मा के जय। यह जय की लय में पानी के प्रलय। अपना यूपी में पचासन मर गईलें। रेल, बस, हवाई सेवा प्रभावित भईल। इंद्र के कोप जारी बा। जन्मदिन के जयकार भी जारी बा। आईं एगो चार लाइन की कविता में समझीं-
पचासन जने के जान गईल, पानी -प्रलय प्रहार बा।
अस्पताल में बेड दुलम बा, लईकन का भईल बोखार बा।
ओने जन्मदिन की जश्न में डूबल, नगर-शहर जवार बा।
कहें देहाती दुख ना बुझे, कठकरेजी सरकार बा।।

बुधवार, 1 सितंबर 2021

28 अगस्त 21

28 अगस्त 21 वायश आफ शताब्दी में छपा लेख

नगर -डगर की बात/एन डी देहाती

जेकर राज - ओकर चेरी, इ पुलिस ह सबके पेरी

मनबोध मास्टर बड़ा दुखित हवें। लखनऊ में एगो जबरिया रिटायर साहेब जी के अईसे पुलिस वाला टाँगत हवें,जेईसे कवनो खूंखार तालिबानी आतंकी धरा गइल होखे। साहेब जी बहुत फड़फड़ईले, हाथ- लात- जबान चलावते रहि गईलें। बिना कारण बतवले, बगैर वारंट देखवले पुलिस टांग ले गइल। अब मास्टर के कईसे समझावल जा-भईया ई पुलिस ह। जेकर राज रहेला, ओकर चाकरी करे लें। कबो देखले होखब जा अकिलेश बाबू की पनही पर हाथ धइले जमीन पर बइठल पुलिस अधिकारी के फोटू। ई बारी- बारी सबके सेवा करेले। बारी-बारी सबके पेरेलें भी। जेके पुलिस टांग ले गइल, उहो अपनी समय में बहुतन के टंगववले होइहन। पुलिस त टाँगहि खातिर बनल बा। सत्ता के सबसे बड़वर सेवादार पुलिस ही ह। कबो आजम चाचा के भईस खोजे खातिर जिला भर के पुलिस लाग जाई, त कबो उनकर गेट गिरावे में। पुलिस के देख के अलग अलग प्रकार के लोग के दिल दिमाग में अलग -अलग छवि बनेला। जेईसे भय‚  विस्मय‚ शोक‚  हास‚  जुगुप्सा‚  घृणा, गर्व....। गनीमत बा ईमानदार कहाए वाला सरकार के वफादार पुलिस रहल, नाहीं त कट्टा, गांजा से लेके का-का बरामद हो गइल रहित। नैनी आ बांदा जेल की 16 नम्बर बैरिक से आईजी साहब के कनेक्शन जोड़के एगो गैंग बना के गैंगस्टर लाग जात। आ ओकरा बाद त सबका पते बा घरवा पर बुलडोजर चल जात। नजरिया आपन-आपन बा। पूरा प्रदेश में इहे एगो नाखाद्दा अधिकारी रहलें जेके जबरिया रिटायर कईल गइल। बाकी त सब दूध के धोअल आ गंगाजल से  खँगारल लोग बा। एहीसे कहल जाला- जेके पियवा माने, उहे सुहागिन। साहेब जी नोकरी में रहलें तब खुरपेच। कबो नेता जी पर केस, कबो दूसरा के हिसाब। रिटायर भईला की बादो चैन ना। पार्टी बनावत रहलें, चुनाव लड़े जात रहलें। जवना नेता पर बलात्कार के रिपोर्ट भईल ओके त जनता जिता दिहलसि। उ नैनी जेल में मजा उड़ावत हवें। सवाल इहो बा कि जवना मामिला में जबरिया रिटायर वाला साहेब पर आत्महत्या खातिर उकसावला के आरोप लगल उ बहुत जल्दिये जांच में प्रमाणित निकर गइल। आ देश मे बहुत जांच बा जवन बस्ता में सड़त बा। कुल मिलाके निशाने पर हवें साहब जी। अब चार लाइन की कविता में सब अर्थ छिपल बा-

जेकर राज-ओकर चेरी, इ पुलिस ह सबके पेरी।
समय की साथे इ बदलले, आज तोहें, कल उनके हेरी।
कहें देहाती समयचक्र ह, चलत रही इ हेराफेरी।
गलती में जे-जे पकड़ाई, ओही के न पुलिस भी घेरी।।

सोमवार, 23 अगस्त 2021

सड़क पर भोजपुरी व्यंग्य

नगर -डगर की बात/एन डी देहाती

रउरी कागजे में चकाचक, हम भुभुन फोड़वावत बानी

मनबोध मास्टर मोटरसाइकिल पर टिकावल-बन्हावल मेहरी के बईठवले ससुरारी चल दिहलें। मसटराईन मिठाई के डिब्बा आ रखौनी के लिफाफा हाथ में लिहले मगन रहली। आज भाई के राखी बन्हाई में मोटहन नेग लिआई, इहे सोचत रहली तवले हचाक दे सड़क की गड़हा में गाड़ी सहित दुनों प्रानी उलट गईलें। मास्टर के पतलून, मस्टराईन के लहंगा लेवठा गइल। रखौनी पानी मे पवरत रहे आ मिठाई भुरकुस होके कानो-माटी में सना गइल। दुनों जने के जतरा खराब। घरे लौटत मसटराईन चालू हो गईली-आव दहीजरा के नाती वोट मांगे, तोर माटी लागो। तोके भवानी माई उठा ले जा.....। और भी बहुत तरीका से विधायक जी के गरिआवत, धिधिकारत रहली। मास्टर भी सड़क की खराब हाल पर दुखी हवें। कई जगह सड़क खराब भईला की चलते लोग सरकार के कोसत बा। एम पी -एम एल ए के नखादा बतावत बा। पक्का रास्ता रहल। अब कच्चा से भी बदतर हो गइल। ठेकेदार आ इंजीनियर की डंडीमार व्यवस्था आ नेतन की कमीशनखोरी की चलते पगडंडी से भी बाउर भईल सड़क के गजब हाल बा। असों के पानी भी गजब कमाल कईले बा। पलक झपकावते पहुंचे वाला लोग अस्पताल पहुंच जात हवें। सरकारी दावा के हवा निकल गइल बा। ए सबकी बावजूद भी खराब सड़क के बहुत फायदा बा। जेईसे-अब गतिरोधक बनवला के कवनो काम ना बा। गाड़िन के एवरेज कम भईला से महंगा तेल के बिक्री बढ़ल बा। सड़क की गड़हा में गिरला पर नजदीक के झोला छाप डाक्टरन के भी दुकान तरक्की पर बा। दवाईं की दुकान पर मरहम, पट्टी, सुई दवाईं के बिक्री बढ़ल बा। फेचुकर फेकले गाड़ी से मिस्त्री आ पार्ट पुर्जा बेचे वालन के भी चांदी बा। यातायात के भीड़ कंट्रोल कईला में भी गड़हेदार सड़क के बड़ा योगदान बा। सड़क की गड़हा में लगल पानी में मुँह देखीं सभे अब शीशा देखला के जरूरत ना पड़ी। पैदलीहन के सड़क क्रॉस कईला में अब कवनो दिक्कत नईखे। जूता-चप्पल एक हाथ मे उठायीं आ दूसरा हाथ से फुफती उठवले हेल जाईं। वासिंग पावडर के बिक्री में बढोत्तरी में भी कीचड़ आ गड़हावाली सड़क के बहुत योगदान बा। अब सरसरात जात मनई जब भरभरा के गीरत हवें त कुछ दिन अस्पताल सेवा की बाद ऊपर पहुँचत हवें। जनसंख्या नियंत्रण में भी खराब सड़क के योगदान बा। क्षेत्र की सड़किन की हाल पर बस इहे कविता लहत बा-

डेग-डेग पर गड़हा-गुड़ही, जामे भरल बा पानी।
कानो-कीचड़ में हाफ़त-पाकत, रोज के आना जानी।।
रउरी कागजे में चकाचक, हम भुभून फोड़वावत बानी।
कहें देहाती चारों ओर बा, सड़किन के इहे कहानी।।

23 अगस्त 21 को वायश आफ शताब्दी में प्रकाशित

रविवार, 22 अगस्त 2021

भोजपुरी व्यंग्य


नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर अखबार पढ़ला में मगन रहलें। तबले फुफकारत नागिन जेईसे मस्टराईन आ गईली। बोलली-आज नाग पंचमी ह। साल के पहिला त्योहार ह। जाईं ! गाय के गोबर,उजरका बालू, पियरका सरसो खोज के केहू जानकर मनई से परोरवा के ले आईं। मास्टर हाथ मे कटोरा लेके निकल पडलें। सड़क पर निहुर के गोबर उठावत रहलें, तबले पीछे से एगो जर्सी साढ़ उठा के फेंक दिहलसि। मास्टर बड़बड़ईलें-एतना गो आश्रय बनल त सड़किये पर कब्जा रही। उजरका बालू ना मिलल त सोनभद्र वाला पियरके उठा लिहलन। पियरका सरसो ना मिलल त करिके लेके परोरे वाला के खोजे लगलन। मुहल्ला-मुहल्ला तलासत आखिरकार एगो गुनी मनई मिललन।  मस्टराईन दरवाजा की दुनों ओर गोबर से नाग नागिन उकेर के दूध लावा चढ़ा के पूजा कईली। ओकरा बाद गोबर से घर के देवार घुरिआवे लगली। घर की रंग- रोगन, डेंट -पेंट पर गोबर के चौगोठा। मास्टर सोचे लगलन-नाग पूजा हम्मन के सनातन संस्कृति ह। सालों साल साँप देखते लाठी से मारे वाला लोग भी आज साँप पूजत बा। सपेरा तरह तरह के साँप लेके घुमत हवें। दूध की नाम पर पईसा बिटोर के सांझी बेरा दारू ढकेलत हवें। का जमाना आ गइल। साँप का जहर उगली? जेतना नेता उगलत हवें। नफरत के जहर एतना भरल जात बा कि आदमी ही आदमी के डंस लेई। साँप से ज्यादा खतरनाक आस्तीन वाला साँप हो गइल हवें। इनकर डंसल मनई त पानी ना मांग सकेला। भविष्य पुराण में बतावल गइल बा कि नागिन दो सौ चालीस अंडा देली। लेकिन अंडा के आहार बना लेली। एक दुगो अंडा जवन बच जालें उहे नाग चाहें नागिन होलें। जनसंख्या नियंत्रण के अईसन फार्मूला। खैर! मनई त अईसन विषधर हो गइल बा कि समाज मे चारों ओर जहर ही जहर भरत बा।

आइल मौसम देखीं सभे अब, भांति-भांति के साँप।
कुछ तो केचुल छोड़कर, दिख रहे बहुत ही पाक।।
देहाती फुफकार रहल बा, हम सापों के बाप।
यूपी में अब हो रहल बा, सांपन के ही जाप।।



सोमवार, 16 अगस्त 2021

भोजपुरी व्यंग्य 9 अगस्त 21

लेख सुनामी एक्सप्रेस 16 अगस्त 21

सत्ता रस की खोज में भौंरा बने राजभर

पांडे एन डी देहाती, स्वतंत्र पत्रकार

कभी यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर आजकल सत्ता रस की खोज में भौरें की तरह कभी इस दल पर कभी उस दल पर मरड़ा रहे हैं। ओमप्रकाश राजभर पहले बीजेपी के साथ थे। यूपी की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। सरकार में सहभागी थे लेकिन विरोध इतना करते रहे कि विरोधी पार्टियां भी पिछड़ गईं। बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन कर लिये।भागीदारी संकल्प मोर्चा की बात करें तो इसमें कुल 10 पार्टियां शामिल हैं। बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, अपना दल (के) यानी कृष्णा गुट, ओवैसी की एआईएमआईएम, प्रेमचंद प्रजापति की पार्टी के साथ ही अन्य छोटी पार्टियां इस मोर्चे में शामिल हैं। ओवैसी के मजनू बने ओम प्रकाश हर जगह हाथ पांव मार रहे। वे उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से भी मिल चुके हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ओम प्रकाश राजभर को पसंद न करते हों लेकिन संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ऐसा ताना बाना बुन रहे हैं कि राजभर की घर वापसी हो जाय। दयाशंकर ही राजभर को अपने साथ लेकर स्वतंत्रदेव सिंह से मिलाने गए थे। दयाशंकर सिंह ने कहा कि उनकी कोशिश है कि ओमप्रकाश राजभर को एनडीए में लाया जाए क्योंकि राजनीति में कोई परमानेंट मित्र या शत्रु नहीं होता। राजभर शुरू से प्रधानमंत्री मोदी के दलित और पिछड़े वर्गों के लिए किए गए कार्यों के समर्थक रहे हैं।  ऐसे में वह हमारे साथ दोबारा आ सकते हैं। 
बहरहाल अभी बसपा से जितेंद्र सिंह बबलू को भाजपा ज्वाइन कराने का हश्र स्वतंत्र देव सिंह देख चुके हैं। भला हो रीता बहुगुणा जोशी का जिन्होंने अपने प्रचंड विरोध के बल पर जितेंद्र सिंह को पार्टी से निकलवा कर दम लिया। एक बात समझ में नहीं आ रही कि जो ओम प्रकाश राजभर भाजपा और योगी के खिलाफ इतनी बकैती कर रहे उन्हें भाजपा में लाने को स्वतंत्रदेव क्यो आतुर हैं।
ओवैसी, स्वतंत्र देव सिंह के अलावा राजभर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मिल लिए। लखनऊ में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव  से उनकी मुलाकात एक घण्टे की रही। गठबंधन को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। 
अपने बड़बोलेपन के लिए प्रसिद्ध ओम प्रकाश राजभर तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नेता ही नहीं मानते है। राजभर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए अभी हाल ही में कहा, "योगी साधु बाबा हैं. उन्हें मठ-मंदिर में रहना चाहिए। वह वहीं अच्छे लगते हैं। दरअसल, योगी आदित्यनाथ कोई नेता नहीं हैं। नेता तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा मुखिया मायावती हैं।" राजभर ने कहा कि मायावती और अखिलेश के मुख्यमंत्री काल में विकास कार्य धरातल पर नज़र आते थे जबकि योगी आदित्यनाथ का कोई भी काम जमीन पर दिखाई नहीं देता।इससे पहले राजभर ने दावा किया था कि अगर समाजवादी पार्टी केवल छोटे दलों से समझौता कर ले, तो आगामी विधानसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिलेगी। 
ओम प्रकाश राजभर की काट के लिए भाजपा ने अनिल राजभर को मंत्री बनाया लेकिन जिस प्रकार अपनी बिरादरी पर ओम प्रकाश हावी हैं उनकी तुलना में अनिल नहीं हैं। ओम प्रकाश राजभर सत्ता से बेदखल होने के बाद बेचैन हैं। कभी ओवैसी, कभी स्वतंत्रदेव, कभी अखिलेश से मिलने के पीछे मात्र एक उद्देश्य है कि एन केन प्रकारेण सत्ता का रस फिर मिले।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

भोजपुरी व्यंग्य 9 अगस्त 21

नगर-डगर की बात/एन डी देहाती

बाबा लोग की पयलग्गी में, बेआदर सन्देश

मनबोध मास्टर भड़कल हवें। भिनहि से गधबेरी ले पयलग्गी के दौर। काहें लोग एतना पाँव लागत बा। आशीर्वाद दिहला में औज़ाईल रहलें, तबले फिर एक जने बोल पडलें-बाबा पाय लागीं। बेरूखे मुँह से निकर गइल- जीय$ बाबू! भरसक। अब येही "भरसक" पर बहस शुरू हो गइल। बाबा बोल पड़ले-हवा में जनि उड़$ जा। चतुराई देखा के जवन वोट की घनचक्कर में घर-घर छिछिआत हव जा, जगह -जगह चिचिआत हव जा। एह से कल्यान ना होई। जवन जे बोवले बा उहे काटी। गाँव-गाँव पंडी जी लोग के अईसन श्रद्धा से खोजत हव जा, जेईसे 22 में चुनाव ना श्राद्ध पड़ल होखे। एतना श्रद्धा त श्राधे में लउकेला। बाबा लोग के हमेशा पिसान वाला "परथन" बनवले रहल$ लोग। आटा की लोईया में परथन लपेट के आपन रोटी सेंकला के आदत एह बेरी छूट जाई। बाप रे बाप!हद के थेथरई बा। सालों साल मनुवादी कहि के गरिवलें, आज पयलग्गी करत हवें। जेकर नेता अयोध्या में शौचालय बनवावे के कहत रहलें। ओकर चेला अब सरयू मईया में दूध चढ़ावत हवन।तिलक- तराजू- तलवार के अब ना जूता मरब$? ना घाव भरल बा, न भुलाइल बा। आ हुनके देख$- जेकरा राज में उनकी चेला-चपाटी लोग की लाठी में अंगारी बरसत रहे, उहो पांच जने पण्डिते के लेके बाबा लोग के अझुरावत हवें। का समय आ गइल बा। जातिवाद की जहर में झौसाईल राजनीति देख के इंसानियत सरमात बा। सियासी तरजुई पर बाबाजी लोग के "बटखरा" बनवला में सब लोग लागल बा। चारों ओर चाभी-चाभा बा। बुद्धू बक्शावालन की मुद्दा में भी बाबा बा। जेतना काशी आ काबा वालन के चर्चा ना, ओतना बाबा लोग के चर्चा। मनुवादी कहि कहि जे देत रहे गारी, उहो अब आरती उतारी। जवन लोग सदा से पीठ पूजला के आदती रहे, उहो अब पाँव पूजत बा। ई कलमुँही राजनीति कवन-कवन दिन देखाई? खैर! 22 में बाबा लोग बबे की साथे रहीहन कि कुछ नया खेला होई? ई त भविष्य की गरभ में बा, लेकिन बाबा लोग के एकठिआवल बिकट काम ह। सब विद्वान ह। सब बुद्धिजीवी ह। 
आईं, एह चार लाइन की कविता में सब सारांश सुनीं-
"गाँव-गाँव में फइल रहल बा, राजनीति के क्लेश।
बाबा लोग की पयलग्गी में, बेआदर सन्देश।।
कहें देहाती बन्द कर$ जा, स्वांग भरल उपदेश।
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि राखीं,जातिधर्म ना लेश।।"

सोमवार, 2 अगस्त 2021

भोजपुरी व्यंग्य प्रकाशित 2 अगस्त 21

भोजपुरी व्यंग्य-प्रकाशित 2 अगस्त 2021

भोजपुरी व्यंग्य

नगर-डगर की बात-एन डी देहाती

नगर भले पानी-पानी भईल, उनकी आंख मरल नाहीं पानी....

मनबोध मास्टर इत्मीनान से टांग पसार के सुतल रहलें। इन्द्र की कृपा से बदरा गरगरा के बरसत रहे।सुतला में बरखा बहार वाला सपना देखत रहलें। अचानक देहिं पर शिव जी के गले के हार मास्टर की देहि पर चढ़ि गइल। मास्टर चिहुक के उठलें। आंख मलते पहिला पांव पलंग के नीचे उतारते छपाक.। चप्पल बहि के ना जाने कहां चलि गइल रहे ,आ नाला के पवित्र पानी आ प्लास्टिक के कचरा घर में समा गइल रहे। मस्टराइन ना जाने कबे से फुफती खोंस के घर के पानी बहरा उदहला में लागल रहली। मास्टर के देखते बादर जस फाटि पड़ली- कुंभकरन अस सुतल रहल$ ह, सब सामान नुकसान हो गइल। गाँव छोड़ के शहर में अईला। महानगर में बसि गईला। यह महानगर के हाल त गउओं से बाउर बा। मास्टर बाहर निकरलन। सड़क पर तीन फुट बहत पानी में नगर भरमण कर के लौटलें। मेहरी के सांत्वना देत समझावै लगलन- देख$, तुही नाहीं पानी मे घेराईल हऊ। एमपी साहेब, एम एल ए साहब सबकर घर त पानी मे घेराईल बा। शहर पानी पानी हो गइल बा, लेकिन नगर निगम के नजर के पानी नईखे मरत। शहर त कछार हो गइल बा। पानी त उनहूँ की नजर के नईखे मरत जे विकास के बड़का ढोल पीटत बा। का करबू, चारो ओर त पानिये पानी बा। घाघरा घघाईल बा, राप्ती बढिआईल बा, रोहिन बौराईल बा, गंडक उफनाईल बा, रामगढ़ ताल भी फ़फ़नाईल बा। पानी निकरे के जगह मिलते ना बा। गोरखपुर से देवरिया जाए वाली सड़क पर सिंघड़िया की आगे नाव चले लायक पानी बा। सिंघड़िया ही ना वसुंधरा नगरी, सरजू नहर कॉलोनी, प्रजा पुरम, प्रिंस कॉलोनी, गोरखनाथ नगर, प्रगति नगर, मालवीय नगर,श्रवण नगर......। कहे के मतलब आधा महानगर पानी से घेराईल बा। अब विरोधी लोग कहीहें-सीएम सिटी के ई हाल बा। त टप्प से सत्ता समर्थक बोल पड़िहैं- बसपा आ सपा की शासन में भी इहे हाल रहे। 
"लाज न बा कवनो गतरी, देहाती सुनावें विकास कहानी।
घर घेराईल जेकर बा, झँखत हवें रोज उदहत हवें पानी।
सत्ता बदलले ना सुख मिलल, दुख ही में बीतत बाटे जिंदगानी।
नगर भले पानी-पानी भईल, उनकी आँख मरल नाहीं पानी।।"

सोमवार, 26 जुलाई 2021

ब्राह्मणों के प्रति हमदर्दी महज चुनाव तक

 ब्राह्मणों के प्रति हमदर्दी महज चुनाव तक

यूपी में चुनाव सामने है। सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की जुगत में हैं। प्रदेश के 12 फीसदी ब्राह्मण तख्त ताज बदलने का मादा तो रखते हैं। बस कमी है कि संगठित नहीं रहते। यही कारण है कि कांग्रेस सरकारों के पतन के बाद केवल ब्राह्मण जाति का इस्तेमाल हुआ। उन्हें उनका उचित हक नहीं मिला। राज सिंहासन पर दूसरे ही लोग विराजमान हुए। ब्राह्मण ईर्ष्या नहीं करते,संतुष्टि ही उनकी खुशी का मंत्र है। वक्त के साथ ब्राहम्ण भी बदले। कभी कांग्रेस का मेरूदण्ड ब्राह्मण था। आज भाजपा की भक्ति में ब्राह्मण लीन है। अन्य दलों के लोग इसी से परेशान हैं, वे ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की होड़ में हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती अयोध्या से सतीश मिश्र के नेतृत्व में ब्राह्मण सम्मेलनों की शृंखला का श्रीगणेश कर चुकी हैं। प्रदेश के हर मंडल में सतीश मिश्र ब्राह्मण सम्मेलन करेंगे। सवाल यह है कि सतीश मिश्र को कितने फीसदी ब्राह्मण अपना नेता मानते हैं। सतीश मिश्र जिस बसपा में हैं उस पार्टी का चरित्र है कि वह कब किसे राखी बांध दे और कब किसे छोड़ दे। जिस ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने गेस्ट हाउस कांड में सपा के हमले से मायावती को बचाया, उन्हीं के बेटे सुनील दत्त को बसपा ने अपमानित कर दल से बाहर इस लिए कर दिया था क्योंकि उन्होंने बसपा से सपा के गठबंधन का विरोध किया था।सुनील दत्त द्विवेदी ने तब कहा था कि मायावती ने उस पार्टी से गठबंधन किया है जिसके नेताओं ने उन्हें 1995 में जान से मारने की कोशिश और अपमानित किया था। उन्होंने कहा कि साल 1995 में जिस दौरान यह घटना हुई उस समय मेरे पिता ने ही उनकी जान बचाई थी। इस घटना के बाद उन्होंने मेरे पिता को अपना भाई और मुझे भतीजा बताया था लेकिन कभी भी हमारे परिवार की तरफ मुड़ कर नहीं देखा। सुनील ने कहा कि इस घटना के 23 साल बाद अब उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया है और उन्हें अखिलेश यादव के रूप में एक नया भतीजा भी मिल गया है। भले ही उन्होंने यह गठबंधन कर अपनी राजनीति को बचाने का प्रयास किया हो लेकिन यह साबित करता है कि मायावती रिश्तों के महत्व को नहीं समझती।
प्रदेश में आज की राजनीति की बात करें तो नेता भले चुनावों में जीत का आशीर्वाद लेने ब्राह्मण के पास आते हों लेकिन सत्ता में भागीदारी के मामले में ब्राह्मणों को उनका असल हक नहीं दिया जाता। लेकिन ब्राह्मणों का इतिहास है कि उन्होंने कभी विद्रोह नहीं किया ना ही अपने हक के लिए कोई बड़ी लड़ाई लड़ी है। ब्राह्मण का प्रयास रहता है कि समाज में शांति और समृद्धि बनी रही जिससे उसका भी काम चलता रहे। आमतौर पर ब्राह्मण को काम पड़ने पर ही याद किया जाता है और अब चूँकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आ गये हैं तो प्रदेश में वोटों के लिहाज से बड़ा महत्व रखने वाले इस समुदाय को लुभाने की कवायद भी तेज हो गयी है। 
सपा हो या बसपा क्या यूपी में किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री बना सकते है ? भाजपा को हिंदूवादी कहा जाता है। भाजपा भारतीय संस्कृति, सनातन संस्कृति की प्रबल समर्थक है। जानना यह भी आवश्यक है कि सनातन धर्म की ध्वजा सबसे अधिक ब्राह्मण ही ऊंचा किये हैं। समाज उन्हें पाखण्डी भी कहता है, कारण कि पूजा पाठ, नियम, व्रत, तीज, त्योहार पर ब्राह्मण समुदाय अन्य वर्ग से दो कदम आगे बढ़कर भारतीय संस्कृति को बचाये रखने के उपक्रम में लगा रहता है। समाज और राष्ट्र में संस्कार का सृजन जितना ब्राह्मण कर लेता है ,अन्य वर्ग बहुत पीछे रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी मंत्रिपरिषद का जो विस्तार और फेरबदल किया है उसमें उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों को देखते हुए ब्राह्मण नेता को भी जगह दी है। मोदी सरकार में देखें तो कुल मिलाकर 11 ब्राह्मण मंत्री हैं। इस तरह की भी चर्चाएं हैं कि योगी सरकार के संभावित विस्तार में कांग्रेस से भाजपा में आये ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को जगह दी जा सकती है। योगी सरकार में इसके अलावा पहले से ब्रजेश पाठक  कैबिनेट मंत्री हैं ही।सवाल यह है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा चलती ही किसकी है। जिस जितिन प्रसाद को मंत्री बनाये जाने की चर्चाएं तेज हैं उन्हें कौन ब्राह्मण अपना नेता ही मानता है।योगी सरकार के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी ब्राह्मणों में अपनी पैठ नहीं बना सके। दूसरे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जिस प्रकार से पिछड़े वर्ग को अपने से और पार्टी से जोड़ने में जो महारथ हासिल की है वह न तो दिनेश शर्मा ही हासिल कर सके न ब्रजेश पाठक। 
उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ, उसके कई और साथी भी मारे गये तो मीडिया के एक वर्ग ने खबरें चला दीं कि ब्राह्मण योगी सरकार से नाराज हो गया है । यह पूरी तरह गलत है। अगर नाराज भी होगा ब्राहम्ण तो घर छोड़ कर जाने वाला नहीं है। क्योंकि उसे पता है सपा और बसपा के शासनकाल में ब्राह्मणों की कितनी दुर्दशा हुई थी। पूर्व मंत्री ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या सहित एटा, फरुखाबाद, इटावा, मैनपुरी सहित कितने जिलों में ब्राह्मणों की जो नृशंस हत्याएं हुईं उन्हें ब्राह्मण समाज भूला नहीं। इन दिनों मायावती विकास दुबे की केस लड़ने की बात कर रही। विकास दुबे अपराधी था, उसके प्रति आप की हमदर्दी केवल दिखावा है।
ब्राह्मण यदि सरकार से नाराज है तो अपने साथ होने वाले भेदभाव से नाराज है, अपने बच्चों के शिक्षा और नौकरियों के खोते अवसरों से नाराज है। ब्राह्मण नाराज इस लिए भी है कि जिस प्रकार सपा में एक जाति विशेष का, बसपा में दूसरी जाति विशेष का और अब भाजपा में तीसरी जाति विशेष का दबदबा बढ़ा है। स्थानीय स्तरों पर कुछ लोग केवल अपने को ही भाजपा का मुखपत्र समझ रहे। बस ब्राह्मण को इसी बात की कोफ्त है। कारण कि ब्राह्मण का योगदान भी भाजपा को आगे बढ़ाने में कम नहीं है। 
 मायावती को 14 साल बाद यदि ब्राह्मणों की याद आई है । मायावती 50 से ज्यादा टिकट ब्राह्मणों को दे सकती हैं। भाजपा भी अधिक से अधिक टिकट ब्राह्मण को देकर उनकी नाराजगी दूर कर सकती है।
ब्राह्मण समुदाय को लुभाने की कोशिश में समाजवादी पार्टी प्रदेश में भगवान परशुराम की मूर्तियाँ लगवाने का ऐलान कर चुकी है। लखनऊ में तो 108 फुट ऊंची भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाई भी जा रही है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन ब्राह्मण नेताओं- अभिषेक मिश्र, माता प्रसाद पांडे और मनोज पांडे को जिम्मेदारी सौंपी है कि ब्राह्मणों को सपा के पक्ष में एकजुट किया जाये। अब ब्राह्मण सवाल कर रहे कि सपा के ये त्रिदेव अपने शासनकाल में ब्राह्मणों की कितनी मदद किये हैं। सपा के शासनकाल में उनके लोगों ने गवईं स्तर पर जो जुल्म ढाए उन्हीं भुलाया नहीं जा सकता।  कांग्रेस के पास प्रमोद तिवारी, राजीव शुक्ला और ललितेशपति त्रिपाठी जैसे बड़े ब्राह्मण नेता है। कांग्रेस का यह भी कहना है कि वही एकमात्र पार्टी है जिसने प्रदेश को ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिये। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से 1989 तक उत्तर प्रदेश में छह बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। प्रदेश के अंतिम ब्राह्मण मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी थे जिन्होंने तीन बार प्रदेश की कमान सँभाली थी। कांग्रेस की इस बात में दम तो है लेकिन क्या कांग्रेस अब दमदार पार्टी रह गयी है? प्रदेश में लोकप्रियता के आधार पर देखें तो क्रमशः भाजपा, सपा और बसपा के बाद कांग्रेस का नम्बर है। अंततः हम कह सकते हैं कि ब्राह्मण भाजपा से नाराज भले हो, भाजपा को छोड़ेगा नहीं। अपवाद स्वरूप तो हर जातियों के नेता हर दल में हैं लेकिन ब्राह्मण समाज की निष्ठा अभी भी भाजपा में ही है। ढोल बज रहे। ढोल बजेंगे। चुनाव बाद सब अपनी असलियत पर आ जाएंगे। भाजपा नेतृत्व को यह दृष्टि रखनी होगी कि वह पूर्ववर्ती सरकारों जैसे एक जाति विशेष पर मेहरवान न हो। तभी पूरा होगा-सबका साथ, सबका विकास का नारा।

- पांडे एन डी देहाती, स्वतंत्र पत्रकार

सम्पादकीय

गुरुवार, 10 जून 2021

कोरोना पर मेरी कविता

कोरोना काल

इंसान एहर मरता, ईमान ओहर बिकता। 
यमराज ऐने हंसता,भगवान ओने रोअता। 
गाँव गॉव वीरान भईल, शहर सुनसान बा।
खौफनाक मंजर चहुँ, अजब दास्तान बा। ।
मृतकन की साथे उठत, इंसानियत के अर्थी।
साहब सुब्बा सरकार काटे, रोटी में भी जर्ती।।
देखीं राजनीति बईठ, बिहसे असोरा में।
जवान लईका के लाश, बूढ़ बाप की बा कोरा में।।
नेता जी का निक लागे, चुनाव मतगणना।
मन करे जब ही लगा दें, लाकडाउन ताड़ना।।
मिले ना दवाईं, छटपटात लोग मरता।
लकड़ी अभाव में, आधा लाश जरता।।
सांस वाली हवा दवा, मिले न अस्पताल में।
पेरात हवें मनई, भूसा भरे खाल में।।
अईसन महामारी बा, की सब केहू लाचार बा।
मुंह पे जाबा डाल, ना त दंड बेसुमार बा।।
पिछला साल खूब उहाँ का , दीया जरववलीं।
ताली बजववली, आ थाली पिटववलीं।।
असो दीया गुल होता, पीटे लोग छाती।
एक एक घर में बाप बेटा मरत हवें नाती।।
कहलें देहाती बाबा, लगल केकर श्राप बा।
रामनाम सत्य के, चारो ओर जाप बा।।

-पांडे एन डी देहाती

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

नोहर के धनिया, भुईंया रहिहै कनिया?

नोहरे कै धनिया,भुइयां रहिहें कनिया?

सोचहरण जब कलकत्ता से कमा के घरे लौटलें त रेलगाड़ी में बुक कराके एगो साईकिल भी ले चललें। समूचा जवानी चटकल में काट के, घर के खर्चा। हित-नात के नेवता।बाप-माई-मेहर के दवा दारू। लईकन के नरखा, नून-रोटी में हर महीना के पगार ओरा जात रहे। कलकत्ता से विदाई की बेरा एक जोड़ी धोती, एक जोड़ा कलकतिहा गमछा, एगो छाता आ बाटा वाला जूता खरीद के बक्सा में भर लिहलें। इहे जिनगी के कमाई रहल। तीन दिन में रेलगाड़ी उनकी गॉव की नियरा वाला टीशन घसीपुरवा पहुंचा दिहलसि। गॉट बाबू के बिल्टी थम्हा के पार्सल वाला बोगी से साईकिल उतार के माथ पर बक्सा आ कान्हे में साईकिल लटकवले घसीपुरवा से पैदल जमुनियाडीह चल दिहले। दरअसल में साईकिल बड़ा पसेवा से किनाइल रहे। गतर-गतर कपड़ा से बन्हाइल रहे। डर रहे कहीं रगरा के पेंट न छोड़ दे। धूर-माटी ना लाग जा। सोचहरन के गॉव में पहुंचते हल्ला मच गईल। गॉव में पहिला साईकिल जे आईल रहे, जवना के लोग 'पाँव -गाड़ी' कहे। देखवईन के भीड़ दुआर पर लाग गईल। सोचहरन के मेहरारू लोटा के पानी लेके काली माई के छाक देबे चल दिहलीं। बाबूजी डीह बाबा के गोहरावे लगलें। बुढ़िया माई बरम बाबा के दूधे नहवावे लगली। बक्शा में से कलकतिहा मिठाई निकार के दुआरे पर बांटत अपना हेली-मेली से बतियावत, साईकिल के गुन गावत साँझ हो गईल। दूसरा दिने गतर-गतर बान्हल साइकिल खोलाईल। विश्वकर्मा महराज के पूजा पाठ भईल। तिजहरिया की बेरा सोचहरन साईकिल लेके बाजारे चल दिहलें। गॉव से लेके रास्ता में मिले वाला लोगन से साईकिल के बखान करत जब बाजारे से लौटलें त अचके में आन्ही-पानी आ गईल। पतरा में पड़ल मनई, आस पास कवनो गॉव न ठेकान। सोचहरन का अपनी साईकिल के चिंता। धोती खोलके हाली-हाली साईकिल के लपेट के जंघिया पहिरले कान्हे पर साईकिल टँगले घरे पहुंचले। सोचहरन के दशा देख सब हंसे लगले। मेहरारू कहलिन -  नोहरे कै धनिया, भुइयां रहिहें कनिया? राउर सईकिलिया हमरा से कम नोहर नईखे।
हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद