मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
सोमवार, 30 दिसंबर 2013
हिंदी, उर्दू व भोजपुरी की बही त्रिवेणी
प्रगतिशील लेखक संघ व गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को प्रेस क्लब के सभागार में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में हिंदी, उर्दू और भोजपुरी के कवियों की एक से बढ़कर एक की गई प्रस्तुतियों से ऐसा लगा जैसे यहां काव्य की त्रिवेणी बह रही हो। शहर में रचनात्मक संवाद को आम बनाने तथा रचनाकारों को परस्पर गंभीरता से लेने पर जोर देने के के उद्देश्य से आयोजित कविता-पाठ, अध्यक्ष मंडल के सदस्यों डॉ. चितरंजन मिश्र, डॉ. अजीज अहमद, डॉ. जनार्दन एवं प्रेस क्लब अध्यक्ष रीतेश मिश्र की उपस्थित में संपन्न हुयी। कविता-पाठ का शुभारंभ नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’ की भोजपुरी कविता ‘आरक्षण में गांव गईल, लोग बोले बहुबोली। खायीं खायीं ना प्रधान जी, बर्दास्तवाली गोली से हुआ। इस अवसर पर सत्यम सिंह और अभिनव मिश्र की कविताओं को विशेष तौर पर रेखांकित किया गया। उन्हें भविष्य के सार्थक रचनाकार के रूप में देखा गया। लखनऊ से आये शायर बश्ना आलमी की गजलों और कतआत को गंभीरता से लेते हुए कहा गया कि इनकी शायरी में आम जिंदगी की आहट है। डॉ. वेद प्रकाश पाण्डेय के दोहे सम-सामयिकता को रेखांकित कर रहे थे तो वहीं डॉ. अखिलेश मिश्र की कविता ‘तुमको पाया भी नहीं पर भुलाया भी नहीं, काबिले तारीफ रही। वीरेंद्र हमदम की कविता ‘मटमैली दुनिया को ज्यादा कोसो मत, अक्सर नये नोट भी जाली होते हैं। वफा गोरखपुरी ने ‘दीवार नफरतों की गिरा देना चाहिए। जो रो रहे हैं उनको जगा देना चाहिए। ने इस गोष्ठी को मानो जगा दिया हो। कविता पाठ में सुरेंद्र शास्त्री, डॉ. रंजना जायसवाल, डॉ. अनीता अग्रवाल, अर्शी बस्तवी, श्रीधर मिश्र, आडीएन श्रीवास्तव, जगदीश नारायण श्रीवास्तव, वेद प्रकाश आदि ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को समृद्ध किया। कविता पाठ का संचालन महेश अश्क तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद कुमार द्वारा किया गया। इस दौरान प्रेस क्लब का सभागार बुद्धिजीवियों, पत्रकारों एवं कवियों से खचाखच भरा रहा। लोगों ने घंटों खड़े रहकर काव्य- पाठ का रसपान किया। प्रगतिशील लेखक संघ व गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब की सं युक्त प्रस्तुति
गुरुवार, 26 दिसंबर 2013
जैसी बहै बयार, पीठ तब तैसी कीन्हो..
मनबोध मास्टर राजनीतिक निष्क्रियता, प्रशासनिक अकर्मण्यता, आर्थिक अस्थिरता
से उपजल महंगाई आ सामाजिक जीवन में डेग-डेग पर भभोरत भ्रष्टाचार से बहुत
दुखी हवें। थोड़का सा सकुन मिलल कि दिल्ली में आम आदमी अपनी ताकत के एहसास
करवलें। नेता लोग की खिलाफ उपजल गुस्सा वोट बन के गिरल त राजनितिक पंडितन
के बोलती बंद हो गइल। राजनितिहन के जाति, धर्म आ क्षेत्रियता के फार्मूला
फुस्स हो गइल। नया जोश, नयी उम्मीद, नयी ताकत से उभरल आम आदमी पार्टी।
राजनीति के मुलम्मा चढ़ते आप नेता के बोल भी राजनीतिक हो गइल। सच कहीं त
लगता पढ़ाई की समय में बहुतन की तरह खूब विद्या माई के किरिया खाये वालन की
लिस्ट में अव्वल रहल होइहन केजरीवाल। दिल्ली में विधान सभा के चुनाव
परिणाम आइल त पहिले आप, पहिले आप के सुर चलल। केजरीवाल साहब अपनी बच्चन तक
के किरिया खइलें। ना समर्थन लेइब, ना देइब। जवना कांग्रेस की भ्रष्टाचार के
करिखा से करिया बुझत रहले उहे आंख के अंजन हो गइल। भाजपाई लोग पूछत बा- ‘
कहां गइल किरिया-कहट?’ लोग कहत बा- ‘सूप हंसे त हंसे चलनियों हंसति बा जवना
में बहत्तर गो छेद’। केजरीवाल अपनी बच्चन के कसम खइलें त का भइल, भाजपाई
लोग त ‘ सौगंध राम की खाते हैं.’ भइया लोग रामजी के भी बदनाम क दिहलें।
राजनीति अगर सब जायज बा त केजरीवाल के कसम भी नाजायज ना बा। लगत बा
केजरीवाल साहब ‘ जैसी बहै बयार, पीठ तब तैसी कीन्हों’ की तर्ज पर चलत हवें।
भ्रष्टाचार मेटावे खातिर ना सरकारी मोटर चाहीं, ना सरकारी बंगला, ना
सुरक्षा, ना हूटर , ना शूटर। बस चाहीं त एगो सरकार। जवना के बना के
व्यवस्था सुधारल जा सके। अगर ‘आप’ के सरकार दिल्ली में फेल त देश में साफ।
अगर दिल्ली में सही त खाता न बही पूरा देश में ‘आप’ ही रही। एगो सावधानी
बहुत जरूरी बा। कुछ घुसपैठिया भी लागल हवें। दामन के दाग छिपवले ‘आप’ में
समाये की फिराक में लगल घुसपैठियन से सतर्क रहला के जरूरत बा। ‘आप’ सरकार
बनावत हई। आम आदमी आपन समर्थन रउरा के दे देले बा। अब हर काम खातिर जनमत
संग्रह कराइब त फैसला में देरी होई। खरमास में कवनो नया काम ना होला लेकिन
दिल्ली में नवकी सरकार बने जात बा। लोग के अपेक्षा बा ‘नायक’ पिक्चर की
हीरो जइसन मुख्यमंत्री के। अब जवन वादा कइलें ओके निभावें। ज्यादा समय
लिहें त समय करवट ले ली। झाड़ू-पंजा प्रेम की नवकी सरकार के शुभकामना की
साथे इ कविता-
दि ल्ली में बने जात बा, ‘आप’ के सरकार।
चारों ओर से लोग करत
बा, ‘आप’ के जय जयकार।।
कांग्रेस की कूटनीति से देखीं , केतना बचत बा ‘आप’ ।
आज त सबकर बाप बनल बा, कल हो ना जाये फ्ल्ॉाप।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 26/12/13 के अंक में प्रकाशित है .
रविवार, 22 दिसंबर 2013
पत्रकार अपनी ताकत पहचानें : प्रो. शुक्ल
जिला पंचायत सभागार में नया मीडिया मंच द्वारा आयोजित ‘नया मीडिया एवं
ग्रामीण पत्रकारिता’ विषयक संगोष्ठी तथा सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते
हुए दीदउ गोविवि गोरखपुर के हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.
रामदेव शुक्ल ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारिता की व्यथा को सुनकर मुझे पीड़ा
हुई है। समाचारों को अपनी सुविधानुसार छापने से पत्रकारों का मनोबल टूटता
है। श्री शुक्ल ने गांवों के विकास में ग्रामीण पत्रकारों की अहम भूमिका
बताते हुए कहा कि समाज के निर्माण में पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
उन्होंने पत्रकारों से अपनी ताकत पहचानने का आह्वान करते हुए कहा कि आप
अपनी ताकत को पहचानो। कलम का मुकाबला तोप भी नहीं कर सकती है। उन्होंने
मीडिया के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज मीडिया नहीं होता तो देश कब
का बिक गया होता। श्री शुक्ल ने सोशल मीडिया पर अश्लीलता के बढ़ते प्रभाव
पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि अश्लीलता भारतीय संस्कृति के विपरीत है।
संगोष्ठी को मा.वि.वि. भोपाल के ई-मीडिया के विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीकान्त
सिंह, पंकज झा, यशवन्त सिंह, डॉ. दिनेश मणि त्रिपाठी, आल इण्डिया रेडियो , दिल्ली की समाचार वाचिका श्रीमती अलका सिंह, संजय मिश्र, नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’, डॉ.
जयप्रकाश पाठक, डॉ.सौरभ मालवीय, राजीव कुमार यादव, अरुण कुमार पाण्डेय,
सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी, सतीश कुमार सिंह, पं. राघवशरण तिवारी समेत दर्जनों
लोगों ने संबोधित किया। संगोष्ठी का संचालन शिवानन्द द्विवेदी ने संबोधित
किया। इस अवसर पर उदय प्रताप सिंह, विवेक धर द्विवेदी, विद्या पाण्डेय,
दिलीप मल्ल, जयशंकर पाण्डेय सहित सैकड़ों पत्रकार, अधिवक्ता, समाजसेवी आदि
उपस्थित रहे। इस समारोह में कार्यक्रम के अध्यक्ष दीदउ गोविवि गोरखपुर के
हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामदेव शुक्ल ने पत्रकार
नर्वदेश्वर पाण्डेय ‘देहाती’, संजय मिश्र, राजीव कुमार यादव, इलेक्ट्रानिक
मीडिया के पत्रकार सौरव मालवीय एवं शिक्षाविद् प्रो. जयप्रकाश पाठक समेत
पांच लोगों को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न देकर मोती बीए सम्मान से
सम्मानित किया गया।
गुरुवार, 19 दिसंबर 2013
आई तनिका हाथ सेंक लीं..
आई तनिका हाथ सेंक लीं, मौसम आइल अलावे के।
बेंच के लकड़ी जेब भराई, भले ना
मिली जलावे के।।
का दइब इ जाड़ा भेंजलन, गरीबन के ही मुआवे के।
हो जाई
तैयार पंचों, फिर अब लाश गिनावे के।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 19 /12 /13 के अंक में प्रकाशित है।
|
मंगलवार, 17 दिसंबर 2013
रेलवे परामर्शदात्री समिति ने मंगलवार को आयोजित बैठक में स्टेशन की बदहाल व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा की।
रेलवे परामर्शदात्री समिति ने मंगलवार को आयोजित बैठक में स्टेशन की बदहाल
व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा की। बैठक से पहले समिति के सदस्यों ने प्रथम
श्रेणी गेट पर पसरी गंदगी और वीआइपी गेट के सामने स्थित प्री पेड बूथ की
समस्याओं को न सिर्फ दिखाया बल्कि आने वाली मुश्किलों का भी एहसास कराया।1
रेल प्रशासन ने समस्याओं को जाना और यात्री सुविधाओं को और बेहतर बनाने का
आश्वासन दिया। दिन के 3 बजे से एसी लाउंज में एरिया मैनेजर जेपी सिंह की
अध्यक्षता में बैठक शुरू हुई। सदस्यों ने बताया कि प्रथम श्रेणी गेट के
दोनों तरफ मल-मूत्र बहता रहता है। स्टेशन परिसर में घुसते ही सड़ांध यात्री
के मन को खराब कर देती है। जबकि, यहां 1366.44 मीटर विश्व का सबसे लंबा
प्लेटफार्म तैयार हो चुका है। इसके चलते गोरखपुर भी विश्व पटल पर छा गया
है। इसके बाद भी यह हाल है। स्टेशन प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि
प्रीपेड टैक्सी बूथ को प्रीपेड थाना में बदल दिया गया है। इसके अलावा
ओवरब्रिज से होकर प्लेटफार्म नंबर 1 से 9 तक पार्सल ले जाने पर लगने वाले
जाम की समस्या के बारे में भी रेल प्रशासन को अवगत कराया। समिति ने पुरानी
मांगों को भी दोहराया। जिसे आश्वासन के बाद भी रेल प्रशासन ने पूरा नहीं
किया। एरिया मैनेजर ने यात्री सुविधाओं को और बेहतर करने तथा मांगों पर
विचार करने का आश्वासन दिया। बैठक में नर्वदेश्वर पांडेय देहाती, प्रो.
श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, श्रीमती बंदना गुप्ता, बलबीर सिंह, अशोक कुमार
अग्रवाल, संजय सिंह आदि समिति के सदस्यों के अलावा डीसीआइ एके सुमन, सीटीआइ
मकसूद आलम, मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक योगेंद्र सिंह, आरपीएफ के प्रभारी
निरीक्षक राजेश कुमार व मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक शशिकांत आदि मौजूद थे।
1जागरण संवाददाता, गोरखपुर : रेलवे परामर्शदात्री समिति ने मंगलवार को
आयोजित बैठक में स्टेशन की बदहाल व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा की। बैठक से
पहले समिति के सदस्यों ने प्रथम श्रेणी गेट पर पसरी गंदगी और वीआइपी गेट
के सामने स्थित प्री पेड बूथ की समस्याओं को न सिर्फ दिखाया बल्कि आने वाली
मुश्किलों का भी एहसास कराया।1 रेल प्रशासन ने समस्याओं को जाना और यात्री
सुविधाओं को और बेहतर बनाने का आश्वासन दिया। दिन के 3 बजे से एसी लाउंज
में एरिया मैनेजर जेपी सिंह की अध्यक्षता में बैठक शुरू हुई। सदस्यों ने
बताया कि प्रथम श्रेणी गेट के दोनों तरफ मल-मूत्र बहता रहता है। स्टेशन
परिसर में घुसते ही सड़ांध यात्री के मन को खराब कर देती है। जबकि, यहां
1366.44 मीटर विश्व का सबसे लंबा प्लेटफार्म तैयार हो चुका है। इसके चलते
गोरखपुर भी विश्व पटल पर छा गया है। इसके बाद भी यह हाल है। स्टेशन प्रशासन
की उदासीनता का आलम यह है कि प्रीपेड टैक्सी बूथ को प्रीपेड थाना में बदल
दिया गया है। इसके अलावा ओवरब्रिज से होकर प्लेटफार्म नंबर 1 से 9 तक
पार्सल ले जाने पर लगने वाले जाम की समस्या के बारे में भी रेल प्रशासन को
अवगत कराया। समिति ने पुरानी मांगों को भी दोहराया। जिसे आश्वासन के बाद भी
रेल प्रशासन ने पूरा नहीं किया। एरिया मैनेजर ने यात्री सुविधाओं को और
बेहतर करने तथा मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया। बैठक में नर्वदेश्वर
पांडेय देहाती, प्रो. श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, श्रीमती बंदना गुप्ता,
बलबीर सिंह, अशोक कुमार अग्रवाल, संजय सिंह आदि समिति के सदस्यों के अलावा
डीसीआइ एके सुमन, सीटीआइ मकसूद आलम, मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक योगेंद्र
सिंह, आरपीएफ के प्रभारी निरीक्षक राजेश कुमार व मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक
शशिकांत आदि मौजूद थे।
गुरुवार, 12 दिसंबर 2013
हलल भइंसिया पानी में..
हलल भइंसिया पानी में..
मैडम -पप्पू रोक ना पवलें, उड़ल हंसी राजधानी में।
का सचहूं फेंकू की चलते, हलल भइंसिया पानी में।।
दिल्ली में अस जगलें नवहा, बहुत जने हो गइलें घहवा।
चंपले जे इंगलिश बिरयानी, उनके दुलुम चाय आ कहवा।।
गुमनाम नामचीन हो गइलें, दादी रोवें दालानी में।। का सचहूं ..
गॉटर रेत के भीत हो गइल, चारों खाने चित हो गइल।
झाड़ूवाला अइसन झरलें, एके बेर में फिट हो गइल।।
एके साल के जनमल लक्ष्का, हुंकलसि अबे नादानी में। का सचहूं..
जनता के दुख ना बुझी, हारी लड़ाई केतनो जूझी।
चिमचा बेलचा मुंह लुकवलें,कइलें बहुत हांजी आ हूंजी।
थोड़ा तस्सली मिलल जिगर के, रोअवलसि प्याज चुहानी में।। का सचहूं..
इ महंगी के मार रहल ह, केहू के जीत ना हार रहल ह।
बनि के वोट बाहर निकरल ह, आक्रोश के अंगार रहल ह।।
बड़-बड़ महारथी उड़ जइहन, चौदह वाली आंधी में।। का सचहूं..
जाति -धर्म पर केतना बंटबù, टुकड़ा-टुकड़ा केतना कटबù।
जन ज्वार जब एक हो जाई, केसे लड़बù केसे अंटबù।।
ठगलù बहुत ठगाइल जनता, अब पड़बù परेशानी में।। का सचहूं..
हर सड़क के खस्ताहाल बा, रुकल ना क्राइम बड़ बवाल बा।
अपराधिन के टिकट देत हैं, जनता का एकर मलाल बा।।
जनता जानी लाभ ना पइबù, पड़ जइबù तब हानी में।। का सचहूं..
आठ माह में तेरह दंगा, राजकाज के कइलसि नंगा।
रोज डकैती रोज छिनैती, कहां-कहां लोग लेई पंगा।।
छह सौ दुष्कर्म दर्ज भइल बा, हजारों केस छेड़खानी में।। का सचहूं..
सुधरी ना कानून व्यवस्था, अइसहिं जो रही अवस्था।
इस्पात के दंभ भरी का, टीना-मोमा रांगा-जस्ता।।
मोटा-मोटी बात बतवलीं, घुसल का समझदानी में।। का सचहूं..
गुरुवार, 5 दिसंबर 2013
दहि गइल पीड़िया, रहि गइल नेह
कन्याओं की टोली से निकरत बिंदास शोर..। कहीं भजन, कहीं लोकगीत.। याद आइल आज पीड़िया ह। लोक संस्कृति के एगो अइसन पर्व जवन पूर्वाचल की गांवे- गांवें गोधन कूटला की बाद शुरू हो जाला। गोबर से बनल गोधन के पूजन आ कूटला की बाद पीड़िया के निर्माण आ दहववला की साथे समापन के सवा माह के दौरान नारी पक्ष द्वारा गृहस्थ आश्रम के सजो संस्कार के खेल(स्वांग) की माध्यम से एक पीढ़ी से होत दूसरे पीढ़ी तक चलत चलि आवत बा। समरसता, भाईचारा, अश्पृश्यता के अंत. अमीरी-गरीबी के ढहत खाई के पीड़िया अइसन पर्व पर भी देखल जा सकेला। पीड़िया में पुरुष सत्ता के कहीं कवनो प्रभाव ना। नारी सत्ता के ही रहन-सहन। तुतुलाह बोले वाली बच्ची से लेके विअहल-दानल युवती तक मायका में पीड़िया की माध्यम से जीवन के सच से रूबरू करावल एगो लोक स्वांग, एगो लोक पर्व, एगो लोक खेल। नाटक के पात्र डॉक्टर हो या धगरिन, पति हो या पिता, सास हो या ननद.। सब पात्र नारी। जब स्वांग करत रात में दरोगा बन के कवनो लक्ष्की रोबदार आवाज में गरजे त बड़े-बड़े के पेट पानी हो जा। जब बात साफ होखे कि दरोगा ना इ त फलनवां के बेटी पीड़िया के खेल करत रहल, सुन के लोग हंसत-हंसल लोट जा। पीड़िया में सामुहिकता के जवन रूप लउकेला बहुत अद्भुत। दीवाल पर गोबर से बनल सैकड़ों पीड़िया के लड़की लोग बड़ा आसानी से पहचान लेली। अंतर एतने रहेला कि बिअहल-दानल लड़की लोग के पीड़िया सेनुर से टिकाइल रहेली आ कुंआरि लड़किन के बिना टिकल। गांवन के ताल- पोखरा भरात गइल। लोग के कब्जा होत गइल। लेकिन उ जगह अबो जिवित बा जहां पीड़िया दहवावल जाला। पीड़िया के समापन ‘ भूजा मिलौनी ’ की साथे पूरा होला। भूजा मिलौनी में जाति-पांति के दीवार ढह जाला। एक दूसरे के लाई-गट्टा देत-लेत में जवन प्रेम झलकेला उहो अनोखा ह। चाउर, चिउरा, फरुही, मकई, सांवा, कोदो, टांगुन, बाजरा, बजरी, मड़ुआ. के भूजा। गोरखपुर में बसल कई परिवार के लड़की लोग चाउर-चिउरा की बाद और चीज के नाम सुनते चिहुक जइहन, लेकिन गांवन में पीड़िया की दिने ‘सतअनजा’ लउक जाला। देसी मिठाइन के भी गजब के मेल। गट्टा, बतासा, लकठा, खुरमा, पेड़ा, पेठा. । जब सतअनजा के भूजा आ देसी मिठाई के मेल मिल जाला त पीड़िया के परसादी के स्वाद गजबे हो जाला। पंडितपुरा के बिटिया दखिनटोली के बिटिया से भूजा मिलौनी कर के सामाजिक समरता के मिसाल कायम करेली। पीड़िया की समापन पर इ कविता दहि गइली पीड़िया, रहि गइल नेह। भूजा मिलौनी में , लउके सनेह।। - नर्व्देश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 5/12/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
शुक्रवार, 29 नवंबर 2013
शास्त्र परी जो पंसारी के पाला..., पढ़ी नाहीं, ऊ बेची मसाला...
शास्त्र परी जो पंसारी के पाला।
पढ़ी नाहीं उ बेची मसाला।।
संत की
भेख में कालनेमि बन,
जपल करी उ झूठ के माला।।
- भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 28/11/13 के अंक मे प्रकाशित है .
|
गुरुवार, 21 नवंबर 2013
भारत रत्न के महाभारत
यदि काम का हो, तो चेहरा खिला-खिला दिखता है। किसी काम का नहीं, तो रोगी जस पीला दिखता है।। दोष चेहरे पर क्यूं , आंख के चश्मे पर लगाइए जनाब। कलमुंही राजनीति , कभी टाइट कभी नारा ढीला लगता है।। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 21/11/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
गुरुवार, 14 नवंबर 2013
उठहुं ये देव उठहुं सोवत भइले बड़ी देर..
श्रीहरि विष्णुजी जग गइलें, अब रउरों जग जाई। शंखासुर की समर्थकन के, धरा से मार भगाई।। देवत्व के ज्योति जगा के, असुरत्व मेटाई। देव दीपावली की दीया से, अंधकार मिटाई।। - नर्व्देश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 14/11/13 के अंक मे प्रकाशित है |
गुरुवार, 7 नवंबर 2013
सूपा बाजल, दलिद्दर भागल
दीया बराइल, लक्ष्मी अइली। सूपा बाजल, दलिद्दर भागल। भैयादूज के गोधन कूटइलें, रड़ूहन के तिलकहरू अइलें। मोहर्रम के तासा बाजी , इमाम चौक पर मेला लागी। छठ मइया के अघ्र्य दियाई, सब्जी आ फल खूब किनाई। - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 7/11/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013
गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013
’चांद‘ कहां अझुराइल..
टीवी अखबार में समाचार बन रहल बा। जनप्रतिनिधियन के लोग धिक्कार रहल बा। एगो चांद नरक में गोता लगावत बा, घर पर एगो चांद इंतजार कर रहल बा।। |
शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013
मन का रावण ना मरा क्या करेंगे राम..
मन का रावण ना मरा, क्या करेंगे राम। विभीषण को कर रहे झूठ-मूठ बदनाम।। अब तो हर घर भेदिया, दे रहा जगत को भेद। जहां खजाना देखते वहीं लगाते सेंध।। प्रवृति आसुरी धारण किये, मना रहे हम पर्व। दूसरों को आहत करने में, महसूस करे रहे गर्व।। राम फंसे राजनीति में, गुजर प्लास्टिक तान। रामभक्तों की बढ़ रही, हवेल और मकान।। -मेरा यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 17 /10/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013
गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013
श्मसान के संत तूने कर दिया कमाल..
‘ खूनचुसवों’ से जंग लड़ने चल
पड़ा जो।
जनसेवा के कठोर व्रत पर है अड़ा जो।।
जनसमर्थन की बदौलत रार ठाना।
श्मसान के मशान को जगा कर है खड़ा जो।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 3/10/13के अंक में प्रकाशित है
|
गुरुवार, 26 सितंबर 2013
चलि गइलें मोहन बिसारि के पिरितिया
रुष्ट होके भी कभी, दल से नाता ना तोड़ा। राह में आई मुश्किल बहुत, मंजिल से मुंह ना मोड़ा।। सियासत की चाल ऐसी है, लोग बदल जाते हैं चंद लम्हों में। मोहन ने ताउम्र कभी समाजवादी विचारधारा ना छोड़ा। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 26/9/13 के अंक मे प्रकाशित है . |
गुरुवार, 19 सितंबर 2013
डीजे बाजे, डंडा बाजे बाज रहे इंसान..
बाज रहे इंसान.. साधो! झूठ ना बोलावें। झूठ बोले त कौआ ना, कुक्कुर काट ले, पागल., अवारा., सनकी.। मनबोध मास्टर आज सब कह दीहें अपने मन की। चारों तरफ बजनी-बजना के माहौल बा। बात कहां से शुरू कइल जा, इहे ना बुझात बा। पब्लिक बिजली खातिर बाजति बा। पुलिस के डंडा बाजत बा। पॉलिटिशयन श्रेय लूटे खातिर चंग बजावत हवें। पुलिस के लीला भी गजबे बा। अपने क्षेत्र की विधायक के ना पहिचानत हवें, अपराधिन के का पहिचनिहें? रहनुमा की गिरेवान में हाथ डाल सकेलन लेकिन कवनो रहजन के ना पकड़ सकेलन। शहर के पुलिस ‘ बबरुबाहन के सेना’ बन गइल बा। अट्ठारह दिन के महाभारत एके दिन में खत्म कइला में लागल हवें। सिंघड़िया में बिजली खातिर बवाल होखे, चाहे रुस्तमपुर में सड़क खातिर प्रदर्शन। तरंग क्रासिंग के मामला होखे चाहें हट्ठी माई थान के गणोश प्रतिमा विसर्जन। बबरुवाहन के सेना जनता के खूब सेवा कइलसि। जब-जब पुरुआ बही सेवा याद रही। एगो बात और बेबाक। चुनावन में कई रंग के झंडा लउकेला, बहुते नेता लउकेलन। मौजूदा वक्त में जनता परेशान बा त उ नेता लोग कवना कन्दरा में लुकाइल हवें? पब्लिक जहां-जहां पिटाति बा, बाबाù-बाबाù चिल्लाति बा। बाबा आवत हवें, बाबा धावत हवें। घाव पर मरहम लगावत हवें, प्रशासन के गरमावत हवें। जनता जयकार लगावति बा। सजो दर्द खत्म। सवाल इहो उठत बा कि विसर्जन चाहें विदाई त जुदाई के माहौल होला। भक्त लोग काहें डीजे बजावेलन? काहें डांस देखावेलन? काहें ज्यादा चढ़ावेलन? नर्सेज हास्टल चाहे महिला छात्रावास देखते जोश काहें दूना हो जाला? अइसन श्रद्धा की सहारे काहें भक्ति के श्राद्ध कइल जाता? येह बारे में कबो सोचल गइल? पूजा नेम-धरम के चीज रहल। नेम-धरम ताक पर रख के चंदाउगाही, पियक्कड़ई, नाच-गाना( भक्तिरस के ना, भोड़ा रस के) बढ़त जाता। इ के रोकी? धीरे-धीरे इहे परंपरा बनल जाता। प्रतिमा स्थलन पर बाजत लाउडस्पीकर से मंत्र, अराधना, भजन, प्रार्थना, आरती के स्वर कम सुनाई आ गंदा गीत के संगीत से पांडाल पवित्र होई त देवी-देवता कइसे प्रसन्न होइहन। जिला की बड़का साहब के एगो बात बहुत नीक लागल-‘ शहर की तीस-चालीस मूर्तियन के विसर्जन करावला में इ हाल बा त दुर्गापूजा में चार हजार प्रतिमा विसर्जन के स्थिति कइसे सम्हराई?’ बोल-बबरुबाहन। ना बोलबù त सुनù कविता
डीजे बाजे, डंडा बाजे, बाज रहे इंसान।
बांस की पुलुई कानून के लुग्गा, टांग करे घामासान।।
बिगड़ रहल कानून व्यवस्था, चहुंओर बस हुड़दंग।
पब्लिक-पुलिस-पॉलिटिशियन पीटें, आपन-आपन चंग।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्य्नग्य राष्ट्रीय सहारा के 19/9/13 के अंक मे प्रकाशित है.
गुरुवार, 12 सितंबर 2013
कहां-कहां पेवन सटब$
गांव जर जाय त जर जाय। लरिका के अल रह जाय।। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्य्नग्य राष्ट्रीय सहारा के 12/9/13 के अंक मे प्रकाशित है. |
गुरुवार, 5 सितंबर 2013
देश होता खोंखड़, घाव होता गहीर.
मनबोध मास्टर सरकार की प्रशंसा में पुल बांध दिहलें। भाई पुल त जरुरिये बा। ‘ सियार के विआह ’ एतना बरखा में भी शहर की सड़क पर पानी जवन हिलोर मारे लागत बा। अब कई जने पढ़लिलखल कहिंहे- यह सियार का विवाह क्या होता है? अरे भाई! गांव-देहात में जब एक ओर दइब घाम कइले रहलन आ दूसरा सिवान में पानी बरसत लउकेला त ओके सियार के विआह ही कहल जाला। सरकार के प्रशंसा होखहि के चाहीं। सरकार बहुत उदार बा। छप्परफाड़ के देत बा। जे बेरोजगार बा ओके बेरोजगारी भत्ता देत बा। भइया लोग के लवलाइटिस ध लिहलसि। मोबाइल चार्ज कराके दिन-रात बैट्री डाऊन कइला की चक्कर में पड़ल हवें। लैपटॉप भी बंटे लागल। गांव में बिजुलिया अइबे ना करी त मोबाइल आ लैपटॉप चार्ज कइसे होई। लक्ष्की लोग के साइकिल बंटाइल। चलावे लगली त माई-बाप से स्कूटी मांगे लगली। गरीब मेहरारू लोग के साड़ी मिली। बुजुर्ग लोग के कंबल मिली। सत्तर वर्ष की उम्र में भी चाचा लोग डाक्टरी पढ़इहें। लाभ त बहुत भइल,बहुत होई। बहुत विकास भइल। बहुत कुछ बाकी बा। सड़क की मामला में एतना पिछुआइल बानी जा की- ‘ सड़क बीच गड़हा है कि गड़हा बीच सड़क है कि सड़किये गड़हा है कि गड़हवे सड़क है’ टाइप के संदेहालंकार हो गइल बा। हाईबे के हाल तक बेहाल बा। जब टूटता कवनो ट्रक के गुल्ला त बहुत होत बा हल्ला-गुल्ला। लागत बा जाम त तेजी पर लाग जाता विराम। एक दिन के जाम दूसरा दिने खुलत बा। सड़क पर लुटावल धन कवना जन की कामे आइल। जमाना बहुत बदलल बा। लेकिन चित्त आ चिंतन उहे पुरनके बा। रोटी-दाल-बाजार के चिंता। देश बहुत तरक्की करत बा। केंद्र के होखे चाहे सूबा के, सरकार ‘ दोऊ हाथ उलिचिए यही सयानो काम’ की लाइन पर चलति बा। अब त संसद में हंटर भी चलत बा। सीमा पाकिस्तान आ चीन बढ़त आवत बा त हंटर उठते ना बा। रुपया लगातार गिरत बा। पहिले गांव-देहात में लरिका खेलावत में लोग कहत रहे- ‘
हेले हेले बबुआ, कुरुई में ढेबुआ’। ढेबुआ के जमाना त बीत गइल। रुपया के आइल लेकिन उ केतना किकुरल जाता। रुपये पर सब दबाव बा त किकुरबे करी। पहिले रुपया के डालर से दोस्ती रहल। अब फासला 68 के बा। हे रुपया! तूं और गिर जा। एतना गिर जा कि सड़क पर गिरल रहù त केहू उठावे के चाहत ना करे। चोरी-डकैती-लूट के डर समाप्त हो जा। हाथ के मैल होजा। रुपया गिरला से सबसे बड़ा फायदा ई होई की अमीर-गरीब के खाई स्वत: ही मिट जाई। जमाखोरी, घूसखोरी, हेराफेरी, धोखाधड़ी समाप्त हो जाई। आई येह कविता के अर्थ खोजल जा-
देश होता खोंखड़, घाव होता गहीर। खूब चिंचियाइल करीं, बनल लोग बहीर।।
हेले हेले बबुआ, कुरुई में ढेबुआ’। ढेबुआ के जमाना त बीत गइल। रुपया के आइल लेकिन उ केतना किकुरल जाता। रुपये पर सब दबाव बा त किकुरबे करी। पहिले रुपया के डालर से दोस्ती रहल। अब फासला 68 के बा। हे रुपया! तूं और गिर जा। एतना गिर जा कि सड़क पर गिरल रहù त केहू उठावे के चाहत ना करे। चोरी-डकैती-लूट के डर समाप्त हो जा। हाथ के मैल होजा। रुपया गिरला से सबसे बड़ा फायदा ई होई की अमीर-गरीब के खाई स्वत: ही मिट जाई। जमाखोरी, घूसखोरी, हेराफेरी, धोखाधड़ी समाप्त हो जाई। आई येह कविता के अर्थ खोजल जा-
देश होता खोंखड़, घाव होता गहीर। खूब चिंचियाइल करीं, बनल लोग बहीर।।
गुरुवार, 29 अगस्त 2013
कालनेमि ओढ़ले बा संत के लिवास..
कालनेमि
ओढ़ले बा , संत के लिवास।
साधु-संत चिन्हला में, झंझल पचास।।
बच्ची के
कच्ची ना रहे दिहलसि चंठ।
अइसन ‘असंतन जी’ के महिमा अनंत।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २९ अगस्त १३ के अंक में प्रकाशित है।
|
बुधवार, 28 अगस्त 2013
आई ना ओदारल जा प्याज के बोकला...
मनबोध मास्टर प्याज के बोकला ओदरला में लागल
बाड़न। सबका पता बा बोकला ओदरले प्याज में कुछ ना बची। प्याज की बारे में
एगो कहावत कहल जाला- ‘ नया मुल्ला प्याज बहुत खाता है।’ भइया ! अब
मुल्ला नया होखें चाहे पुराठ प्याज से परहेज करत हवें। प्याज बहुत दुर्गध
देले। छिलला पर आंख से आंसू गिरा देले। प्याज सरकार भी गिरा देले। भोजपुरी
गायक मनोज तिवारी के एगो गाना याद आवत बा- ‘ वाह रे! अटल चाचा, पियजुइया
अनार हो गइल.’। इहे प्याज ह जवन अटल जी के सरकार के सरका देले रहे। प्याज
के लेके हाल की दिन में बहुत मजेदार खबर भी अइली। मध्य प्रदेश की छतरपुरा
गांव में किसान चंपालाल त प्याज की महंगाई से ही मालामाल हो गइलन। प्याज
पैदा कइलन त पांच रुपया किलो बिकत रहे, बेचला की जगह पर गोदाम धरा दिहलन।
जब आसमान पर दाम चढ़ल त बेंचलन। अब प्याज बेंच के कार खरीद लिहलन। इ प्याज
के प्र-ताप ह। अब त डाकू-चोर भी रुपया -पैसा, गहना-गुरिया के डकैती की जगह
पर प्याज लूटत हवें। जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर बंदूक की बल पर
ट्रक से 40 टन प्याज लूट लिहलन। आज प्याज के नाम निकारते मुंह से बदबू
निकरे लागत बा। प्याज पॉलिटिक्स देखे के होखे त दिल्ली जाई। दिल्ली सरकार आ
विपक्षी भाजपा दुनो स्टाल पर सस्ता प्याज बेच के वोटरन के भरमावत हवें।
प्याज देसज दवाई भी ह। अगर कान केहू के बथता त प्याज के रस ही लहता। कहीं
जल गइल त झट से प्याज कूंची आ लगा दीं। कीड़ा-मकोड़ा की कटले पर प्याज के
कूटीं आ लगायीं इ देहाती बूटी ह। हिस्टीरिया में बेहोश रोगी की नाक में
प्याज कूट के सुंघाई, झट से भूत उतर जाई। आज प्याज के महत्व पर ताजातरीन
घटना रक्षाबंधन की पर्व पर फेसबुकियन की बीच र्चचा में रहल। राखी बंधवायी
में एगो बहना अपनी भइया से नगदी आ गहना की जगह पर गिफ्ट में बस पांच किलो
प्याज मंगलसि। प्याज के बोकला ओदरले कुछ ना भेंटाई लेकिन प्याज पर बस इहे
कविता सटीक बइठी- मनमोहन की राज में, सगरो राज सुराज।
महंगी अस चंपले बा
भइया, दुर्लभ भइल पियाज।।
बोकला बहुत ओदारल गइल, तबो ना लागे लाज।
पॉलिटिक्स आ पार्लियामेंट में, भइल ना एकर इलाज।।
येही प्याज की कारने, गइल
रहे अटल के राज।
मनोज तिवारी गवले रहलें, लोकगीत में साज।।
रक्षाबंधन पर्व
पर, प्याज बनल सरताज।
बहना, नगदी-गहना छोड़ के, गिफ्ट में मांगे प्याज।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २२ अगस्त १३ के अंक में प्रकाशित है।
|
सोमवार, 19 अगस्त 2013
पंद्रह अगस्त के सब स्वतंत्र...
मनबोध मास्टर स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश की नाम संबोधन पर बहुत कुछ सुना गइलन। आखिरकार पंद्रह अगस्त के माहौल रहे, येह लिए भी उनकर जुबान कुछा ज्यादा ही स्वतंत्र रहे। आई सुनल जां उनकर संवोधन- देश के भाई-बहन लोग! सादर पण्राम। भइया इ भारत वर्ष ह। जन-जन में आज राष्ट्रीय पर्व के हर्ष बा। सोने के चिरई रहल हमार देश। पांखि नोंच के आपन तिजोरी भरत गइलन रहनुमा। अब त रहबर आ रहजन में कवनो फरके ना लउकत बा। इटली की बैसाखी पर लंगड़ात सत्ता। विरोध की नाम पर हिलत-डुलत ‘ भगवा पत्ता’। छोट दलन के सेटिंग- गेटिंग-चिटिंग। देश की साथे रोज एगो चिट। सीमा पर आंख तरेरत दुश्मन आ पोंछि सुटुकवले सरकार। दखिनहा की मरले पियराइल धान, ऊपर से चढ़ल हरिहर-कचनार साई, डंवरा जइसन खरपतवार। कइसे पनकी फसल। कइसे पनपी देश। कवना घाटे लागी नाव, जवना में मल्हवे करत बा छेद। हर रिश्ता बा घात के। चरित्र में ईमानदारी बस देखावे के दुनियादारी। व्यवहार में भ्रष्टाचार से भरल संसार। संस्कार त बस किताब में पढ़े-पढ़ावे वाली विषय वस्तु। जज्बात सिसकत बा। अस्मिता तार-तार होत बा। सभ्यता के चीर हरण होत बा। इंसान में भेड़िया के आत्मा समात बा। जे लाचार बा, मार खाके भी दर्द दबवले बा। करहला के अधिकार भी छिना गइल बा। अन्नदाता की मर्जी पर मेहनतकश के मजूरी तय होत बा। मजूरन की हक खातिर लड़े वाला लाल रंग अब पनछुछुर होत बा। वाम मार्ग के राही अगर दक्षिण पंथ के राह पकड़ लें त बुझीं राजनीति के खिचड़ी पक के तैयार हो गइल बा। रउरा सभे जान के ताज्जुब करब की देश की राजधानी में असों जेतना तिरंगा के बिक्री भइल ओहमे सौ में बीस चायनीज रहल। हमरी स्वतंत्रता आ संप्रभुता के प्रतीक तिरंगा भी आयातित हो गइल। गांधी बाबा त कहलें रहलें, चरखा चलावù सूत काटù। वाह रे देश!
वाह रे देश के लोग! नजर में केतना मोतियाबिंद छा गइल की चीनी सूत के कपड़ा आ चीनी रंग से कइल छपाई लोग के काहें बहुत पसंद पड़त बा। अंत में एगो कविता की साथे आपन बात पर विराम लगावत हई। जय हिंद। अंखिगर स्वतंत्र,
आन्हर स्वतंत्र।
अनपढ़ गंवार
‘बा-नर’ स्वतंत्र।
नेता स्वतंत्र,
वोटर स्वतंत्र।
संसद का हर
‘जो-कर’ स्वतंत्र।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्य्न्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 15 अगस्त 13 के अंक मे प्रकाशित है .
गुरुवार, 8 अगस्त 2013
सनकी कुक्कुर फेरु बा कटले, मानी ना इ खाली डंटले..
मनबोध मास्टर पाक की दुस्साहस आ सरकार की शिखंडीपन पर माथा पिटत हवें। हाय! इ का भइल? फिर मरा गइलन हमार सैनिक। देश की ऑन पर शहीद हो गइलन जवान। संसद में फेरु बहस जारी हो गइल। अइसन बहस जवना में शहीदन के बलिदान पर भी सदस्य लोग एकमत ना भइलें। केतना घटिया रील घूमत बा नेतन की दिमाग में। मंत्री बयान देत बा- ‘ फौजिन की ड्रेस में आतंकवादी रहलन, जवन हमला कइलन’। छी:, थू। एक बेर ना हजार बेर तोहरा येह बयान पर थूथू। हमरा देश की सीमा पर कबो चीन चढ़ता, कबो पाक बढ़ता। हमरा देश के हाल त ‘ अबरा के मेहरी’ जस हो गइल बा। देश की नेतृत्वकारी शक्ति की क्षमता पर प्रश्न चिह्न बा। सीमा की सुरक्षा के बेहतर इंतजाम ना क पावत हवù त देश के अपनी रहमोकरम पर छोड़ द लेकिन शर्मनाक बयान त मत दिहल करù। पाकिस्तानी घात लगा के हमला करत हवें। हमार पांच जवान शहीद हो गइलन। पाक की येह कारनामा पर इहे कहल जाई- ‘सनकी कुक्कुर फेरु बा कटले, मानी ना इ खाली डंटले।’ अइसन सनकी कुक्कुरन के दौड़ा के मार दिहल जाला। केइसन अरमीशन-परमीशन। पाक के औकाते केतना बा? हमरा उत्तर प्रदेश के लरिका अगर एकै साथ मूत दिहें त बुझीं पाकिस्तान बहि गइल। सरकार के शिखंडीपन देखीं, उहे घिसल-पिटल बयान-‘ हम शांत नहीं बैठेंगे’। करति का बा सरकार? शरीफ की अइसन शराफत से दोस्ती। इ हाथ मेरावत हवें, उ छूरा घोंपत हवें। पूरा देश सैनिकन की हत्या पर उबलत बा आ मंत्री जी पाकिस्तान के क्लीन चीट देबे पर लागल हवें। षड़यंत्रकारी से कइसन दोस्ती? विश्वासघाती पर कइसन भरोसा? सीमा पार से निरंतर गोली-बारी, फिर कइसन संघर्ष विराम? बंद करù बात-चीत। बस अब जंग के जरूरत बा। सिहुर-सिहुर कइला से, कुक्कुर के पूंछ भला सोझ होई मलला से। दुष्ट पाक मानी अब सिकमभर कंड़ला से। पाक की औकात पर, ओकरी कुराफात पर, रोज की आघात पर, सीमा की हालात पर बस इहे कविता सटीक बइठी-
यूपी की लरिकन की मुतले से बहि जाई,
नापाक पाक के ,बस एतने औकात बा।
मनबढ़ बा एतना, टेढ़ कुक्कुर की पूंछ जेतना,
छह माह में कइलसि, सरसठ बेर उत्पात बा।।
केतना लपेटाई तिरंगा में शहीदन के शव?
घरी-घरी घात से, लागत आघात बा।
आर-पार चाहत बा, जम करके एक बार,
सीमा से सटले, कुछ अइसने हालात बा।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के ८/८/१३ के अंक में प्रकाशित है।
गुरुवार, 1 अगस्त 2013
जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग..
मनबोध मास्टर के आपन अलग मोर्चा ह। न वामपंथी न दक्षिणपंथी। न पूरबपंथी न
पश्चिम पंथी। आज के अखबार पढ़ला की बाद संत कवि सूरदास से माफी मांगत एगो
कविता गुनगुनात रहलें- ‘जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग। बजाओ
अपने-अपने चंग.।’ अखबार के कुछ समाचार उदवेग के रख दिहलसि। बानगी के तौर
पर कुछ मामला रउरो सामने बा। महिला आइएएसअधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के
निलम्बन के मामला.। गौतम बुद्ध नगर में एगो धर्म विशेष के निर्माण रोकल त
बहाना बा, पर्दा के पीछे खनन माफियन के सत्ता से गंठजोड़ की कारन ही अकारन
रेता माफिया ‘दुर्गाजी’ के ‘रेतवा’ दिहलन। हाईकोर्ट के ही निर्देश
बा कि सार्वजनिक भूमि पर धार्मिक स्थल के निर्माण की पहिले अनुमति लिहल
जरूरी बा। दुर्गा आपन शक्ति देखवली त ‘नाग-पाल’आपन पॉवर। गांव-देहात
में एगो किस्सा कहल जाला कि यदि राजा कहें कि ‘ ऊंट, बिलरिया टांग ले
गइल, त बस हां-जी, हां-जी कहियो’। हां-जी की जगह ना-जी त झेलीं दुर्गा
जी राजा के नराजी। दूसरा मामला इ बा कि मनरेगा मजूरन के अब मोबाइल मिली।
बहुत जरूरी बा। रोटी बिना त दु वक्त कटि जाई लेकिन ‘ मोबाइल बिना जिनगी
कइसे कटी?’ मोबाइल चार्ज करे बदे भर के बिजली भी गांव में मिल जात त अति
सुन्दर हो जात। तीसरा मामला, बहुत स्थानीय, बहुत ज्वलंत बा। पिपराइच कस्बा
में एगो जमीन पर दु वर्ग के दावेदारी। इहे दुनियादारी ह। दावेदारी जिंदा
रही त दूनों ध्रुव के राजनीति भी जिंदा रही। भइया लोग! काहें बोर्ड लगावत
हवù, काहें उखाड़त हवù? गोरखपुर के काहें ‘अयोध्या-फैजाबाद’ बनावे पर
तुलल हवù। चौथा मामला, महानगर की एगो मैरेज हाऊस में सवर्ण एकता संकल्प
दिवस मनावल जात रहे। कुछ अति उत्साही ‘स-बरन’लोग असलहा से फायरिंग करे
लगलें। दइब के कृपा रहल नाल नीचे ना भइल नाहीं तù कुछ कार्यकर्ता वइसे कम
हो जइतन। भइया लोग तोप के लाइसेंस लेलù लेकिन दाग समय से। असमय के
चुटपुटिया भी भारी पड़ जाले। अइसने कुछ घटना आ अंजाम देबे वालन के आपन
रहनुमा माने वाला कवि के इ उद्गार- जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग।
बजाओ अपने-अपने चंग, दिखा दो अपने-अपने रंग।।
जग-गिलास से पेट भरो नहिं, चेतो कुछ नयो ढंग।
कुआं त अब रह ही गयो ना, घोल दो पाइप लाइन भंग।।
रार बसेहत रहो हर जगही, काटौ उड़त पंतग।
बढ़ै विवाद कुछ गला साफ हो, यही धरम का अंग।।
खुरफाती तत्वों से मिलकर, आये दिन कुछ हुड़दंग।
कहें देहाती अति उमंग से, लड़ो विरोधिन संग जंग।।
मेरा यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 1/8/13 के अंक मे प्रकाशित है
जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग...
मनबोध मास्टर के आपन अलग मोर्चा ह। न वामपंथी न दक्षिणपंथी। न पूरबपंथी न पश्चिम पंथी। आज के अखबार पढ़ला की बाद संत कवि सूरदास से माफी मांगत एगो कविता गुनगुनात रहलें- ‘जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग। बजाओ अपने-अपने चंग.।’ अखबार के कुछ समाचार उदवेग के रख दिहलसि। बानगी के तौर पर कुछ मामला रउरो सामने बा। महिला आइएएसअधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन के मामला.। गौतम बुद्ध नगर में एगो धर्म विशेष के निर्माण रोकल त बहाना बा, पर्दा के पीछे खनन माफियन के सत्ता से गंठजोड़ की कारन ही अकारन रेता माफिया ‘दुर्गाजी’ के ‘रेतवा’ दिहलन। हाईकोर्ट के ही निर्देश बा कि सार्वजनिक भूमि पर धार्मिक स्थल के निर्माण की पहिले अनुमति लिहल जरूरी बा। दुर्गा आपन शक्ति देखवली त ‘नाग-पाल’आपन पॉवर। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला कि यदि राजा कहें कि ‘ ऊंट, बिलरिया टांग ले गइल, त बस हां-जी, हां-जी कहियो’। हां-जी की जगह ना-जी त झेलीं दुर्गा जी राजा के नराजी। दूसरा मामला इ बा कि मनरेगा मजूरन के अब मोबाइल मिली। बहुत जरूरी बा। रोटी बिना त दु वक्त कटि जाई लेकिन ‘ मोबाइल बिना जिनगी कइसे कटी?’ मोबाइल चार्ज करे बदे भर के बिजली भी गांव में मिल जात त अति सुन्दर हो जात। तीसरा मामला, बहुत स्थानीय, बहुत ज्वलंत बा। पिपराइच कस्बा में एगो जमीन पर दु वर्ग के दावेदारी। इहे दुनियादारी ह। दावेदारी जिंदा रही त दूनों ध्रुव के राजनीति भी जिंदा रही। भइया लोग! काहें बोर्ड लगावत हवù, काहें उखाड़त हवù? गोरखपुर के काहें ‘अयोध्या-फैजाबाद’ बनावे पर तुलल हवù। चौथा मामला, महानगर की एगो मैरेज हाऊस में सवर्ण एकता संकल्प दिवस मनावल जात रहे। कुछ अति उत्साही ‘स-बरन’
लोग असलहा से फायरिंग करे लगलें। दइब के कृपा रहल नाल नीचे ना भइल नाहीं तù कुछ कार्यकर्ता वइसे कम हो जइतन। भइया लोग तोप के लाइसेंस लेलù लेकिन दाग समय से। असमय के चुटपुटिया भी भारी पड़ जाले। अइसने कुछ घटना आ अंजाम देबे वालन के आपन रहनुमा माने वाला कवि के इ उद्गार-
जाको संग कुमति उपजत है, हम भी उनके संग।
बजाओ अपने-अपने चंग, दिखा दो अपने-अपने रंग।।
जग-गिलास से पेट भरो नहिं, चेतो कुछ नयो ढंग।
कुआं त अब रह ही गयो ना, घोल दो पाइप लाइन भंग।।
रार बसेहत रहो हर जगही, काटौ उड़त पंतग।
बढ़ै विवाद कुछ गला साफ हो, यही धरम का अंग।।
खुरफाती तत्वों से मिलकर, आये दिन कुछ हुड़दंग।
कहें देहाती अति उमंग से, लड़ो विरोधिन संग जंग।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 01 अगस्त 2013 के अंक में प्रकाशित है .
गुरुवार, 25 जुलाई 2013
हमरो शहर में चाहीं $ डांस बार$
डांस बार के चांस मिली त, चढ़ि जा प्याला पर
प्याला।
बाल गर्ल्स की हाथ से पियले, बौराई पीयेवाला।
मस्ती छलकी मदिरा
छलकी, छक के पीये बदे मिली।
हर शहर में डांस बार हो, हर गली में मधुशाला।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 25 जुलाई 13 के अंक में प्रकाशित है .
|
गुरुवार, 11 जुलाई 2013
रोवत हवें ऊंट, घूंट-घूंट मरला से, साहब काहें बदे हमका बचवलें
सड़त हवें। सुरक्षा में लागल सिपाही चौबिसों घंटा कुक्कुर, कौआ, सियार हंकला में लागल हवें। थाना परिसर में रहे वाला पुलिसकर्मिन के बीवी-बच्चा भी अगुता गइल हवें। सबका मुंह से बस इहे निकरत बा- ‘कवन जरूरी रहे इ बला पलला के’। दरअसल बात इ रहे कि कुछ तस्कर नाम के समाजसेवी लोग राजस्थान से चार ट्रकन पर लाद के 62 रेगिस्तानी जहाज(ऊंट) पश्चिम बंगाल की कत्लखाना में शहीद करावे ले जात रहलें। यूपी की पश्चिम से प्रवेश कराके पूर्वी मुहाना तक पहुंचावते धरा गइलें। सवाल इ बा कि भरतपुर (राजस्थान) से घुसला की बाद कुशीनगर(यूपी)में अइला की राह में दर्जनों जिला(आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, औरया, अंबेडकरनगर, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, बस्ती, संतकबीरनगर और गोरखपुर), सैकड़न पुलिस चौकी, बैरियर लांघत इ ऊंट अइसे ना आ गइल होइहन। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला- ‘ऊंट के चोरी, निहुरे-निहुरे?’ इ काम सीना ठोंक के, पैसा फेंक के भइल होई। पटहेरवा पुलिस कुछ ज्यादा कर्त्तव्यनिष्ठ निकल गइल। ईमानदारी में इ बेमारी बखरे पड़ि गइल। सेवा की बाद भी सात ऊंट सरग सिधार गइलें। पचपन ऊंट जवन बचल हवें, नरक भोगत हवें। देहिं सड़त बा, अंतड़ी जरत बा। कौआ नोचत हवें। ऊंट इहे सोचत हवें‘ कत्लखाना में त एके झटका में मुक्ति मिल गइल रहत, इहां तिल-तिल मरे के बा’। प्रशासन जागल बा। कोर्ट के आदेश आ गइल बा। जवन ऊंट बचल हवें उनके उनकी जन्मधरती (राजस्थान) में भेजला के उपक्रम जारी बा। देखल जा, कब ऊंटन के पटहेरवा थाना की नरक से मुक्ति मिली। ऊंट दुर्दशा पर एगो कविता-
भूसावाली गाड़िन पर , बाज अस झपट्टा देखलीं,
भरतपुर से कुशीनगर, ऊंट
कइसे आ गइलें।
यूपी की पश्चिम से गोरखपुर ले परमिट रहल?
कुशीनगर पार करत ,
कइसे धरा गइलें।
खेला बा अइसन खेलाड़िन की बखरा पड़ल,
कोर्ट आ कचहरी की
झंझट में अझुरइलें।
रोवत हवें ऊंट, घूंट-घूंट करके मरला से,
साहब काहे बड़े , हमका बचवलें।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 11 जुलाई 13 के अंक में प्रकाशित है .
|
गुरुवार, 4 जुलाई 2013
जहां बसे तहं सुंदर देसू..
मनबोध मास्टर गांव के बीघा दु बीघा जमीन बेचकर गोरखपुर में डिसमिल दो डिसमिल जमीन का ले लिहलन बुझलें दिल्ली के चांदनी चौक खरीद लिहलीं। कर्जा-उआम लेके खलार में घर बनवा लिहलन। जब केहू हीत-नात पूछे की भइया गांव-जवार छोड़ दिहलù, गोरखपुर कइसन लागत बा? मास्टर गोसाई जी के चौपाई दोहरावत बस इहे कहें- जहां बसे तहं सुंदर देसू..। येही सुंदर देस में आषाढ़ में देवराज इन्द्र के कृपा गरगरा के बरसल। बुझाइल बादर फाट गइल। अबे नरही ताल के पेट ना भरल, रामगढ़ के जलकुंभी येहर-ओहर पानी की हिलकोरा से डोलत रहे कि कॉलोनी में बाढ़ आ गइल। सावन-भादो त बाकी बा अषढ़वे में दइब के कृपा लढ़ियन बरस गइल। बरखा आइल, गइल। जहां पानी ठाड़ गइल लोग के पानी बिगार के राखि दिहलसि। अब भगवान के दोष दिहल जाता, बहुत इफरात कृपा बरसा दिहलन। जलभराव के जायजा लेबे निकरल नेताजी अधिकारिन-कर्मचारिन पर बरस के जनता-जनार्दन के स्नेह बटोरला में लाग गइलें। अरे भाई!
सभासद तोहार। अध्यक्ष तोहार। ठेकेदार तोहार। लोग के काहे मूरख बनावत हवù। नगर की दुर्दशा पर एगो अधिकारी बेशर्मी भरल बयान हमरा हजम ना भइल, जब उ कहलसि- केहु नेवता देके बोलवले ना रहल की आके गड्ढा में घर बनवा ल। नेता की जनसेवा में भी अहंकार बा। उनकी सहानुभूति में भी विकार बा। उनकी घुड़की-धमकी में भी लाभ के लोभ बा। उनकर करनीध रनी सब सियासत के खेल बा। नगर के नाला की मुंहाने पर तोहार समर्थक जब हवेली खड़ा करत रहलें तू काहें ना रोकलù? कालोनाइजर्स लोग गड़ही-गड़हा, पोखरी-तालाब पाटि के कब्जा कर जमीन बेच के खरहरा लेके धन बटोरत रहलें त कुछ हिस्सा तोहरो इहां पहुंचत रहे। चुनाव में तोहार केतने चेला-चपाटी सभासद बन गइलें। विकास कार्य में कमीशन की मिशन में का तू सहभागी ना रहल। देवरिया जाये वाली सड़क पर येतना पानी चढ़ल की कार से हेलल मुश्किल हो गइल। बाह रे! बरखा के पानी। धनवान के मान के भी ख्याल ना रखलसि। बड़े-बड़े कॉलोनी में येतना पानी लागल की लोग की पैर के अंगुरी सरे लागल। गांव की डीह पर मड़ई डाल के रहे वाला लोग चैन से सुतत रहलें लेकिन शहर की पॉश कालोनी के लोग घर में समाइल पानी उदहला में रात-दिन गिन-गिन जगले बिता दिहलन। शहर की दुर्दशा पर एगो कविता -
सभासद तोहार। अध्यक्ष तोहार। ठेकेदार तोहार। लोग के काहे मूरख बनावत हवù। नगर की दुर्दशा पर एगो अधिकारी बेशर्मी भरल बयान हमरा हजम ना भइल, जब उ कहलसि- केहु नेवता देके बोलवले ना रहल की आके गड्ढा में घर बनवा ल। नेता की जनसेवा में भी अहंकार बा। उनकी सहानुभूति में भी विकार बा। उनकी घुड़की-धमकी में भी लाभ के लोभ बा। उनकर करनीध रनी सब सियासत के खेल बा। नगर के नाला की मुंहाने पर तोहार समर्थक जब हवेली खड़ा करत रहलें तू काहें ना रोकलù? कालोनाइजर्स लोग गड़ही-गड़हा, पोखरी-तालाब पाटि के कब्जा कर जमीन बेच के खरहरा लेके धन बटोरत रहलें त कुछ हिस्सा तोहरो इहां पहुंचत रहे। चुनाव में तोहार केतने चेला-चपाटी सभासद बन गइलें। विकास कार्य में कमीशन की मिशन में का तू सहभागी ना रहल। देवरिया जाये वाली सड़क पर येतना पानी चढ़ल की कार से हेलल मुश्किल हो गइल। बाह रे! बरखा के पानी। धनवान के मान के भी ख्याल ना रखलसि। बड़े-बड़े कॉलोनी में येतना पानी लागल की लोग की पैर के अंगुरी सरे लागल। गांव की डीह पर मड़ई डाल के रहे वाला लोग चैन से सुतत रहलें लेकिन शहर की पॉश कालोनी के लोग घर में समाइल पानी उदहला में रात-दिन गिन-गिन जगले बिता दिहलन। शहर की दुर्दशा पर एगो कविता -
बगैर सोच के शहर में बसलें, मिटल ना मन के पीर।
जलभराव दु:शासन होके, लगा उतारन चीर।।
जे घिरल बा जे बूड़ल बा, रहल करम के ठोंक।
नगर निगम आ नेता बुझै, झूठे रहल बा भौंक।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 4 जुलाई 13 के अंक में प्रकाशित है .
सदस्यता लें
संदेश (Atom)